डॉ. कर्ण सिंह के सार्वजनिक जीवन में 75 वर्ष पूरे होने पर आयोजित हुआ अमृत वर्ष अभिनंदन समारोह

Amrit Varsh felicitation ceremony organized on completion of 75 years of Dr. Karan Singh's public life

पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. कर्ण सिंह के सार्वजनिक जीवन में 75 वर्ष पूरे होने पर आयोजित समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा अभिव्यक्त भावनाओं का लोगों के मन पर गहरा प्रभाव

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

ऐसे मौक़े बहुत कम आते है जब देश की महान हस्तियाँ निष्पक्ष भाव से भाव विभोर होकर अपनी अभिव्यक्तियों को सार्वजनिक करती हैं। ऐसा ही सुअवसर नई दिल्ली में एक समारोह में देखने को मिला । अवसर था 93 वर्षीय पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. कर्ण सिंह के सार्वजनिक जीवन में 75 वर्ष पूरे होने पर नई दिल्ली के इण्डिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित अमृत वर्ष अभिनंदन समारोह का जिसमें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का उपस्थित रहना और मंच पर कई बार एक दूसरे के साथ हँसी मजाक तथा परस्पर आदर सम्मान की भावनाओं की अभिव्यक्ति करना सभी उपस्थित लोगों के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ गया।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने अपने सम्बोधन में कहा मैं सचमुच बहुत अभिभूत हूँ,यह मेरे लिए एक ऐसा क्षण है जिसे मैं सदैव याद रखूँगा, इस स्थान पर, इस पद पर, इस अवसर पर मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वे डॉ. सिंह पर अपनी असीम कृपा बनाए रखें ताकि वे हमारे बीच बने रहें और अपने उत्कृष्ट गुणों, प्रेरक व्यवहार और विद्वत्तापूर्ण व्यक्तित्व के माध्यम से राष्ट्र और मानवता की सेवा करते रहें। मुझे सांसद, केंद्रीय मंत्री, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और अब उपराष्ट्रपति रहते हुए उनके अनुभव से लाभ उठाने का सौभाग्य मिला हैं।

धनखड़ ने कहा कि हाल ही में, मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे उनके साथ कई अवसरों पर बातचीत करने का मौका मिला और मैं उनके गहन ज्ञान और अमूल्य मार्गदर्शन से प्रेरणा लेता रहा। पिछली बार मुझे डॉ. कर्ण सिंह के बारे में बोलने का सौभाग्य उनके 90वें जन्मदिन के अवसर पर मिला था। सार्वजनिक सेवा में उनकी यात्रा उसी दिन शुरू हुई जिस दिन उनका जन्म हुआ था। डॉ. सिंह की सादगी, विनम्रता और गर्मजोशी भरे व्यवहार की व्यापक रूप से प्रशंसा की जाती है। उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों ने लगातार समाज और राष्ट्र दोनों को लाभान्वित करते हुए इनकी व्यापक भलाई की है।

राजस्थान में शेखावाटी और मेवाड़ के ऐतिहासिक क्षेत्र जम्मू-कश्मीर से बिल्कुल अलग से लगते थे, खासकर मेरी किशोरावस्था के दौरान, जब यात्रा और संचार के तेज़ साधन इतनी बड़ी दूरियों को पाटने के लिए पर्याप्त नहीं थे। फिर भी, तब भी, एक नाम उस विकट अंतर को पार करने में कामयाब रहा। एक ऐसा नाम जिसे मैं अक्सर प्रशंसा के साथ सुनता था। यह जम्मू-कश्मीर के प्रधान रहे एक तेजतर्रार युवा राजकुमार का नाम था, डॉ. कर्ण सिंह। 16 वर्ष की आयु में, वे राष्ट्र के इतिहास के एक महत्वपूर्ण क्षण में विलय के साधन पर हस्ताक्षर के साक्षी बने। उन्होंने सिर्फ़ देखा ही नहीं; उन्होंने उस ऐतिहासिक दस्तावेज़ की नींव को मज़बूत किया।18 वर्ष की आयु में, उन्होंने रीजेंट की भूमिका निभाई। एक महत्वपूर्ण अवसर। मैं केवल 20 जून, 1949 को उस दृश्य की भव्यता की कल्पना कर सकता हूँ, जब वे रीजेंट के रूप में दिल्ली से श्रीनगर पहुँचे और शेख अब्दुल्ला और उनके मंत्रिमंडल ने हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया। उस क्षण में, उन्होंने न केवल अपना, बल्कि हमारे इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर भारत की शक्ति और संप्रभुता का प्रतिनिधित्व किया।

