लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा : स्वागत योग्य प्रयास

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा केंद्र की वर्तमान भाजपानीत सरकार का उनकी सेवाओं से ऊऋण होने का स्वागत योग्य प्रयास कहा जा सकता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने एक्स पोस्ट के जरिए शनिवार को देश के सामने इस बारे में जब यह घोषणा की तो देश के अधिकांश नागरिकों के साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के आम स्वयं सेवक का सीना गर्व से चौड़ा होना स्वाभाविक ही था। अयोध्या में निर्मित भव्य श्री राम मन्दिर के उद्घाटन के बाद 75 वें गणतंत्र दिवस पर जब बिहार के जमीनी नेता स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न अलंकरण प्रदान करने की घोषणा की गई थी तब भी कहा गया था कि लाल कृष्ण आडवाणी भी इस सम्मान के हकदार है। क्योंकि सबसे पहले राम रथ यात्रा निकालने वाले आडवाणी ही थे।

प्रधानमंत्री मोदी ने भारत रत्न की घोषणा के साथ ही अपने वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी से भी बात की और उन्हें यह सम्मान मिलने पर बधाई दी।आडवाणी ने भी बहुत विनम्रता के साथ भारत सरकार की घोषणा पर आभार जताया। उन्होंने इस सम्बन्ध में एक बयान भी जारी किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सोशल मीडिया हेंडल एक्स पर पोस्ट लिखा कि “मुझे यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। मैंने भी उनसे बात की और भारत रत्न से सम्मानित होने पर उन्हें बधाई दी।अपने समय के सबसे सम्मानित राजनेताओं में से एक श्री लालकृष्ण आडवाणी का भारत के विकास में योगदान अविस्मरणीय है। उनका जीवन जमीनी स्तर पर काम करने से शुरू होकर हमारे उप-प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा करने तक का है। उन्होंने गृह मंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्री के रूप में भी अपनी पहचान बनाई। उनका संसदीय योगदान हमेशा अनुकरणीय और समृद्ध अंतर्दृष्टि से भरा रहा है।” उन्होंने कहा कि “आडवाणी जी की सार्वजनिक जीवन में दशकों पुरानी सेवा को पारदर्शिता और अखंडता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता द्वारा चिह्नित किया गया है, जिसने राजनीतिक नैतिकता में एक अनुकरणीय मानक स्थापित किया है। उन्होंने राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान को आगे बढ़ाने की दिशा में अद्वितीय प्रयास किए हैं। उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया जाना मेरे लिए बहुत भावुक क्षण है।’ मैं इसे हमेशा अपना सौभाग्य मानूंगा कि मुझे उनके साथ बातचीत करने और उनसे सीखने के अनगिनत अवसर मिले।

97 वर्षीय लालकृष्ण आडवाणी ने वर्ष 1980 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की थी । वे वाजपेयी के बाद पार्टी के सबसे वरिष्ठतम सदस्य हैं । एक समय था जब आडवाणी की

पार्टी में तूती बजती थी और भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद से ही आडवाणी जी ही वह शख्स रहें जो सबसे ज्यादा समय तक पार्टी में अध्यक्ष पद पर बने रहे हैं। बतौर सांसद तीन दशक की लंबी पारी खेलने के बाद आडवाणी जी पहले केन्द्रीय गृह मंत्री रहे, बाद में अटल जी की कैबिनट में (1999-2004) उप-प्रधानमंत्री भी बने।

आडवाणी जी को बेहद बुद्धिजीवी, काबिल और मजबूत नेता माना जाता है जिनके भीतर सुदृढ़ और संपन्न भारत का विचार जड़ तक समाहित है। जैसा कि अटलजी बताया करते थे, आडवाणी जी ने कभी राष्ट्रवाद के मूलभूत विचार को नहीं त्यागा और इसे ध्यान में रखते हुए राजनीतिक जीवन में वह आगे ब़ढ़े और जहां जरूरत महसूस हुई,वहां उन्होंने लचीलापन भी दिखाया।

