
सुनील कुमार महला
ईरान-इस्राइल के बीच युद्ध के कारण पश्चिम एशिया में संकट के बादल मंडरा रहे हैं और विश्व तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ा नजर आ रहा है। ईरान-इजरायल के बीच जारी युद्ध के बीच हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान की तर्ज पर एकाएक दोनों देशों के बीच अलसुबह सीजफायर की घोषणा कर सभी को एक बार फिर चौंका दिया, लेकिन स्थिति ढाक के तीन पात वाली रही और दोपहर बाद से ही दोनों पक्षों की तरफ से उसके उल्लंघन की खबरें भी आने लगीं। कहना ग़लत नहीं होगा कि इजराइल और ईरान के बीच युद्ध विराम(सीजफायर) पर सहमति की खबर निश्चित रूप से अच्छी बात है, क्यों कि किसी भी युद्ध को किसी भी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता है, जैसा कि युद्ध तबाही, विनाश को तो जन्म देते ही हैं, साथ ही साथ युद्ध से किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है और वह देश विशेष जो युद्ध में शामिल होते हैं, बरसों तक आर्थिक रूप से उबर नहीं पाते हैं। कुल मिलाकर किसी भी युद्ध से मानवता बहुत ही बुरी तरह से पीड़ित और त्रस्त होती है और युद्ध से पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। हाल फिलहाल ईरान इजरायल युद्ध के कारण पश्चिम एशिया लगातार अस्थिरता का सामना कर रहा है और यदि इसी प्रकार से दोनों देशों के बीच युद्ध लंबे समय तक जारी रहता है तो यह दोनों देशों के साथ ही संपूर्ण विश्व के लिए ठीक नहीं ठहराया जा सकता है। हाल फिलहाल, जहां तक बात अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एकाएक सीजफायर की घोषणा की है, तो भारत द्वारा पाकिस्तान व पीओके पर ऑपरेशन सिंदूर के समय में(जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद)भी ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर(युद्ध विराम) के आधिकारिक एलान से पहले ही यह दावा कर दिया था, कि उन्होंने मध्यस्थता करके दोनों देशों(भारत-पाकिस्तान) को इसके लिए सहमत कर लिया है, हालांकि, बाद में भारत ने तुरंत ही मध्यस्थता का खंडन कर दिया था। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आनन-फानन में दो देशों के बीच युद्ध विराम की घोषणा तो कर देते हैं, लेकिन इसकी जानकारी उनके अधिकारियों तक को भी नहीं होती है। इससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति अपने मन में नोबेल शांति पुरस्कार पाने की लालसा पाले हुए हैं। यह ठीक है कि युद्ध किसी भी समस्या का स्थाई समाधान नहीं होता है और किसी भी देश को युद्ध विराम के लिए निश्चित रूप से आगे आकर काम करना चाहिए और शांति स्थापित करने के दिशा में आवश्यक कदम उठाने चाहिए, लेकिन अमेरिका एक तरफ तो ईरान के खिलाफ जंग(ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला) में उतरने का फैसला करते हैं और दूसरे ही पल वह दोनों देशों के बीच सीजफायर की घोषणा कर डालते हैं, यह बहुत ही आश्चर्यजनक बात है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि ट्रंप की ईरान-इस्राइल के बीच सीजफायर की घोषणा ऐसे समय में हुई है, जब नोबेल शांति पुरस्कार के नामांकन की प्रक्रिया जारी है। गौरतलब है कि ट्रंप पहले ही सर्बिया-कोसोवो, मिस्त्र- इथियोपिया और पश्चिम एशिया में अब्राहम समझौते जैसी कूटनीतिक पहलों को नोबेल पुरस्कार से जोड़ चुके हैं।इससे यह साफ संकेत मिलता है कि ट्रंप अपनी ताजा युद्ध विराम की घोषणा को भी नोबेल के लिए मजबूत दावेदारी के रूप में पेश करना चाहते हों। वास्तव में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि नोबेल पुरस्कार तात्कालिक उपलब्धियों के लिए नहीं, बल्कि दीर्घकालिक शांति प्रयासों के लिए दिए जाते हैं। ऐसे में ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार पाने के लिए लालायित होना कदापि ठीक नहीं ठहराया जा सकता है। वैसे भी ट्रंप की सीजफायर की घोषणा के बाद भी ईरान-इस्राइल संघर्ष थमा नहीं है और दोनों ही देश एक दूसरे की जान के दुश्मन बने हुए हैं। वास्तव में किसी भी युद्ध को शांति वार्ता टेबल पर ही खत्म किया जा सकता है, यूं ही आनन-फानन की घोषणाओं(सीजफायर) से कदापि नहीं। किसी भी युद्ध को रोकने के लिए आपसी संवाद और कूटनीतिक प्रयासों की जरूरत होती है, तभी युद्ध विराम संभव हो पाता है। वास्तव में, ट्रंप को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि पश्चिम एशिया का इतिहास और इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक स्थिति काफी जटिल रही है।यह ठीक है कि ट्रंप के सीजफायर के पीछे उनकी कूटनीतिक महत्वाकांक्षाएं रहीं हैं लेकिन स्वयं अमेरिका ने ईरान को लेकर क्या किया,उसका भी ख्याल अमेरिका को रखना ही चाहिए। अमेरिकी सीजफायर के आह्वान के बावजूद, जिस तरह से ईरान और इस्राइल, दोनों ने ही इसका उल्लंघन किया, यह बहुत ही अफसोसजनक है तथा इसने पश्चिम एशिया में कहीं न कहीं संकट के बादल खड़े कर दिए हैं। ट्रंप भले ही शुरूआत से ही सीजफायर की बात करता आ रहा है लेकिन अमेरिका स्पष्ट रूप से इजराइल के साथ खड़ा नजर आ रहा है, जैसा कि अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर भीषण हमले करके इसकी पुष्टि भी कर दी। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि युद्ध किसी भी देश को बरसों पहले की स्थिति में ले जाते हैं और इससे उबरना इतना आसान नहीं होता है। इसलिए अब जरूरत इस बात की है कि इस बात पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि दोनों देशों के बीच युद्ध स्थाई रूप से कब और कैसे विराम ले। हाल फिलहाल ईरान और इजरायल (ट्रंप की सीजफायर की घोषणा के बाद) एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं और एक-दूसरे को दोषी करार दे रहे हैं, यह ठीक नहीं है। कहना ग़लत नहीं होगा कि यदि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप सचमुच शांति के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण वातावरण बनाने की जिम्मेदारी उन्हीं पर अधिक है। युद्ध अमानवीयता की पराकाष्ठा होते हैं और दोनों देशों के इस युद्ध में जान-माल दोनों का ही नुकसान हुआ है। पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर भी इससे व्यापक असर पड़ा है। यह तो बहुत ही अफसोसजनक है कि परमाणु विकिरण की परवाह किए बिना अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर बम गिरा दिए। आज जरूरत इस बात की भी है कि संयुक्त राष्ट्र दो देशों के बीच युद्ध जैसी परिस्थितियों को रोकने के लिए आगे आए, लेकिन यह देखा जा रहा है कि पिछले कुछ समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अब जैसे अप्रासंगिक हो गई है। अंत में यही कहूंगा कि अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को यह चाहिए कि वह समय रहते दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थितियों को टालने और उसे रोकने के व्यावहारिक, प्रभावी व जिम्मेदार उपायों की तलाश करे। तभी दोनों देशों के बीच स्थितियां सामान्य हो पाएगी और अमेरिका को पूरी दुनिया एक अलग व अच्छी नजर से देखेगी।