शिक्षा देने के साथ बच्चों को जीने की कला भी सीखाएं

अशोक मधुप

आज हमारा ध्यान बच्चों की शिक्षा पर है।उन्हें योग्य बनाने पर है।योग्य भी इतना की 100 में 95 अंक पाना भी स्वीकार नहीं। पेपर के निर्धारित पूरे अंक चाहिए। इन सबके बीच हम बच्चों के समग्र विकास पर ध्यान नही दे पा रहे। बच्चों की शिक्षा पर माता− पिता का ध्यान ज्यादा है। बच्चों के शारीरिक विकास पर नहीं। बच्चों के मानसिक विकास पर नहीं,जबकि जरूरी है कि बच्चों को जीवन जीना सिखाया जाए।विपरीत समय में कैसे बचे, सुरक्षित रहे, या कोई नही बता रहा।जबकि बहुत जरूरत है सभी बच्चों को जीवन जीना सीखने की कला सिखाई जाए।उन्हें प्रत्येक विपरीत परिस्थिति के लिए तैयार किया जाए। उन्हें बताया जाए कि किसी आपदा या संकट में फंस जाएं तो उससे कैसे बचे।

कोलंबिया के अमेजन के जंगल में मई में एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस घटना में लापता हुए चार बच्चे घटना के 40दिन बात जीवित मिले। कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने यह घोषणा की। राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने शुक्रवार देर रात ट्विटर पर कहा, पूरे देश के लिए खुशी की बात है! कोलंबिया के जंगल में 40 दिन पहले लापता हुए चारों बच्चे जिंदा मिल गए हैं।

उन्होंने सैन्य और स्वदेशी समुदाय के कई सदस्यों की एक तस्वीर भी साझा की, जो भाई-बहनों लेस्ली जैकबॉम्बेयर मुकुतुय (13), सोलेनी जैकबॉम्बेयर मुकुतुय (9), टीएन रानोक मुकुतुय (4) और क्रिस्टिन रानोक मुकुतुय (1) की थी।एक बयान में राष्ट्रपति ने इसे मैजिकल डे करार दिया, और कहा− ये अकेले थे, उन्होंने जीवन संघर्ष का ऐसा उदाहरण पेश किया, जो इतिहास में बना रहेगा।गौरतलब है कि एक मई को, सेसना 206 लाइट एयरक्राफ्ट अमेजॅनस प्रांत में अरराकुआरा और ग्वावियारे के एक शहर सैन जोस डेल ग्वावियारे के बीच उड़ान भरने के दौरान गायब हो गया।दुर्घटना के बाद से खोजी कुत्तों के साथ 100 से अधिक सैनिकों को खोज और बचाव कार्यों में लगाया गया है।पिछले महीने विमान का मलबा और पायलट तथा दो वयस्कों के शव मिले थे।उड़ान के शुरुआती घंटों में ही पायलट ने इंजन के फेल होने की सूचना दी और आपातकालीन अलर्ट जारी किया। इसके बाद विमान घने जंगल में जाकर क्रैश हो गया। दुर्घटना के परिणामस्वरूप पायलट और बच्चों की मां मागदालेना मुकुटुय सहित तीन वयस्कों की मौत हो गई और उनके शव विमान के अंदर पाए गए। जबकि 13, नौ, चार साल और बारह महीने के चारों बच्चे 40 दिन बाद जीवित पाए गए।

कोलंबिया के राष्ट्रपति ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि मुझे उन्हें देख कर बेहद खुशी हुई क्योंकि बच्चों ने जंगल के बीच में अकेले अपना बचाव किया था। रेस्क्यू टीम को बच्चों के पास से कुछ फल मिले हैं। बता दें कि चारों बच्चे आपस में भाइ −बहन है। इन बच्चों ने खुद के लिए झाड़ियों का छोटा एक घर भी बना लिया था। इस घर में ये चारों एक साथ पाये गए। खुद को जीवित रखने के लिए इन बच्चों ने 40 दिन तक घने जंगल में पेड़ों से फल तोड़कर खाए।सर्च डाग ने इनके गिरे फल से ही इनका पता लगाया।हालाकि चालिस दिन में ये बच्चे बहुत कमजोर हो गए थे।

इन बच्चों के दादा फिडेंशियो वैलेंशिया ने बताया कि दुनिया में कभी कोई बच्चा इतने मुश्किल हालात में जिंदा रहना जानता है तो वह वह मुकुतुय परिवार का हो सकता है। इन चारों में दो बड़े बच्चे लेस्ली और सोलेनी जंगल में जिंदा रहने वाली कला से बखूबी वाकिफ थे। उन्होंने बताया हुई तोतो कबीले के सदस्य बहुत कम उम्र में ही शिकार करना,मछली पकड़ना और खाने −पीने का सामान जमा करना सीखने लगते हैं। कोलंबिया के मीडिया से बात करते हुए इन बच्चों की चाची दमारिस मुकुतुय ने बताया उनके परिवार के बच्चे जब बड़े हो रहे होते हैं , तो वे खानदान के दूसरे लोगों के साथ जिंदा रहने का खेल खेलते हैं। उन्होंने अपना बचपन याद करते हुए कहा कि जब हम सब बचपन में खेल खेलते थे तो हम छोटे-छोटे तंबू बनाया करते थे ।उन्होंने बताया कि 13 साल की लेस्ली को पता था कि कौन से फल नहीं खाने हैं क्योंकि जंगल में बहुत से फल जहरीले मिलते हैं। लेस्ली को छोटे बच्चे का ख्याल रखना भी अच्छी तरह आता था. दुर्घटनाग्रस्त विमान के मलबे से लेस्ली ने फैरून नाम का एक तरह का आटा भी खोज निकाला. जब तक यह आटा रहा तब तक यह बच्चे इसी पर गुजर करते रहे. बच्चों की तलाशी अभियान में हिस्सा लेने वाले हुई तूतो समुदाय के बुजुर्ग एडमिन पाखी ने बताया कि आटा खत्म होने के बाद चारों बच्चे जंगली फल के बीज खाने लगे. इन्हीं बचे मिले फल से बच्चों की खोज हुई।

