अजय कुमार
लखनऊ : इस्लाम की आढ़ में मिशन लव जेहाद चलाने वाले मुस्लिम युवा पुलिस और न्यायपालिका की नजरों से बचने के लिये नये-नये हथकंडे अपनाते रहते हैं। यहां तक की यह लोग हाईकोर्ट तक को भ्रमित करने से बाज नहीं आते हैं। इसी क्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने धर्म छिपाकर शादी करने तथा दुराचार करने के आरोप में दर्ज एफआईआर को चुनौती देने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया है। लव जेहाद के इस प्रकरण में अभियुक्त व तथाकथित पति का कहना था कि उसने 15 साल पहले वर्ष 2009 में इस्लाम धर्म छोड़कर सनातन धर्म अपना लिया था जिसके पश्चात पीड़िता से आर्य समाज मंदिर में विवाह किया था। हालांकि न्यायालय ने पाया कि याचिका के साथ दाखिल अभियुक्त के आधार कार्ड पर आरिफ हुसैन नाम लिखा हुआ है, इस पर न्यायालय ने अभियुक्त के अधिवक्ता से पूछा कि यदि उसने सनातन धर्म अपना लिया है तो उसका नाम अब भी आरिफ हुसैन क्यों है। इसका अभियुक्त के अधिवक्ता द्वारा कोई संतोषजनक उत्तर न दे पाने पर न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया, साथ ही पुलिस को यह भी स्वतंत्रता दी है कि वह इस बिंदु की भी जांच करें कि क्या अभियुक्त ने आरिफ हुसैन के नाम से आधार कार्ड बनवाकर कोई अन्य अपराध भी किया है क्योंकि वह 2009 में ही धर्म परिवर्तन कर चुका था।
यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक चौधरी व न्यायमूर्ति एनके जौहरी की खंडपीठ ने आरिफ हुसैन उर्फ सोनू सिंह व अन्य की याचिका पर पारित किया है। याचियों की ओर से सुशांत गोल्फ सिटी थाने में 9 सितंबर 2024 को दर्ज हुई मामले की एफआईआर को चुनौती देते हुए दलील दी गई कि याची संख्या एक व पीड़िता का विवाह 24 जनवरी 2009 को आर्य समाज मंदिर अलीगंज में संपन्न हुआ था। उक्त विवाह से पूर्व उसी दिन याची संख्या एक ने धर्म परिवर्तन कर सनातन धर्म अपना लिया था। कहा गया कि 15 वर्ष बाद पीड़िता ने वर्तमान एफआईआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया है कि याची संख्या एक ने धर्म छिपाकर उससे विवाह किया तथा उसके साथ दुराचार किया। यह भी दलील दी गयी कि वास्तव में उनके मध्य वैवाहिक विवाद है जिसे दुराचार और धर्म छिपाने का रंग देकर एफआईआर दर्ज करा दी गयी है। याचिका का राज्य सरकार के अधिवक्ता ने विरोध करते हुए कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप गंभीर हैं लिहाजा इसे खारिज नहीं किया जा सकता।