आडवाणी जी का जन्म 8 नवंबर 1927 को अविभाजित भारत के सिन्ध प्रान्त (अब पाकिस्तान में ) में हुआ था। वह कराची के सेंट पैट्रिक्स स्कूल में पढ़ें और उनके देशभक्ति के जज्बे ने उन्हें राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया। वह जब महज 14 साल के थे, उस समय से उन्होंने अपना जीवन देश के नाम कर दिया।1947 में आडवाणी जी देश के आजाद होने का जश्न भी नहीं मना सके,क्योंकि आजादी के महज कुछ घंटों में ही उन्हें अपने घर को छोड़कर भारत रवाना होना पड़ा। हालांकि उन्होंने इस घटना को खुद पर हावी नहीं होने दिया और मन में इस देश को एकसूत्र में बांधने का संकल्प ले लिया। उनका राजस्थान से गहरा रिश्ता रहा। बंटवारे के बाद वे पाकिस्तान के सिंध से दिल्ली के लिए रवाना हुए और वहां से राजस्थान आए। उन्होंने 1947 से 1951 तक जोधपुर,अलवर, भरतपुर, कोटा, बूँदी और झालावाड में आरएसएस को संगठित किया। वे लंबे समय तक राजस्थान में आरएसएस प्रचारक के काम में लगे रहे। 1957 में वे अटल बिहारी वाजपेयी की सहायता के लिए दिल्ली शिफ्ट हुए।वर्ष 1958 से 1963 तक उन्होंने दिल्ली प्रदेश जनसंघ में सचिव का पदभार संभाला। उसके उपरांत 1960 से1967 तक उन्होंने जनसंघ द्वारा प्रकाशित मुखपत्र ऑर्गनाइजर में काम किया। 25 फरवरी , 1965 को कमला आडवाणी से उनका विवाह हुआ। उनकी दो संतानें,पुत्री प्रतिभा एवं पुत्र जयंत आडवाणी है।

ऑर्गनाइजर के बाद आडवाणी अप्रैल 1970 में पहली बार राज्यसभा सदस्य बने और दिसंबर 1972 में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। आपातकाल के दौरान उन्हें 26 जून, 1975 को बैंगलोर में गिरफ्तार किया गया तथा उन्होंने भारतीय जनसंघ के अन्य सदस्यों के साथ जेल काटी।1977 में देश में पहली बार गैर कांग्रेसी जनता पार्टी की सरकार में वे मार्च 1977 से जुलाई 1979 तक सूचना एंव प्रसारण मंत्री रहें।जनता पार्टी के विघटन के बाद उन्होंने अटल जी के साथ 1980 में भाजपा का गठन किया और वे 1986 तक भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए। उसके बाद मई 1986 में उन्हे भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया।1980 से 1990 के बीच आडवाणी जी ने भाजपा को एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने के लिए अपना पूरा समय दिया और इसका परिणाम तब सामने आया, जब 1984 में महज 2 सीटें हासिल करने वाली भाजपा पार्टी को लोकसभा चुनावों में 86 सीटें मिली जो उस समय के लिहाज से काफी बेहतर प्रदर्शन था। बाद में पार्टी की स्थिति में सुधार होता गया और भाजपा 1992 में 121 सीटों और 1996 में 161 पर पहुंच गई। आजादी के बाद पहली बार 1977 की तरह कांग्रेस सत्ता से बाहर थी और बीजेपी सबसे अधिक संख्या वाली पार्टी बनकर उभरी।

लाल कृष्ण आडवाणी ने अपने राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण यात्राएं की जिनमें उनकी राम रथ यात्रा सबसे अधिक प्रसिद्ध रही। उन्होंने बाद में जनादेश यात्रा,भारत सुरक्षा यात्रा,स्वर्ण जयंती रथ यात्रा,भारत उदय यात्रा आदि कई यात्राएं निकाल कर देश भर में भाजपा के पक्ष में वातावरण बनाया । सन 1990 में जब देश विकट परिस्थितियों से जूझ रहा था, जातिवादी तत्व एक तरफ हमारी एकता और अखंडता को तार-तार करने पर तुले हुए थे, दूसरी तरफ छद्म धर्मनिरपेक्षता के पैरोकार धर्म के आधार पर देश को बांटना चाहते थे, उस दौर में लालकृष्ण आडवाणी आगे आये और इन राष्ट्र विरोधी ताकतों को करारा जवाब दिया। उनके आन्दोलन ने राष्ट्रवाद की दबी कुचली भावनाओं को नयी जगह ही नहीं दी, बल्कि हमारे देश के उच्च नैतिक आदर्शों को भी पुनः प्रतिष्ठित किया।

