
सुशील दीक्षित ‘विचित्र’
बिहार में महागठबंधन की वोट अधिकार यात्रा प्रस्तावित विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को कितना आकर्षित करेगी इस पर कुछ कहना फिलहाल जल्दबाजी होगी, लेकिन महागठबंधन में सीटों को लेकर जो मतभेद सतह पर आ गए हैं, उनसे यही ध्वनित हो रहा है कि अंदर खाने सब ठीक नहीं है। सब ठीक तो दूसरे गठबंधन राजग में भी नहीं है। सीट बंटवारे को लेकर वहां भी तनातनी है। यह दूसरी बात है कि अभी तलवारें म्यान में ही हैं, जबकि महागठबंधन में तलवारें तन भी चुकी हैं। अभी धमकियों का दौर चल रहा है। आगे यह देखना दिलचस्प होगा धमकियों से कौन सा पक्ष झुकता है या कौन अपनी धमकियों पर खरा उतर कर दिखाता है।
कांग्रेस और आरजेडी के बीच सीटों को लेकर तल्खी इतनी बढ़ गयी है कि मुजफ्फर नगर की रैली में तेजस्वी प्रसाद यादव ने राज्य की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। शुरुआत कांग्रेस की ओर से तब हुयी जब उसने छिहत्तर सीटों पर दावा कर दिया। पिछले 2020 के चुनाव में कांग्रेस सत्तर सीटों पर लड़ी थी, लेकिन केवल उन्नीस सीटों पर ही जीत पायी। इस पुअर पर्फार्मेंस का कारण तेजस्वी यादव ने सत्ता से दूर रह जाने के लिए कांग्रेस के खराब स्ट्राइक रेट को दोषी ठहराया था। इस चुनाव में महागठबंधन की 110 सीटों पर जीत मिली थी। यदि कांग्रेस अपने हिस्से की आधी सीटों पर ही जीत हासिल कर लेती तो महागठंधन सत्ता में आ जाता।
इसी को ध्यान में रखते हुए राजद कांग्रेस के दबाव में आता नहीं दिख रहा। वहीं कांग्रेस बिहार में राजद का पिछलग्गू होने के ठप्पे को मिटाना चाहती है। पार्टी को लगता है कि वोटर अधिकार यात्रा से उसकी स्थिति मजबूत हुयी है। लोकप्रियता बढ़ी है इसलिए वह आरजेडी के बराबर खड़ा होना चाहती हैं। इसलिए और भी केवल सीटें ही बढ़ाकर नहीं मांग रही है, बल्कि उप मुख्यमंत्री पद के लिए अभी से दावा ठोंक रही है। अपने इन दावों को लेकर कांग्रेस जल्दबाजी में भी दिख रही है। उसने एक तरह से तेजस्वी यादव को अल्टीमेटम भी दे दिए है कि वह लंबा इंतजार नहीं करने वाली। इन सीटों पर वह रणनीति बनाने भी लगी है।
कांग्रेस की मांग से महागठबंधन के सहयोगी दल भी सहमत नहीं हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कांग्रेस को नसीहत दी कि वह अपनी स्थति से अधिक सीटें न मांगे। भले ही कम सीटों पर लड़े, लेकिन अधिक से अधिक स्ट्राइक रेट रखे। तेजस्वी यादव ने भी साफ़ कर दिया कि अगर बात नहीं बनती है तो उनकी पार्टी सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी। अपनी स्थिति को 2020 के चुनाव से बेहतर समझने वाली कांग्रेस इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए हुए है। पंद्रह सितंबर को होने वाली बैठक ऐसी तल्खियों के कारण रद्द की जा चुकी है।
यह सब घात-प्रतिघात अभी राज्य स्तर पर ही हैं। असली सूरत तब सामने आएगी , तब साफ होगा कि कौन किस पर कितना दवाब बनाने में सफल रहा जब राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की आमने सामने बात होगी। अलबत्ता राजनीतिक विश्लेषक यह मान कर चल रह हैं कि बिहार में कांग्रेस खुद को कितना ही मजबूत माने, लेकिन उसे गठबंधन में बने रहने के लिए सर्वसम्मति से होने वाले निर्णय को मानना होगा। यह तेजस्वी यादव भी जानते हैं और राहुल गांधी भी कि राजग से अकेले मुक़ाबिल नहीं हुआ जा सकता। कांग्रेस बिना मुगालते के सोंचे तो जल्द समझ जाएगी कि उसके मुकाबले राजद की स्थिति अधिक बेहतर है।
चुनाव केवल यात्राओं और आरोपों के दम पर नहीं जीते जाते, बल्कि जमीनी मुद्दों और समर्पित कार्यकताओं की मेहनत से जीते जाते हैं। राजद का कॉडर कांग्रेस से न केवल मजबूत हैं, बल्कि उसके पास एक प्रभावी वोट बैंक भी है। कांग्रेस के पास इसका यदि अभाव नहीं तो प्रभावी इंतजाम भी नहीं है। यही स्थिति कांग्रेस को कमजोर करती है और इसीलिए उसे उन क्षेत्रीय दलों के पीछे खड़ा होना पड़ता है, जिनका जन्म कांग्रेस के खिलाफ हुआ। यदि महागठबंधन टूटता है तो इसका कांग्रेस पर ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। हर चुनाव कांग्रेस के अस्तित्व की लड़ाई बन जाता है। बिहार का चुनाव भी ऐसा ही है इसलिए इस नतीजे पर पहुंचना समयानुकूल नहीं लगता कि कांग्रेस महागठबंधन से छिटक सकती है। महागठबंधन के बिना उसकी गति नहीं।
महागठबंधन में ही नहीं सीटों को लेकर रार एनडीए में भी मची हुई है। जीतन राम मांझी रूठे हुए हैं कि उन्हें बीस सीटें चाहिए। उनका तर्क है कि विधानसभा में उनके दल को तभी मान्यता मिलेगी जब उनके आठ विधायक हों। यह तभी संभव है जब उन्हें बीस सीटें मिलें। चिराग पासवान की लोजपा-आर को न केवल सीटें बढ़ाकर चाहिए, बल्कि मुख्यमंत्री की रेस में चिराग पासवान को आगे बढ़ाने की मांग है।
अलबत्ता चुनाव के ऐन वक्त पर हर गठबंधन के घटक दलों में सीट के लिए सिर फुटौवल जैसी लगने वाली स्थिति नयी नहीं है। हर पांच साल बाद छोटे मझोले दलों को लगने लगता है कि बीती अवधि में उसकी स्थिति पहले से मजबूत हो गयी है इसलिए उसे अधिक तवज्जो मिलनी चाहिए। तवज्जो का मापदंड क्या होगा इसे गठबंधन का मुख्य बड़ा दल तय करता है। बिहार में महागठबंधन की ड्राइविंग सीट पर तेजस्वी यादव हैं। लगता नहीं कि वे झुकेंगे। यदि नहीं झुके तो कांग्रेस के पास मध्यम मार्ग के अलावा कोई उपाय नहीं होगा और यह मध्यम मार्ग समझौते की मंजिल पर ही जाकर खत्म होगा।