बच्चों के दादा कहते हैं कि मुकुतुय परिवार के बच्चों को बचपन से ही विपरीत परिस्थिति में जंगल में आदमी के जीने की कला सिखाई जाती है। कोलंबिया में मुकुतुय परिवार को यह कला सिखाई जाती है किंतु हिंदुस्तान में तो प्रायः सरकारी स्कूल के कक्षा तीन से लेकर कक्षा आठ तक सारे बच्चे ये कला सीखते हैं। ये शिक्षा है स्काउट की। इसमें स्काउट (लड़के)/ गाइड (लडकियों) को बताया जाता है कि जंगल में फंसने पर पेड़ −पौधों की छाल से कैसे रोटी बनानी है। तवा ना होने पर भी पत्थर पर कैसे रोटी को सेकनी है। बिना माचिस कैसे आग जलानी है । वन में रास्ते पर चलते निशान लगाते चलना है कि पीछे आने वाले को सुविधा रहे।बिछड़े साथियों की टीम के लिए किस तरह का इशारा करना है। जंगल में जरूरत पर रस्सी से कैसे पुल तैयार करना है। मुसीबत में फंसे साथी की कैसे मदद करनी है।एक वाक्य में इन्हें जिम्मेदार और आदर्श नागरिक बनना सिखाया जाता है। स्काउट/गाइड आंदोलन का उद्देश्य युवाओं के शारिरिक, बौद्धिक, समाजिक, भावात्मक औऱ आध्यात्मिक विकास में मदद कर उन्हें स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक जिम्मेदार नागरिक बनाना है। किंतु जब से प्राइवेट क्षेत्र में शिक्षा का चलन बढ़ा तब से यह सब खत्म हो गया। सीबीएसई/आइसीएसई शिक्षा में नंबर ज्यादा आने से बच्चों के अभिभावकों का बच्चों से ज्यादा उनकी पढ़ाई पर ध्यान रहने लगा। उनका दबाव रहता है कि बच्चे ज्यादा से ज्यादा नंबर लाएं ।इसीलिए स्कूल के बाद ट्यूशन पढ़ने का चलन जोर पकड़ गया। आज की प्राइवेट शिक्षा में छोटी क्लास से लेकर इंटर तक का बच्चा पढ़ाई की मशीन बनकर रह गया ।स्कूल में आठ घंटे लगाने के बाद बच्चों को सभी सब्जेक्ट की ट्यूशन पढ़ने हैं। चार सब्जेक्ट की ट्यूशन के लिए चार घंटे चाहिए ।एक टयूशन से दूसरे टयूशन तक जाने के लिए बच्चों को लगभग तीन से चार घंटे लगते हैं। इस तरह से आज के बच्चे और किशोर 15 से 16 घंटे पढ़ाई के लिए तैयार होने और पढ़ाई पर लगते हैं। इसके बाद भी मां-बाप का दबाव रहता है कि स्कूल और टयूशन का होमवर्क करना है।इतना सब होने के बाद बच्चे और किशोर को खेलने के लिए और अपने व्यक्तिगत विकास के लिए समय नहीं मिलता ।आज के मां-बाप का इस बच्चे के व्यक्तिगत विकास पर उनका ध्यान नहीं उनका जितना जोर बच्चों की पढ़ाई पर है। उनकी एकाग्रता इस बात पर है कि बच्चे ज्यादा से ज्यादा नंबर लाएं ।सौ नंबर के पेपर में अपने बच्चे द्वारा उन्हें 90− 95 नंबर लाना भी गंवारा नहीं। वे चाहतें हैं कि बच्चा 100 में 100 ही नंबर लाए। इन सबके के बीच बच्चे का व्यक्तिगत विकास रूक जाता है। वह जिम्मेदार नागरिक बनने की जगह किताबी कीड़ा बनकर रह जाता है।

आज जरूरत है कि बच्चे, किशोर और आने वाली पीढ़ी को जिम्मेदार नागरिक बनने की शिक्षा दी जाए, नागरिक बनाना हमारी और समाज की जिम्मेदारी है। हमें उन्हें सीखाना है कि आपदा,तूफान,जंगल में फंसने पर उन्हे कैसे अपनी सुरक्षा करनी है आत्म सुरक्षा करना सीखने के साथ ही उन्हें अपने परिवार और साथी की मदद करनी है।उन्हें भी बचाना है। बच्चे और किशोरों को विपरीत हालात में जीने के लिए ढ़ाला जाना चाहिए। अच्छा है कि उत्तर प्रदेश में प्रदेश सरकार के विद्यालयों में कक्षा तीन से इंटर तक स्काडट / गाइड की ट्रेनिंग की व्यवस्था है।कुछ एनजीओ भी इस कार्य में लगी हैं।इस बार से नई शिक्षा व्यवस्था में उत्तर प्रदेश सरकार अपने विद्यालयों में कक्षा तीन से आठ तक स्काडट/गाइड की पढ़ाई कराने जा रही है। जरूरी है कि ये स्काउट गाइड की शिक्षा देश के सभी शिक्षण संस्थाओं में समान रूप से लागू हो। चाहें वे सरकारी हो या प्राइवेट।बच्चों और किशोरों को जूडे− कराटें की भी शिक्षा दी जाए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)