शीर्ष अदालत की टिप्पणियां विषैले माहौल को बदलने का प्रयास

नरेंद्र तिवारी

इस समय जबकि देश का सामाजिक सदभाव बिगड़ा हुआ दिखाई दे रहा हैं। धर्म के नाम पर समाज मे हिंसा बढ़ गयी है। शब्द बेलगाम हो गए है। कडवें बोल ओर शाब्दिक हिंसा का सरेआम प्रदर्शन हो रहा हैं। साम्प्रदायिकता का यह वातावरण बोलचाल से बर्बर हत्या की घटनाओं में परिवर्तित होता जा रहा हैं। इस विषैले माहौल नें देश की अमन चैन ओर शांति व्यवस्था को गहरा प्रभावित किया हैं। लगातार साम्प्रदायिक तनाव से देश का बड़ा नुकसान हो रहा हैं। भड़काऊ ओर बेलगाम बोल वातावरण को विषैला बना रहे, इन बिगड़े बोलो से हिंसा भड़क रहीं हैं। नूपुर शर्मा पर की गई टिप्पणियों के बहाने देश की शीर्ष कोर्ट ने बेलगाम ओर घृणा फैलाने वाले उन सारे तत्वों को फटकार लगाई हैं जो अपना नाम चमकाने के लिए देश के सदभाव को बिगाड़ रहें है। इस दौर में देश के नामचीन चैनलों की बहस ओर सोश्यल मीडिया को देख ऐसा प्रतीत होता हैं कि देश का सामाजिक सदभाव आजादी के बाद सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। देश को इस राह पर आगे बढ़ने से रोकना हम सभी भारतीय नागरिकों का परम दायित्व हैं। यह दायित्व हमारी संवैधानिक संस्थाओं, राजनैतिक दलों और न्यायपालिका का भी हैं। इस राष्ट्रीय दायित्व के निर्वहन में जब राजनैतिक दल भी पक्ष-विपक्ष के रूप में खड़े दिखाई दे रहें हो, तब सुप्रीम कोर्ट का नूपुर शर्मा के बहाने इस विषैले माहौल को सुधारने के लिए टिप्पणी करना न्यायसंगत, उचित ओर राष्ट्रीय मूल्यों को सुरक्षित, संरक्षित ओर प्रतिपादित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। सुप्रीम कोर्ट की यह सख्त टिप्पणी देश के जहर भरे वातावरण को बदलने के प्रयास के रूप में देखी जाना चाहिए। नूपुर के साथ-साथ न्यायालय ने टीवी चैनलों की उन्मादी बहसों को भी कठघरे में खड़ाकर इन बहसों के उदेश्यों पर सवाल खड़े किए। टीवी चैनलों की बहस मात्र टीआरपी बटोरने का साधन नहीं हैं। इन बहसों से प्रगति और रचनात्मकता की झलक होना चाहिए, किन्तु अधिकांश राष्ट्रीय चैनल इन उदेश्यों के विपरीत विषैले माहौल को ओर अधिक जहरीला बनाने की कोशिश करतें दिखाई देतें हैं। ऐसी अवस्था में अदालत की फटकार माहौल को सुधारने की दिशा में उठाया हुआ कदम प्रतीत होता हैं। न्यायालय की सख्त टिप्पणी नूपुर शर्मा, टीवी चैनल और पुलिस के खिलाफ तो हैं ही यह टिप्पणी उन सभी कडवें बोल ओर शाब्दिक हिंसा के माध्यम से माहौल को खराब करने वाले असामाजिक तत्वों, घटना के बाद तोड़-फोड़ कर हिसंक गतिविधियों में शामिल रहने वाले अराजक तत्वों, तालिबानी तरीके से बर्बर हत्या की घटना को अंजाम देने वाले वहशी दरिंदो के खिलाफ भी मानी जानी चाहिए। अदालत की सख्त टिप्पणी उन सभी के खिलाफ हैं जो भारत राष्ट्र के माहौल को सांप्रदायिक की आग में झोंककर राष्ट्र को क्षति पहुचाने का प्रयास कर रहें हैं। ऐसे समय जब देश के राजनैतिक दलों के दलीय हित साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काकर वोटों की फसलों को काटने का प्रयास कर रहे हो, पक्ष-विपक्ष में बटें इन दलों के समर्थक भी सोश्यल मीडिया के जरिए विभाजन की दीवार खड़ी करने की कोशिश करने में लगे दिखाई दे रहे हों, तब सर्वोच्च अदालत की इन सख्त टिप्पणियों को माहौल के सुधार की कोशिश के रूप में देखा जाना चाहिए। ऐसे वातावरण में जब राष्ट्र धर्म के पहले जातीय धर्म को सर्वोपरि माना जा रहा हो तब न्यायालय के कठोर वचन राष्ट्र धर्म को उच्च पायदान पर स्थापित करने की दिशा में बढ़ते कदम हैं। धर्म, जाति, भाषा की दीवारें दिनों-दिन ऊंची होती जा रहीं हैं। धार्मिक कट्टरपन की इन ऊंची होती दीवारों के समक्ष राष्ट्र धर्म गौण होता दिखाई दे रहा हैं। न्यायालय की फटकार इस विषैले और हिँसक वातावरण से देश को निजात दिलाने में सफल होगी। राष्ट्रीय प्रगति के लिए शांति सदभाव ओर अमन का होना जरूरी है। अपनी सख्त टिप्पणियों से देश की शिर्ष अदालत ने बेलगाम ओर भड़काऊ भाषण, टीवी चैनलों पर चल रहीं साम्प्रदायिक बहसों ओर पुलिस की निष्क्रिय कार्यप्रणाली को लताड़ा हैं। शीर्ष न्यायालय की लताड़ का व्यापक असर होगा और माहौल में परिवर्तन होगा ऐसी आशा की जानी चाहिए। जब नेता संगठन और संस्थाएं अपने मूल कर्तव्य से भटककर राष्ट्र की शांति व्यवस्था से लगातार खिलवाड़ की कोशिश कर रहें हो, सोश्यल मीडिया से विभाजित समाज भी पक्ष-विपक्ष में बट गया हो, सियासी दल भी अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में अपने मूल उदेश्य से भटक गए हो, तब देश की शीर्ष अदालत की फटकार साम्प्रदायिकता के दमघोटू माहौल में शीतल बयार के सामान हैं। साम्प्रदायिक तनाव का लम्बा चलता माहौल एक प्रगतिशील राष्ट्र के लिए उचित नहीं हैं। इससे निजात के सामूहिक प्रयास की जरूरत हैं।