कांवड़ यात्राओं की गरिमा पर प्रहार करते असामाजिक-तत्व

Anti-social elements attacking the dignity of Kanwar Yatra

ओम प्रकाश उनियाल

सावन का महीना शुरु होते ही कांवड़ियों की रेलम-पेल शुरु हो जाती है। जिधर नजर दौड़ाओ उधर शिवभक्तों की टोलियां ही टोलियां। कुछ पैदल तो कुछ वाहनों पर। कहीं भोले के जयकारे तो कहीं वाहनों पर डीजे पर बजता कनफोड़ुआ भक्ति संगीत और उस पर थिरकते-झूमते भोले-भोलियां। कुछ गेरुवे वस्त्र धारण किए हुए तो कुछ तरह-तरह की वेशभूषा। कंधों पर रंग-बिरगी कांवड़ धारण किए बच्चे, बड़े, महिलाएं व पैदल चलने की सामर्थ्य रखने वाले उम्रदराज भी। कुछ भक्तिभाव से कांवड़-यात्रा में शामिल होने वाले तो कुछ मौज-मस्ती के उद्देश्य से। कुछ हुड़दंगी तो कुछ नशेड़ी। हर प्रकार के कांवड़ियों के दर्शन होते हैं कांवड़ यात्राओं के दौरान। जहां-जहां से भी कांवड़िये गुजरते हैं वहां-वहां का माहौल शिवमय हो जाता है। हरेक की जुबान पर बम-बम बोले, जय भोले के नारे गूंजते हैं। कांवड़ियों की भीड़ में आस्था और श्रद्धा का संगम देखने को तो मिलता है मगर जब उपद्रवी एवं हुड़दंगी भीड़ में घुसकर जगह-जगह उत्पात मचाते हैं तो वहां धर्म, भक्ति, आस्था और श्रद्धा कमजोर पड़ने लगते हैं। जिन-जिन जगहों से कांवड़िये प्रस्थान करते हैं उस राज्य की सरकार को चाहिए कि इनका पंजीकरण करे, ताकि कांवड़-यात्राओं में घुसपैठ करने वाले असामाजिक तत्वों की पहचान आसानी से हो सके और कांवड़-यात्राएं बिना किसी व्यवधान के व्यवस्थित व सुचारु रूप से चलती रहें।