बनारस के साथ पान इंदौर की भी सांस्कृतिक पहिचान

Along with Banaras, Paan is also the cultural identity of Indore

नरेंद्र तिवारी

भारत में पान के सेवन का पुराना प्रचलन है। आधुनिक होते समाज में पान परिवारों से जुदा होकर पान की आधुनिक रुप से सजीधजी पान (दुकानो) शाप पर मिलने लगे है। याद करो तो स्मृति के पटल पर नानी-दादी की पान की टोकरी घूमती दिखाई देती है, जिसमे गीले कपडे में बंधे पान के पत्ते, लोंग, इलायची, सूखा कत्था, चुना, सुपारी और सरोता रखा होता था। यह नानी-दादी की सबसे कीमती टोकरी होती थी। इस टोकरी से छेड़छाड़ नाफ़रमानी समझी जाती थी, पान की टोकरी से छेड़छाड़ करने पर आपको नानी-दादी का कोपभाजन भी बनना पड़ता था। कुलमिलाकर कहे तो खानदानी परिवारों में चाय के बाद पान पर ही लम्बी चर्चा होती थी। पान बनाते हुए गाँव, खेत, खलियान से जुडी बातें, देश की राजनीति से जुडी सामयिक चर्चाए नाना-नानी, दादा-दादी से जुडी पुरानी बाते, मुंह के एक और पान का बीड़ा दबाए कही जाती थी।

पान केवल लबों की शान ही नही, यह स्वादिष्ट जायका है। जिसके सेवन से शरीर में स्फूर्ति आती है। दिमाग़ तरोंताज़ा हो जाता है। वैसे हर गांव, शहर, महानगर में चाय की दुकान, हेयर सेलून के बाद या पहले सार्वजनिक चर्चा और जानकारी के केंद्र यह पान की दुकान ही मानें जाते है। इसे वर्तमान समय का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा की पान की दुकान के नाम पर नुकसान दायक पाउच जर्दा एवं सिगरेट की दूकानों की भरमार हो गयी है। जबकि पान स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। इसका सेवन भोजन के उपरांत करने से हाजमा ठीक रहता है।

भारत में पान कल्चर सदियों से प्रचलित है। यहां तो पान के पत्ते भी बांग्ला, मद्रास, बनारसी, कपुरी, सोहागपुरी, रामटेकी, महोवा जैसे क्षेत्रीय नामो से होते है। पान हमारी संस्कृति के ताने-बाने में कुछ इस तरह रचा बसा है की इसे नजरअंदाज करना मुश्किल है। यह सर्वमान्य और चिकित्सकीय सत्य है की पान सेहत के लिए रामबाण है। सेहत के लिए बेहतरीन पान संस्कृत के शब्द पर्ण से लिया गया है, जिसका मतलब पत्ता होता है। पान का जिक्र पौराणिक कथाओ के साथ आयुर्वेदिक औषधि के रुप में भी किया जाता है। पान का आकार मानव के दिल के आकार का होता है। इसका सेवन दिलो को जोड़ने, दिलो को खुश करने एवं दिल की बाते लबो पर लाने के लिए किया जाता है। निमाड़ की ग्रामीण संस्कृति में लगने वाले पाराम्परिक मेलों में पान का बड़ा महत्व है। यहां आकर्षक कलरफुल मसालो से भरा पान खाकर ग्रामीण महिला-पुरुष ख़ुशी एवं आनंद से भर जाते है।

पान का भारतीय संस्कृति में महत्व का परिणाम ही है की पान से जुड़े गाने फ़िल्मी परदे का हिस्सा बन सके। बॉलीवुड में पान को लेकर बने यादगार गानों में अव्वल नम्बर पर वर्ष 1978 में निर्मित फ़िल्म डान का गीत जिसे सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ने गाया था। ‘खाई के पान बनारस वाला’ जिसकी शूटिंग के दौरान अधिक पान खाने से अमिताभ के मुंह में छाले हो गए थै। पान चबाते चबाते उनका मुंह जल गया था। पान से जुड़े चर्चित नगमों में ‘ पान खाए सैया हमारे, सावली सुरतिया होंठ लाल-लाल’ फ़िल्म शोले, ‘चली आना तू पान की दुकान पर साढ़े तीन बजे’ फ़िल्म आज का अर्जुन शामिल है। ये नग्मे अक्सर पान की रंगीन संस्कृति और उसकी मिठास को गीत के बोलो में बुनते है। इन गानों में पान को न सिर्फ एक जायके के रुप में, बल्कि भावनाओं और माहौल को रंगने वाले प्रतिक के तौर पर इस्तेमाल किया गया है।

