
सुनील कुमार महला
हर वर्ष दीपावली आती है, उजियारा लाती है। दीपकों की रौशनी हर दिल में नई उम्मीद जगाती है।जित देखो तित दीपों की पंक्तियां सजतीं हैं।इन दीपों की सुंदर आवलियां हर तरफ हवाओं में स्नेह, खुशियां, उल्लास, उमंग बिखेरती हैं। धन, वैभव, मिठास का उत्सव बन जाती है, पर सबसे बड़ा उपहार ‘राम-राम’ कहलाती है। ‘राम-राम’ का अभिवादन प्रेम का संदेश दे जाता है, सच तो यह है कि हर बार दीपावली आती है, पर ‘राम-राम’ रह जाता है। वास्तव में, ‘राम’ दो अक्षर का नाम, कोई साधारण नाम नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई बड़े-बड़े और गूढ़ अर्थ छिपे हुए हैं। इसीलिए प्रायः यह कहा भी जाता है कि ‘राम से बड़ा राम का नाम।’ हिंदू धर्म में राम को केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक महामंत्र माना गया है, जिसका जाप करने से व्यक्ति को समस्त दुखों से मुक्ति मिल सकती है। ‘राम’ नाम का यदि संधि विच्छेद किया जाए तो इस प्रकार अर्थ निकलता है – ‘र+आ+म’। मतलब ‘र’ से ‘रसातल’, ‘आ’ से ‘आकाश’ तथा ‘म’ से ‘मृत्यु लोक।’ अर्थात जो पाताल, आकाश और धरती का स्वामी है वही राम है। वहीं संस्कृत की दृष्टि से देखा जाए तो, रम् धातु में घम प्रत्यय जोड़कर राम बना है। यहां रम् का अर्थ है रमण, रमना या निहित होना, निवास करना और घम का अर्थ है ब्रह्माण का खाली स्थान। इस प्रकार राम का अर्थ पूरे ब्रह्मांड में निहित या रमा हुआ तत्व अर्थात स्वयं ब्रह्म। वैसे ‘राम’ शब्द के अर्थ की यदि हम यहां पर बात करें तो संस्कृत में ‘राम’ (रामः) शब्द धातु ‘रम्’ से बना है, जिसका अर्थ होता है-‘आनंद देना, विश्राम देना, हर्ष प्रदान करना।’ अर्थात् जो स्वयं आनंदस्वरूप है और जो दूसरों को भी आनंद प्रदान करता है, वही ‘राम’ है। इसलिए भगवान राम को आनंद, धर्म, मर्यादा और सत्य के प्रतीक माना गया है। ‘राम’ नाम ब्रह्म का प्रतीक भी है-‘रा’ का मतलब अग्नि (ऊर्जा) तथा ‘म’ का मतलब चंद्र (शीतलता) से है। इन दोनों का मेल दर्शाता है- संतुलित जीवन। उनका पूरा नाम ‘रामचंद्र’ है-जहां ‘चंद्र’ का अर्थ है- ‘शीतलता, सौम्यता और प्रकाश देने वाला।’ इस प्रकार ‘रामचंद्र’ का अर्थ हुआ-‘जो सबको शीतलता, शांति और सुख प्रदान करे।’ ‘राम’ नाम तीन कालों में पूर्ण है। ‘रा’ अक्षर पापों का नाश करता है, ‘म’ अक्षर मोक्ष का मार्ग खोलता है। इसीलिए रामनाम को ‘तारक मंत्र’ कहा गया है-जो जीवन के पार ले जाता है। राम, विष्णु का अवतार कहे गए हैं, लेकिन वे पूर्ण मानव रूप में रहे और उन्होंने कभी चमत्कार से जीवन नहीं चलाया। यह दिखाने के लिए कि मर्यादा और धर्म के बल पर भी ईश्वरत्व पाया जा सकता है। बहुत कम लोग यह बात जानते होंगे कि राम का जन्म ‘नवमी’ को और मरण (जलसमाधि) भी नवमी को हुआ। यानी वे नवमी तिथि से आरंभ होकर उसी तिथि में लीन हुए- यह अद्भुत संयोग है। यह भी एक तथ्य है कि वाल्मीकि रामायण में कहीं भी ‘जय श्री राम’ शब्द नहीं आता। यह नारा बाद में भक्ति परंपरा (विशेषतः तुलसीदासजी की रामचरितमानस) से प्रसिद्ध हुआ। भगवान राम ने किसी से घृणा नहीं की। उन्होंने रावण जैसे शत्रु का भी सम्मान किया, और उसके मरण के बाद लक्ष्मण को कहा-‘जाओ, रावण से ज्ञान लो-अब वह मृत्यु के समीप है, सत्य बोलेगा।’ राम का राज्य (‘रामराज्य’) केवल धार्मिक शासन नहीं था, बल्कि लोककल्याण का आदर्श प्रशासन था-जहाँ कोई दुखी नहीं था, कोई झूठ नहीं बोलता था, और सबको न्याय समान मिलता था। पाठकों को बताता चलूं कि रामनाम का उल्लेख केवल भारत में नहीं, बल्कि थाईलैंड, इंडोनेशिया, कंबोडिया, लाओस आदि देशों की संस्कृति और साहित्य में भी मिलता है। संस्कृत में कहा गया है -‘रमन्ते सर्वत्र इति रामः।’शास्त्रों में निहित एक श्लोक के अनुसार, ‘रमन्ते योगिनः अस्मिन सा रामं उच्यते।’ जिसका अर्थ है कि योगी ध्यान में जिस शून्य में रमते हैं उसे राम कहते हैं।कई विद्वानों ने राम नाम का अर्थ ‘मनोज्ञ’ भी माना है। यहां ‘मनोज्ञ’ का अर्थ है-‘जो मन को जानने वाला हो।’ हमारे यहां दीपावली पर रामा-श्यामा की परंपरा रही है, जो आज भी कायम है। वास्तव में, दीपावली के दूसरे दिन, विशेषकर अन्नकूट के दिन, लोगों के घर-घर जाकर ‘राम-राम’ कहना एक सुंदर परंपरा, हमारा रीति-रिवाज है।यह केवल अभिवादन मात्र ही नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक भाव से भरा हुआ संबोधन है। ‘राम’ का अर्थ है-जो आनंद, शांति और मर्यादा का स्रोत है। जब हम ‘राम-राम’ कहते हैं, तो वास्तव में हम एक-दूसरे को शांति, प्रेम और पवित्रता का आशीर्वाद देते हैं। अन्नकूट का पर्व और ‘राम-राम’ की परंपरा दोनों सामूहिक सौहार्द और साझा संस्कृति के प्रतीक हैं।इस दिन गाँवों और कस्बों में लोग एक-दूसरे के घर जाकर ‘राम-राम’ कहते हैं, भोजन ग्रहण करते हैं और स्नेह का आदान-प्रदान करते हैं। दीपावली दिखावे से दूर, सादगी और आत्मीयता से जुड़ा त्योहार है।अन्नकूट हमें यह सिखाता है कि भोजन बाँटने में आनंद है। वहीं पर, ‘राम-राम’ सिखाता है-मिलजुलकर रहने में ही सच्ची दीपावली है।राम नाम आत्मीयता का प्रतीक है। ‘राम-राम’ कहना भारतीय संस्कृति में शुभकामना का सबसे पवित्र तरीका माना गया है, जो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के गुणों-सत्य, धर्म, और सद्भाव की प्रेरणा देता है।आपस में एक दूसरे को राम-राम कहने की यह परंपरा हमारे समाज में एकता और स्नेह का संदेश फैलाती थी। आज के डिजिटल युग में जब लोग मोबाइल पर शुभकामनाएं भेजकर औपचारिकता निभा लेते हैं, लेकिन दीपावली के दूसरे दिन ‘राम-राम’ कहने की यह परंपरा हमें याद दिलाती है कि सच्चा त्योहार आमने-सामने मिलने, मुस्कुराने और अपनापन बांटने में है। दीपावली के दूसरे दिन हर गली से ‘राम-राम’ की गूंज एक नई ऊर्जा और सामाजिक समरसता का संचार करती है।दीपावली की यही सच्ची भावना है-दीपों की तरह दिलों को भी रौशन करना। अंत में यही कहूंगा कि ‘दीप जलाएं, दिल मिलाएं-राम नाम से रिश्ते सजाएं।’