
अशोक भाटिया
सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुआ रक्षा समझौता क्या वर्ल्ड ऑर्डर में एक बड़े बदलाव का संकेत है? सवाल यह इस कारण है कि क्या पश्चिम एशिया में खासतौर से जो देश अमेरिका की गुड बुक्स में रहे हैं, उनका भरोसा उससे हट रहा है?सऊदी-पाकिस्तान समझौते के पीछे सबसे बड़ा फैक्टर है कतर पर किया गया इजरायल का हमला। कतर अमेरिका का पुराना सहयोगी है। यहां साल 2000 से अमेरिकी सैन्य अड्डा है। कतर की राजधानी दोहा के पास मौजूद अल उदैद एयरबेस पश्चिम एशिया में अमेरिकी सेंट्रल कमांड के एयर ऑपरेशंस का मुख्यालय है। यहां क़रीब 8,000 अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। कतर को लगता था कि इस वजह से वह इजरायल समेत किसी भी देश के हमले से महफूज़ है।मगर जब दोहा में हमास के नेताओं को मारने के लिए इजरायल ने हमला बोला, तो उसका यह भरोसा टूट गया। सऊदी अरब को भी लगा कि वह भी सुरक्षित नहीं है, क्योंकि इजरायल की मिसाइलें सऊदी के एयरस्पेस को पार करके ही दोहा पहुंच सकती थीं। अभी तक ये सारे देश (मुस्लिम देश) विश्व कूटनीति में अमेरिका के साथी ही माने जाते रहे हैं।इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा कि उन्होंने ट्रंप को दोहा पर हमले के बारे में पहले ही बता दिया था। दबाव में आकर ट्रंप को भी मानना पड़ा कि उन्हें इसकी जानकारी थी। इस खुलासे ने पश्चिमी एशिया के देशों में खलबली पैदा की। वैसे भी सबके दिमाग में कतर द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को करोड़ों डॉलर की कीमत वाला हवाई जहाज गिफ्ट करने की छवि तरोताज़ा थी।अमेरिका की मुश्किले कई है जैसे कतर में अमेरिकी सैन्य अड्डा, फिर भी इजरायल ने किया हमला वगैरह . बताया जाता है कि इसीलिए सऊदी-पाक में हुआ करार हुआ है .
वैसे भारत ने सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हाल के समझौते पर कोई टिप्पणी नहीं की। भारत ने यह कहकर सावधानी से जवाब दिया कि वह दोनों देशों के बीच समझौते का अध्ययन कर रहा है। सऊदी अरब के साथ भारत के संबंध मजबूत हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल सऊदी अरब का दौरा किया। भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय व्यापार 50 बिलियन डॉलर से अधिक है। सऊदी अरब अपने कच्चे तेल का 20 प्रतिशत से अधिक भारत को निर्यात करता है। अप्रैल 2025 में, दोनों ने रक्षा सहयोग पर हस्ताक्षर किए। एक समिति का गठन किया गया। इसमें संयुक्त अभ्यास शामिल हैं। अब जब सऊदी अरब का पाकिस्तान के साथ समझौता हो गया है और पाकिस्तान के नेता समझौते को लेकर जो कुछ भी कहें, सऊदी अरब भारत के साथ संतुलन बनाएगा। सऊदी अरब पाकिस्तान की लड़ाई नहीं लड़ेगा; लेकिन यह ईरान जैसे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों से निपटने में मदद करेगा। यदि भारत और पाकिस्तान फिर से टकराते हैं, तो सऊदी अरब आर्थिक दबाव डाल सकता है; पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच यह समझौता कतर पर इजरायल के हमले के आठ दिन बाद हुआ है। पाकिस्तान और सऊदी अरब संयुक्त राज्य अमेरिका के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं करेंगे, भले ही समझौते को इजरायल को उकसाने के लिए चित्रित किया जा रहा है। समझौते के बाद भारत ने यह उम्मीद जताई है।
पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच संबंध आपसी जरूरतों पर आधारित हैं। सऊदी अरब वित्तीय सहायता प्रदान करता है और पाकिस्तान सैन्य सहायता प्रदान करता है। पाकिस्तान सऊदी अरब के नेतृत्व में सैन्य प्रयासों में शामिल है। पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख राहील शरीफ ने 2015 से इस्लामिक सैन्य आतंकवाद विरोधी गठबंधन का नेतृत्व किया है। माना जाता है कि 2018 में, पाकिस्तान ने यमन में चल रहे संघर्ष में मदद के लिए सऊदी अरब में सेना भेजी थी। वह बारह सौ से दो हजार पाकिस्तानी सैनिक पहले से ही सऊदी अरब में तैनात हैं। इसके बदले में पाकिस्तान को सऊदी अरब से आर्थिक मदद मिलती रहेगी। पाकिस्तान को उम्मीद है कि भविष्य में भारत के साथ किसी भी संघर्ष के मामले में सऊदी अरब कुछ मदद करेगा। पाकिस्तान और सऊदी अरब को पता होना चाहिए कि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच ‘रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौते’ का क्या मतलब है। भारत ने सऊदी सशस्त्र बलों को प्रशिक्षित करने की पेशकश की है। भारत और सऊदी अरब के बीच साझेदारी हाल के महीनों में बढ़ी है, जिसमें दोनों देशों और रक्षा मंत्रिस्तरीय समिति के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास शामिल हैं। स्थापना में ये चरण शामिल हैं। यह उनके रिश्ते को मजबूत करने का प्रतीक है। भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष शुरू होने पर तटस्थ रहने का फायदा सऊदी अरब को मिला है।
जब इस साल मई में भारत और पाकिस्तान के बीच झड़प हुई थी, तो सऊदी अरब ने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की निंदा की थी। लेकिन ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर कोई बयान जारी नहीं किया गया। भारत सऊदी अरब के लिए पाकिस्तान से अधिक महत्वपूर्ण है और भारत के साथ उसकी आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी महत्वपूर्ण है, यह बात पाकिस्तान के साथ रक्षा सौदे के बाद भी सऊदी के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दोहराई गई है। रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि पाकिस्तान को सऊदी अरब से लगातार बड़े और किफायती ऋण मिल रहे हैं। कि मूल रूप से एक साल के लिए दिया गया कर्ज पाकिस्तान की ओर से नहीं चुकाया गया है। सऊदी सरकार पाकिस्तान के प्रति उदार रही है और हर साल बिना किसी अतिरिक्त ब्याज के इन ऋणों को देती रही है। सऊदी अरब का पाकिस्तान को दिया जाने वाला ऋण चीन की तुलना में एक तिहाई सस्ता है और विदेशी वाणिज्यिक ऋण की लागत का आधा है। सऊदी अरब, चीन और संयुक्त अरब अमीरात ने तीन साल के कार्यक्रम के पूरा होने तक पाकिस्तान को अपनी नकदी जमा रखने की शर्त रखी है। इन देशों ने पाकिस्तान को कुल 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का उधार दिया है, जो पाकिस्तानी केंद्रीय बैंक के 14.3 बिलियन डॉलर के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा है। अगर पाकिस्तान और सऊदी अरब एक साथ आ भी जाते हैं, तो भारत पर रक्षात्मक रूप से कोई असर नहीं पड़ेगा। ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स के अनुसार, भारत के पास दुनिया की चौथी सबसे शक्तिशाली सेना है, जबकि पाकिस्तान बारहवें स्थान पर है। सऊदी अरब 24वें स्थान पर है। सऊदी अरब की ताकत अमेरिकी हथियारों में निहित है। सऊदी अरब को 2015-2022 यमन युद्ध में हौथी विद्रोहियों द्वारा ड्रोन हमलों से भारी नुकसान उठाना पड़ा। इसने इसकी हवाई सुरक्षा को कुछ हद तक कमजोर कर दिया। सऊदी सेना विदेशी (पाकिस्तानी और अमेरिकी) सलाहकारों पर निर्भर है और उनके पास आंतरिक प्रशिक्षण की कमी है। यह समझौता भारत के लिए दोधारी तलवार है। एक ओर, भारत और सऊदी अरब के बीच मजबूत आर्थिक संबंध हैं।