भारत के सांस्कृतिक केंद्र इतिहास, संस्कृति एवं पर्यटन के संगम स्थल बनारस में पान का महत्व बहुत अधिक है जिसका कारण वेदों पुराणों में वाराणसी को पान का भंडार कहा गया है। काशी के राजाओ ने पान को राज सजावट और अतिथि सत्कार का हिस्सा बनाया जिसमे यह धीरे-धीरे शहर की पहिचान बन गया।
एमपी का शहर इंदौर भी पान के बेहतरीन जायके के रुप में अपनी पहि

चान रखता है। इस शहर में हर चौराहे पर पान कि सजी धजी दुकाने स्थित है। अभी 4 नवम्बर को इंदौर के जाने-मानें सरकारी तंबोली राम नारायण चौरसिया का निधन हो गया। यह पान के बड़े एवं पुराने व्यवसाई मानें जाते है। जिनके परिवार को होल्कर राज परिवार द्वारा सरकारी तंबोली का तमका दिया गया था। इंदौर कोठारी मार्केट के सामने स्थित पान की दुकान पर पान खाने एवं यहां लगे चित्रों, पेपर कटिंग देखकर अहसास हुआ की यह पुरानी दुकान है जिसका संबंध और निकटता होल्कर राज घराने से रही है। यहां का पान खाने में स्वादिष्ट और जायकेदार होता है। इसी शहर में पान की दुकानों पर करणावत ब्राड का प्रभाव भी दिखाई देता है। जानकारी के अनुसार करणावत की दुकानों पर बेहद स्वादिष्ट एवं अलग-अलग किस्मो के पान मिलते है। इंदौर शहर में करणावत की 45 से अधिक दुकाने संचालित है। इन्होने पान के साथ अब भोजन प्रसादी के भी आउट लेट खोले है जो 80 से 100 रू में भोजन कराते। पान के साथ भोजन प्रसादी करणावत परिवार कि सेवा गतिविधि कही जा सकती है। इतनी कम राशि में सम्मान से भरपेट भोजन वह भी आउटलेट खोलकर वह भीस्वयं सेवा के यह स्टाल करणावत कि ख्याति में चार चाँद लगा रहे है। इंदौर में करणावत पान का अपना जायका है। इस पान की विशेषता लबों को सुर्ख कर देने वाला कत्था है। सूत्रों के अनुसार इंदौर की दुकानों के लिए स्पेशल कत्था एक ही स्थान से पहुंचाया जाता है।

पान भारत के हर प्रदेश में मिलता है। यह भोजन उपरांत आमजन की जबान की मांग को दर्शाता है। मुंबई में पान की दुकानों को देखने पर पाया की यूपी के चौरसिया यहां अधिकांश पान दुकानों के संचालक है। लखनऊ में पान के नवाबी अंदाज के दर्शन हुए। हर शहर में पान के अपने रंग है। किंतु अब पान की यह दुकाने मानव शरीर को नुकसान पहुंचाने वाली तम्बाकू, कीमाम, चटनी और नुकसान दायक पाउच का इस्तेमाल बहुतायत में करने लगी है। पान की दुकानों पर पान कम पाउचो की लड़िया करीने से सजी होकर युवा वर्ग को आकर्षित करती है। राज्य सरकारों को तम्बाकू युक्त जहरीले जानलेवा पाउचों पर सख्त प्रतिबंध लगाना चाहिए। महाराष्ट्र राज्य में यह प्रतिबंध राज्य सरकार ने लगाया किंतु जानकार सूत्र बताते है की तम्बाकू युक्त पाउचों की तस्करी पड़ोसी सीमावर्ती राज्यों से की जाती है। यह तस्करी महाराष्ट्र और गुजरात से बड़े पैमाने पर जारी है। इंदौर से धुलिया, नाशिक, पूना, मुंबई और अन्य महानगरो में ट्रेवल्स की बसों के माध्यम से नकली गुटका महाराष्ट्र पहुंचाया जाता है। गुजरात से भी तम्बाकू युक्त नकली पाउच महाराष्ट्र जाने की चर्चाए आमजन के मध्य चलती रहती है। तस्करी के इस गौरख धंधे में महाराष्ट्र, एमपी एवं गुजरात पुलिस का भष्ट्र रवैय्या नागरिक समाज के शारीरिक सुधार के लिए राज्य सरकार के प्रयासों को पलिता लगाने वाला है। शुद्ध पान जिसमे लोंग,इलायची, सौंफ, चुना, कत्था, पिपरमेंट युक्त हो मानव शरीर के लिए औषधि का कार्य करता है।

पान बनारस में जहां संस्कृति की पहिचान है। बरसो से काशी के पान विश्व विख्यात है। आज भी बनारस के पान स्वाद से भरपूर है। इंदौर में भी पान का इतिहास राजा महाराजों के दरबार से जुडा है। इंदौर के सरकारी तम्बूली की दुकान पर दिखा पुराना इतिहास तो यही कहता प्रतीत हो रहा है, जिसे करणावत ने नया जायका दिया है।