आडवाणी जी और संघ के मजबूत रिश्तों में उनकी पाकिस्तान यात्रा और अन्य कारणों से कमजोरी तब आई जब राष्ट्रीय स्वयं संघ के प्रमुख के. एस. सुदर्शन ने कहा कि आडवाणी और अटल जी को अब पार्टी में नए लोगों को जगह देनी चाहिए, हालांकि आडवाणी जी ने इसे सकारात्मक रूप से लिया और भाजपा के 25 वर्ष पूरे होने पर दिसंबर 2005 में पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह संभाली राजनाथ सिंह ने जो कि उत्तर प्रदेश के काफी कनिष्ठ और युवा नेता के रूप में सामने आए थे । 2009 के चुनावों में आडवाणी जी नेता प्रतिपक्ष थे, इसलिए यह माना जा रहा था कि वह आगामी चुनावों जो 16 मई, 2009 को खत्म होने वाले थे, में भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। आडवाणी जी के पक्ष में सबसे बड़ी बात यह थी कि आडवाणी जी बीजेपी के सबसे ताकतवर नेता रहे हैं और उनके अलावा सिर्फ अटल जी इतने शीर्ष पर मौजूद थे, लेकिन अटल जी खुद भी आडवाणी जी के पक्ष में थे।10 दिसंबर, 2007 को भाजपा के संसदीय बोर्ड ने यह औपचारिक ऐलान किया कि 2009 के आम चुनावों के लिए लालकृष्ण आडवाणी ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे लेकिन जब कांग्रेस और उसके गठबंधन ने लोकसभा चुनाव जीत लिया और डॉ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद पर दोबारा काबिज हो गए तो आडवाणीजी ने 15वीं लोकसभा में सुषमा स्वराज को नेता प्रतिपक्ष बनाया। उसके बाद का घटनाक्रम से सभी भलीभाँति वाक़िफ़ हैं।

भाजपा के इस दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी को 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से भाजपा के मार्ग दर्शक मंडल में स्थान दिया गया और कालांतर में धर्म पत्नी का निधन और बढ़ती उम्र ने उन्हें सक्रिय राजनीति से दूर कर दिया,लेकिन 100 वर्ष की उम्र के निकट होने के बावजूद आडवाणी अभी भी पूरी तरह से स्वस्थ और फीट है तथा समय॰समय पर पार्टी नेताओं को अपने आशीर्वाद देते है। हालाँकि अटल और आडवाणी युग के नेताओं की संख्या अब धीरे॰धीरे बहुत कम हों गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनके हर जन्म दिवस पर आडवाणी जी के घर पहुंच उनका अभिनंदन करते है। नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनने तक आडवाणी गुजरात की राजधानी गाँधी नगर से सांसद चुने जाते रहें।

आडवाणी को भारत रत्न अलंकरण देने की घोषणा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन तमाम आलोचकों का मुंह बंद कर दिया है जो आडवाणी जी की लेकर उनके बारे में कई प्रकार की बाते करते है। आडवाणी जी को देश का सर्वोच्च सम्मान देने के स्वागत योग्य कदम से मोदी और भाजपा उनकी अविस्मरणीय सेवाओं से ऊऋण हो रही है। राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि पीएम मोदी को आरएसएस में आडवाणी जी से भी वरिष्ठ माने जाने वाले और गुजरात में भाजपा को स्थापित करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री केशू भाई पटेल को भी इसी तरह समकक्ष अलंकरण प्रदान करना चाहिए तभी सही अर्थों में पार्टी की सच्चे अर्थों में सेवा कर तथा अभूतपूर्व योगदान से उत्कृष्ट स्थान पर लाने वाले नेताओं के प्रति ऊऋण हुआ जा सकेगा।