भाजपा के तमाम हथकंडे, केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों की पूरी फौज फेल, एमसीडी में आ गई ‘आप’ की रेल

संदीप ठाकुर

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव में भाजपा का कोई हथकंडा काम नहीं आया।
मंत्री से लेकर भाजपा नेताओं का दिल्ली के गली कूचे में घूमना बेकार रहा।
प्रचार सामग्री में प्रधानमंत्री मोदी का चमचमाता चेहरा भी निकाय चुनाव
में जीत नहीं दिला पाया। आप नेताओं पर ईडी से लेकर सीबीआई के छापे तक का
असर चुनाव परिणाम काे भाजपा के अनुकूल नहीं बना पाया। हुआ वही जिसकी
संभावना जताई जा रही थी। आम आदमी पार्टी जीत गई। हालांकि, नगर निगम पर 15
साल से काबिज बीजेपी ने टक्कर दी लेकिन उसे आम आदमी पार्टी से शिकस्त
खानी पड़ गई है।

सवाल यह है कि तमाम हथकंडे अपनाने के बाद भी भाजपा क्याें हार गई ?
हथकंडे मतलब,दिल्ली की तीनों म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का कार्यकाल इसी साल
मई महीने में खत्म हो गया था, लेकिन चुनाव की घोषणा होने में लगभग 6
महीने लग गए। आमतौर पर कार्यकाल खत्म होने से एक महीने पहले ही चुनाव करा
लिए जाते हैं। 2017 में दिल्ली नगर निगम तीन हिस्सों में बंटा हुआ था और
270 वार्डों पर चुनाव हुआ था। इस बार केंद्र सरकार ने परिसीमन कर तीनों
हिस्सों को मिलाकर एक और वार्डों की संख्या घटा कर 250 कर दी है। इसका
मतलब है कि पार्षद इस बार एक मेयर का चुनाव करेंगे, जो दिल्ली एमसीडी का
मेयर कहलाएगा। लड़ाई इस कुर्सी की इसलिए भी बड़ी है क्योंकि इस पद पर
बैठने वाले व्यक्ति के पास शक्तियां काफी होती हैं। हजारों करोड़ रुपये
बजट वाली दिल्ली एमसीडी सीधे सीधे लोगों के स्थानीय मुद्दों से जुड़ी हुई
है। एलजी काे बदल दिया। केंद्रीय जांच एजेंसी का तांडव हुआ। इन तमाम तरह
के उलट फेर व हथकंडाे और केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों की पूरी फौज
उतारने के बाद भी भाजपा हार गई,आखिर क्याें ? वैसे ताे एमसीडी में बीजेपी
की हार के पीछे कई कारण हैं लेकिन उनमें से कुछ अहम हैं जिसे समझा जा
सकता है।

एंटी इनकंबेंसी, इस फैक्टर को नकारा नहीं जा सकता है। निगम में पिछले 15
साल से बीजेपी सत्ता में है और यह समय कम नहीं होता है। जाहिर सी बात
इतने वर्षों से सत्ता में रहने पर लोगों की उम्मीदें भी बढ़ जाती हैं।
जिस प्रकार से दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार अरविंद केजरीवाल ने
बदलाव की बात की और यह काम आया। ठीक उसी प्रकार इस बार भी आम आदमी पार्टी
की ओर से बार-बार यह कहा गया कि निगम में बदलाव के बाद चीजें बदल सकती
हैं। इस बार चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार, विधायक और दूसरे
नेताओं की ओर से यह बार-बार इलाके में कहा गया कि वह कई सारी दिक्कतों को
इसलिए दूर नहीं कर पाते क्योंकि निगम में बीजेपी की सत्ता है। यदि निगम
में बीजेपी रहेगी तो दिक्कत दूर नहीं होगी। आम आदमी पार्टी के नेता काफी
हद तक जनता के बीच अपनी बात पहुंचाने में कामयाब रहे।दिल्ली की 70 सीटों
वाली विधानसभा में विधायकों की संख्या ऐसे में सांसदों की जिम्मेदारी
कहीं अधिक बढ़ जाती है। दिल्ली की सातों सीट पर बीजेपी के ही सांसद हैं
और इनमें कई बड़े चेहरे हैं। पार्टी कार्यकर्ता से लेकर आम जनता जहां
विधायक उनकी पार्टी के हैं नहीं सांसदों से भी उनका जुड़ाव नहीं हो पाता
है। पार्टी के जिस सांसद की ओर से लगातार इलाके में बेहतर कार्य किए गए
और जनता से जुड़ाव रहा वहां पार्टी को फायदा हुआ।

दिल्ली एमसीडी चुनाव में इस बार आम आदमी पार्टी ने सफाई का मुद्दा,कूड़े
के पहाड़ की समस्या काे मजबूती के साथ उठाया। पार्टी के नेताओं ने वॉर्ड-वॉर्ड जाकर यह बताया कि
यदि निगम में उनको मौका मिलेगा तो इससे दिल्लीवालों को इस दिक्कत से
निजात मिलेगी। बीजेपी इस मुद्दे पर बैकफुट पर थी। आखिर दिल्ली में बीजेपी
की अगुवाई कौन कर रहा है ? यह सवाल दिल्ली के मतदाताओं के मन में अंत तक
रहा।आदेश गुप्ता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भले ही हैं लेकिन उनकी
लोकप्रियता उतनी अधिक नहीं है कि वह ब्रांड केजरीवाल का मुकाबला कर सकें।
दिल्ली में लंबे समय से बीजेपी को ऐसे नेता की तलाश है जो दिल्ली में
पार्टी की अगुवाई कर सके।दिल्ली की सभी 7 लोकसभा सीटों पर बीजेपी के ही
सांसद हैं। मनोज तिवारी, गौतम गंभीर, हर्ष वर्धन, मीनाक्षी लेखी, रमेश
विधूड़ी, प्रवेश वर्मा। समय-समय पर यह केजरीवाल सरकार की अलग-अलग मुद्दों
पर आलोचना करने के लिए सामने आते हैं। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व की ओर से
किसी एक नेता को आगे नहीं बढ़ाया गया जिसके चेहरे पर पार्टी आगे बढ़ सके।
पार्टी हर चुनाव में चेहरा माेदी का इस्तेमाल करती है। माेदी राज्य ताे
चलाएंगे नहीं । वैसे भी दिल्ली में माेदी के चेहरे का जादू चल नहीं पा
रहा है।