भारत सऊदी अरब के साथ सौ अरब डॉलर से ज्यादा का व्यापार करता है। पाकिस्तान के साथ समझौते के बाद भी सऊदी अरब ने साफ कर दिया है कि भारत के साथ उसके संबंध मजबूत बने रहेंगे और यह समझौता भारत के खिलाफ नहीं है। हालाँकि, यह समझौता भारत को अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) जैसे गठबंधनों को मजबूत करना, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रक्षा बुनियादी ढांचे का विकास करना और नौसैनिक गश्त बढ़ाना आवश्यक है। भारत यूएई और बहरीन जैसे उदारवादी खाड़ी देशों के साथ भी संबंधों को मजबूत कर सकता है। भारत को ऊर्जा विविधीकरण के लिए नवीकरणीय स्रोतों पर भी ध्यान देना चाहिए। हाल ही में इजरायल ने सऊदी अरब की सीमा से सटे कतर की राजधानी दोहा पर हमला किया था। हमले पर अमेरिका की चुप्पी ने मध्य पूर्व में संयुक्त राज्य अमेरिका की सुरक्षा गारंटी के बारे में संदेह पैदा कर दिया। संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य पूर्व में अनुमानित 40,000 से 50,000 सैनिक हैं। लेकिन इजरायल की आक्रामकता के सामने संयुक्त राज्य अमेरिका की निष्क्रियता ने सऊदी अरब को एक वैकल्पिक सुरक्षा भागीदार की तलाश करने के लिए मजबूर किया। इस संदर्भ में, मुस्लिम दुनिया में एकमात्र परमाणु हथियार राज्य पाकिस्तान सऊदी अरब के लिए एक आकर्षक सहयोगी बन गया। सऊदी-पाकिस्तान समझौता दोनों देशों की सैन्य क्षमताओं को मजबूत करेगा क्योंकि इसमें रक्षा उद्योग सहयोग, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सैन्य सह-उत्पादन शामिल हैं। पश्चिम एशिया में इजरायल की आक्रामकता और ईरान के साथ तनाव के बीच। जबकि सऊदी अरब को एक मजबूत सहयोगी की आवश्यकता थी, पाकिस्तान ने इसे आर्थिक और रणनीतिक लाभ के स्रोत के रूप में देखा।
पर यह भी बताया जाता है कि पाकिस्तान को सऊदी अरब से तेल, निवेश और सैन्य सहायता मिल सकती है, जिससे युद्ध के समय पाकिस्तान की शक्ति बढ़ जाएगी। अगर भारत पाकिस्तान पर हमला करता है तो सऊदी अरब जवाबी कार्रवाई कर सकता है। सऊदी तेल आयात पर निर्भरता को देखते हुए, यह समझौता भारत की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है। ऐसी स्थिति में, भारत को रूस और अन्य स्रोतों से विविधीकरण में तेजी लानी होगी। हालांकि, मजबूत नेतृत्व और रणनीतिक स्वायत्तता के साथ, भारत चुनौती का सामना कर सकता है।
इतना ही नहीं, पाकिस्तान ने पश्चिम एशिया के बाकी देशों को भी इस समझौते के तहत आने का न्योता दिया है। पश्चिम एशिया में पाकिस्तान सामरिक धुरी के तौर पर उभरने की कोशिश तो कर रहा है, लेकिन क्या वह अमेरिका के ख़िलाफ़ जाकर ऐसा करने की कोशिश करेगा? इसमें संदेह है। इसीलिए, इसके तात्कालिक तौर पर दो मकसद नजर आते हैं- एक तो इजरायल के ख़िलाफ़ एक सैन्य समीकरण खड़ा करना। दूसरा, भारत को संदेश देना कि भविष्य में पश्चिम एशियाई देश उसके साथ खड़े होंगे। इस वैश्विक परिदृश्य में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुआ रक्षा समझौता पश्चिम एशिया पर अमेरिकी पकड़ के ढीले होने की कहानी को दोहरा रहा है। कतर और सऊदी अरब पश्चिम एशिया में अमेरिकी वर्चस्व के लिए अहम हैं। अगर वहां खलबली है और वे अपनी सुरक्षा के लिए दूसरे रास्ते तलाशने लगे हैं तो इसका असर बाकी देशों पर भी पड़ सकता है।