…और एक दिन गौरैया भारत से सदा के लिए विलुप्त हो गईं !

-निर्मल कुमार शर्मा

यह कोई कपोलकल्पित भविष्यवाणी नहीं है,अपितु वर्तमान समय में बिल्कुल यथार्थ पर आधारित,कटुसत्यता पर आधारित एक आकलन हैं,क्योंकि आज के सत्ता के बिल्कुल असंवेदनशील,पशु-पक्षियों व समस्त जैवमण्डल के प्रति बिल्कुल उदासीन,क्रूर,असहिष्णु कर्णधारों,भारत की भ्रष्ट और रिश्वतखोर नौकरशाही तथा तथाकथित भारतीय न्याय व्यवस्था में अपने पैतृक वारिस के अधिकार के बल पर बैठे नाकारा,अयोग्य,जनविरोधी मानसिकता तथा पर्यावरण के प्रति बिल्कुल असंवेदनशील जजों की मानसिकता के चलते यह बात दृढता और स्पष्टता से कही जा सकती है कि यहाँ केवल पर्यावरण दिवस,पृथ्वी दिवस,पेड़ दिवस,जंगल दिवस और गौरैया दिवस आदि धूमधाम से मनाने पर करोड़ों-अरबों रूपये फूँककर केवल एक ढोंग किया जाता है,दूसरी तरफ हजारों जीवों की शरणस्थली,लाखों हरे-भरे,सघन पेड़ों को,जंगलों को जो इस जैवमण्डल के प्राणों के,सांसों के आधार हैं,को शहरों के तथाकथित विकास और सड़क चौड़ीकरण के सनक में या अपने पूंजीपति यारों के फायदे के लिए कोलब्लाक आबंटित कर,उन्हें निर्ममतापूर्वक काट दिया जाता है ! हम अपनी कथित मां कहने के बावजूद नदियों और अपने सभी प्राकृतिक जलस्रोतों को भी इतना प्रदूषित कर देते हैं कि उनका जल कोई भी वन्य प्राणी या पक्षी पी ही नहीं सकते ! हम अपने घरों की डिजाइन ऐसी बनाने में दक्ष होते जा रहे हैं,कि हमारी घरेलू गौरैयां या हाउस स्पैरोज हमारे इन कथित आधुनिक बंगलों और पेंट हाउसेज में घुस तक नहीं सकतीं,घोंसले बनाने की बात तो छोड़ दीजिए ! आज के कथित आधुनिक किसान अपने पूरे खेत में अपनी फसलों पर रासायनिक कीट नाशकों का छिड़काव कर देते हैं,जिससे गौरैया सहित अन्य पक्षी भी न वहां एक दाना खा सकते हैं न लार्वा खा सकते हैं ! क्योंकि कीटनाशकों के छिड़काव की वजह से खेतों से कीटों के लार्वा भी पूर्णतः विलुप्त हो गये हैं !

भारत में वनों,वन्य पशु-पक्षियों के विलुप्ति का कारण भ्रष्टाचार है !

“ऊपर से भारत जैसे देश में अति ताकतवर मोबाइल कंपनियों के दबाव में सरकारी अभिलेखों में यह बात कहीं लिखित में उपलब्ध नहीं की गई है कि गौरैया सहित अन्य पक्षी मोबाइल टावरों से निकलने वाले इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन की वजह से मर रहे हैं या विलुप्त हो रहे हैं ! ” इससे ज्यादे विद्रूपता क्या हो सकती है ! इसी का फायदा उठाकर इस देश के भ्रष्ट नेताओं,रिश्वतखोर ब्यूरोक्रेसी और ताकतवर मोबाइल कंपनियों के नापाक गठबंधन द्वारा बेशर्मी से इस देश के स्कूलों,अस्पतालों और आवासीय भवनों तक पर रातों-रात हजारों मोबाइल टॉवर खड़े कर दिए जा रहे हैं ! जबकि दुनिया भर के पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार छोटे परिंदों के मरने के अलावे समस्त जैवमण्डल,मानवप्रजाति,गौरैयों व अन्य सभी जीवों के लिए,हॉर्ट अटैक,ब्रेनहैमरेज, गर्भपात,विकलांगता तथा कैंसर जैसी बीमारियों को न्योता देने वाले लाखों की संख्या में मोबाइल टॉवरों से निकलने वाले तीव्र रेडिएशन ही है ! उक्त वर्णित त्रयी महानुभावों को न वृक्षों,न वनों,न वन्य पशुओं और विलुप्तिकरण के कगार पर खड़ी गौरैयों सहित सैकड़ों पक्षियों के इस धरती से सदा के लिए समाप्त होने आदि से कोई मतलब ही नहीं है ! यहाँ सब कुछ अनाप-शनाप,फिजूलखर्ची तथा अनर्गल कुकृत्य केवल पैसों के घोटाले करने और प्रिंट तथा दृश्य मिडिया में स्वयं को अधिकाधिक ग्लैमराइज्ड करने और प्रचारित करने का एक छद्म कुकृत्य के सिवा कुछ भी नहीं है ! यहाँ एक ही सिद्धांत सर्वोपरि है कि ‘इस देश के सभी जीव-जन्तु,परिंदे,पेड़-पौधे,जंगल आदि सभी कुछ अपनी बला से समाप्त हो जाएं, हमारे पास रिश्वत और कमीशन के लाखों-करोडों की राशि प्रति माह आती रहे ‘ !

महाराष्ट्र के लातूर या बिहार में प्यास से या कीटनाशक मिले दाने खाने से हजारों परिंदे मरे !

कुछ सालों पूर्व एक बहुत दु :खद समाचार महाराष्ट्र राज्य के लातूर नामक जगह से वायरल हुई थी उसके अनुसार वहां हजारों पक्षी प्यास से तड़प-तड़पकर मर गये थे,एक फोटो भी सोशल मिडिया पर वायरल हुआ था,जिसमें कुछ पेड़ों के बीच जानेवाले एक कच्चे रास्ते पर हजारों पक्षी मरे पड़े हुए हैं,हालांकि बाद में इसका खंडन भी आया था कि यह घटना महाराष्ट्र के लातूर की नहीं है,अपितु यह घटना बिहार राज्य के किसी जगह की है,जहां ये अभागे पक्षी कीटनाशक दवा लगे हुए अनाज के दानों को खाकर इतनी बड़ी संख्या में मौत के मुंह में ही असमय ही चले गए थे ! चाहे यह दु :खद घटना लातूर में पक्षियों के प्यास से मरने की हो या बिहार में बिषाक्त अन्न के दाने खाने से हुई हों ! इस प्रकार की दोनों ही घटनाएं बहुत ही दु :खद और त्रासदभरे हैं,मरे तो पक्षी ही हैं ! दोनों ही घटनाओं में सीधे मनुष्य प्रजाति पूर्णतः जिम्मेदार है ! उक्त सभी बातों को देखते हुए हम आज बहुत दुःखी मन से यह भविष्यवाणी करते हैं,कि गौरैयों की वर्तमान समय की पीढ़ी के बाद या उससे पहले ही हमारे यहाँ से सभी गौरैयों का अस्तित्व दुःखद रूप से समाप्त हो जाने की पूर्ण संभावना है ! यही कटुसच्चाई और कटुयथार्थ है।