शायद आज के कार्यक्रम के आयोजकों के मन में 1949 का वह महत्वपूर्ण दिन था, जब उन्होंने डॉ. सिंह की 75 साल की सार्वजनिक सेवा का सम्मान करने का फैसला किया। लगभग उसी समय डॉ. सिंह ने अपने निजी जीवन में एक नया अध्याय शुरू किया, जब उन्होंने नेपाल की कुलीन राजकुमारी यशोराज्य लक्ष्मी से विवाह किया। साथ में, वे दोनों शालीनता और गरिमा के उदाहरण थे, जो उन सभी के भी प्रिय थे, जिन्हें उन्हें जानने का सौभाग्य मिला। मेरे कई डोगरा मित्र डॉ. सिंह के व्यक्तिगत गुणों की प्रशंसा करते हैं तथा उनके ज्ञान और गर्मजोशी की प्रशंसा करते हैं, जबकि यशोराज्य लक्ष्मीजी को गहरे स्नेह, प्रेम और सम्मान के साथ याद करते हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि डॉ. सिंह के योगदान को सिर्फ़ 75 वर्षों तक सीमित करना उनकी शानदार विरासत की व्यापकता को बयां नहीं कर सकता। फ्रांस में जन्मे, वे लाक्षणिक रूप से अग्नि में तप कर इतिहास के साक्षी बने और इतिहास में ऐसे भागीदार बने जिसका दावा बहुत कम लोग कर सकते हैं। डॉ. कर्ण सिंह उन कुछ लोगों में से हैं जिन्हें 75 वर्षों से अधिक समय तक बाहरी दृष्टि और बाहरी राजनीति के साथ अंदरूनी ध्यान के साथ राजनीति के अंदरूनी सूत्र होने का लाभ मिला। इस अर्थ में वे गणतंत्र से भी पुराने हैं।

डॉ. सिंह ने सात दशकों से अधिक समय तक राष्ट्र के उत्थान को देखा है, जो वर्तमान में अभूतपूर्व आर्थिक उछाल और वृद्धिशील विकास पथ पर है, जो 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि आज भारत के भीतर और बाहर से विरोधी ताकतों का एक साथ आना चिंताजनक है। साथ ही राष्ट्र विरोधी आख्यान भी। राष्ट्रीय भावना को प्रभावित करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है ताकि इन हानिकारक ताकतों को बेअसर किया जा सके।

धनखड़ ने कहा कि डॉ. कर्ण सिंह का योगदान विशाल और स्थायी है। जब भारत के पूर्व राजा महाराजाओं, राजकुमारों और देश की एकता को मजबूत करने में उनकी भूमिका का इतिहास लिखा जाएगा, तो निस्संदेह डॉ. सिंह को बहुत सम्मान दिया जाएगा।1967 में शाही सुख-सुविधाओं से,विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर के संवैधानिक राज्य प्रमुख के रूप में, चुनावी राजनीति में नाटकीय परिवर्तन करने का उनका निर्णय एक साहसिक और दूरदर्शी कदम था।
ऐसा करके उन्होंने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की, 13 मार्च 1967 को 36 वर्ष की आयु में वे केंद्रीय मंत्रिमंडल के सबसे कम उम्र के सदस्य बन गए। यह न केवल उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, बल्कि देश के युवाओं के आगमन का भी संकेत था, जो जिम्मेदारी उठाने और राष्ट्र के भविष्य को आकार देने के लिए तैयार थे।

डॉ. सिंह लंबे समय से अंतर-धार्मिक सद्भाव के हिमायती रहे हैं, उन्होंने कई सार्वजनिक बैठकों और सम्मेलनों में इसके लिए वकालत की है, जिनमें से कई का अच्छी तरह से दस्तावेजीकरण किया गया है। पिछले कुछ वर्षों में, वे आध्यात्मिकता और दर्शन के क्षेत्र में इतने प्रमुख व्यक्ति बन गए हैं कि जब भी महान विचारकों का उल्लेख किया जाता है, तो उनका नाम स्वाभाविक रूप से सामने आता है। विवेकानंद की बात करें तो डॉ. सिंह का नाम दिमाग में आता है। अरबिंदो का जिक्र करें तो डॉ. सिंह उनके सबसे विद्वान शिष्यों में से एक के रूप में सामने आते हैं। उनके ज्ञान और काम का विशाल भंडार, जिसमें दर्जनों किताबें शामिल हैं, उनकी बौद्धिक खोज की गहराई को दर्शाता है। एक सच्चे कवि-दार्शनिक के रूप में उन्होंने दर्शन, आध्यात्मिकता और पर्यावरण जैसे विविध विषयों का अन्वेषण किया है। अपनी मातृभाषा डोगरी के प्रति उनका गहरा प्रेम उनकी लिखी कई किताबों में झलकता है।

धनखड़ ने कहा कि शायद उनकी सबसे कम सराहना की जाने वाली उपलब्धियों में से एक भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ के संरक्षण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। अगर बाघ भारत की वन्यजीव विरासत का प्रतीक बना हुआ है और “प्रोजेक्ट टाइगर” पहल के माध्यम से इसका अस्तित्व सुनिश्चित किया जा रहा है, तो यह काफी हद तक डॉ. सिंह की अटूट प्रतिबद्धता के कारण है। इसलिए, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उन्हें कभी-कभी उनके विचारों और कार्यों में दृढ़ता और ताकत के लिए प्यार से “बाघ” के रूप में संदर्भित किया जाता है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि कार्यपालिका शासन कार्यपालिका के लिए अनन्य है, जैसे विधान विधायिकाओं के लिए और फैसले न्यायालयों के लिए। न्यायपालिका या विधानमंडल द्वारा कार्यकारी अधिकार का प्रयोग लोकतंत्र और संवैधानिक नुस्खों के अनुरूप नहीं है। यह स्थापित स्थिति है क्योंकि शासन के लिए कार्यपालिका ही विधायिका और न्यायालयों के प्रति उत्तरदायी और जवाबदेह है। न्यायपालिका द्वारा कार्यकारी शासन न्यायिक और न्यायिक दृष्टि से संवैधानिक पवित्रता से परे है। हालाँकि, यह पहलू लोगों का सक्रिय ध्यान आकर्षित कर रहा है, जो उनके विचार में ऐसे असंख्य उदाहरणों का संकेत देता है। यह महत्वपूर्ण पहलू डॉ. सिंह और उनके जैसे प्रतिष्ठित लोगों, बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों के स्तर पर गहन चिंतन की मांग करता है। उन्होंने कहा कि इस प्रभावशाली श्रेणी को संवैधानिक सार के प्रति सम्मान सुनिश्चित करने के लिए स्वस्थ ज्ञानवर्धक राष्ट्रीय प्रवचन को उत्प्रेरित करने के लिए प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करने की आवश्यकता है। यह लोकतंत्र के विकास और सभी मानवता में संवैधानिक भावना और सार को पोषित करने में पूर्ण रूप से योगदान देगा।

इस अवसर पर डॉ. कर्ण सिंह ने अपने सार्वजनिक जीवन के 75 वर्षों की गाथा का सिलसिलेवार ज़िक्र किया और देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू , इन्दिरा गांधी , राजीव गाँधी के अलावा फ़ारूख अब्दुल्ला आदि के साथ ही अपनी धर्म पत्नी, बच्चों,निजी सचिवों और निजी सेवकों तक के नामों का ज़िक्र किया । साथ ही बताया कि यदि सरदार वल्लभ भाई पटेल अमरीका जाकर इलाज कराने की सख्त हिदायत एवं सलाह नहीं देते तो मैं हमेशा व्हील चेयर पर ही रहता। उन्होंने दिलचस्प क़िस्सा भी सुनाया कि मेरी पत्नी नेपाल की कुलीन राजकुमारी यशोराज्य लक्ष्मी के जीवन में आने के बाद उनके नाम के अनुरूप मुझे यश,राज और लक्ष्मी तीनों सुख मिलें लेकिन हमेशा की तरह एक बार उनकी सलाह नहीं मान कर मैंने अपना चुनाव क्षेत्र बदला था जिसके कारण मैं चुनाव हार गया और मन में इतनी निराशा आ गई कि मैने राजनीति छोड़ने का मन तक बना लिया लेकिन इन्दिराजी ने मुझे राज्यसभा भेजा। इस प्रकार संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में मुझे बीस बीस वर्षों जनता की सेवा का अवसर मिला।

भारतीय लोकतन्त्र की यह खूबी है कि श्रोताओं को जनतन्त्र के दो सितारों को एक साथ एक मंच पर अपने उद्गारों को इस तरह सुनने के सुनहरे पल का साक्षी बनने का अवसर मिला। देश की भावी पीढ़िया ऐसे प्रेरणास्पद पलों को आत्मसात् कर देश के जनतंत्र को और सुदृढ़ बनायेंगी ऐसी उम्मीद रखनी चाहिए।