
सुनील कुमार महला
हाल ही में बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन में एक बड़ा खुलासा हुआ है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वोटर लिस्ट में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के लोगों के नाम पाए गए हैं। पाठकों को बताता चलूं कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) के दौरान निर्वाचन आयोग में उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, बिहार में एसआईआर के दौरान घर-घर जाकर(डोर टू डोर कैंपेन) किए गए दौरे में बूथ लेवल अफसरों यानी बीएलओ को नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से अवैध रूप से आए लोग बड़ी संख्या में मिले हैं।इधर, विपक्षी दलों ने आयोग के इस दावे को लेकर सवाल उठाए हैं। वोटर लिस्ट के संदर्भ में अधिकारियों ने यह बात कही है कि पाए गए सभी संदिग्ध नामों की पूरी जांच की जा रही है तथा, जो लोग भारतीय नागरिक नहीं पाए जाएंगे, उनके नाम 30 सितंबर को जारी होने वाली अंतिम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे। चुनाव आयोग के निर्देश पर बिहार में बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) घर-घर जाकर मतदाता सूची का सत्यापन कर रहे हैं। वास्तव में यह बहुत ही चिंताजनक बात है कि बिहार वोटर लिस्ट में दूसरे देशों के प्रवासियों के नाम मिले हैं। वास्तव में होना तो यह चाहिए कि कोई भी अवैध प्रवासी सूची में न रह जाए, क्यों कि इससे चुनाव प्रभावित हो सकते हैं। यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है कि अवैध प्रवासियों की संख्या लाखों में बताई जा रही है। बताया जा रहा है आयोग ने ऐसे अवैध प्रवासियों की जांच के लिए 01 से 30 अगस्त के बीच विशेष अभियान चलाने की तैयारी भी शुरू कर दी है, यह अच्छी बात है। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि अनुच्छेद 326, (भारतीय संविधान 1950) के मुताबिक लोक सभा और प्रत्येक राज्य की विधान सभा के लिए चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे; अर्थात्, प्रत्येक व्यक्ति जो भारत का नागरिक है और जो ऐसी तारीख को, जो समुचित विधानमंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस निमित्त नियत की जाए, इक्कीस वर्ष से कम आयु का नहीं है और जो इस संविधान या समुचित विधानमंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन गैर-निवास, मानसिक विकृति, अपराध या भ्रष्ट या अवैध आचरण के आधार पर अन्यथा निरर्हित नहीं है, ऐसे किसी चुनाव में मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का हकदार होगा। वास्तव में, संविधान के अनुच्छेद -326 के तहत सिर्फ भारतीय नागरिक ही मतदाता बन सकता है और आयोग के पास इसे जांचने का अधिकार है। यदि वह किसी व्यक्ति के दावे संतुष्ट नहीं होता है, तो वह उसे मतदाता बनने से रोक सकता है या फिर उसे मतदाता सूची से बाहर कर सकता है। इधर, आयोग के दावे पर बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने तीखे तेवर अपनाते हुए यह बात कही है कि सूत्रों की बजाय आयोग के अधिकारियों को सामने आकर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर एक फीसदी मतदाताओं का भी नाम कट जाए तो उससे नतीजों पर अंतर होगा। उपलब्ध जानकारी के अनुसार बिहार में सात करोड़ 90 लाख मतदाता हैं और इनमें यदि अवैध वोटर मिले हैं,तो वाकई यह बहुत ही गंभीर बात है। यदि किसी व्यक्ति नाम 1 अगस्त को जारी होने वाली मतदाताओं की ड्राफ्ट (अस्थायी) लिस्ट में शामिल नहीं होता है,तो वह व्यक्ति विशेष आवश्यक दस्तावेजों के साथ पहले मतदान पंजीकरण अधिकारी (इआरओ) के पास आवेदन कर सकते हैं और यदि वहां से भी कोई समाधान नहीं मिलता है, तो वह व्यक्ति विशेष जिला निर्वाचन अधिकारी (डीइओ) और फिर राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीइओ) के पास अपील कर सकता है। आवश्यक दस्तावेजों में क्रमशः मान्यता प्राप्त बोर्ड या विवि द्वारा निर्गत शैक्षिक प्रमाण पत्र,जाति प्रमाण पत्र, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी),पासपोर्ट राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकार द्वारा तैयार पारिवारिक रजिस्टर, बैंक, डाकघर, एलआईसी आदि द्वारा 1 जुलाई 1987 के पूर्व निर्गत किया गया कोई भी प्रमाण पत्र,वन अधिकार प्रमाण पत्र
,नियमित कर्मचारी या पेंशनभोगी कर्मियों का पहचान पत्र, स्थाई निवास प्रमाण पत्र सरकार की कोई भी भूमि या मकान आवंटन का प्रमाण पत्र अथवा सक्षम प्राधिकार द्वारा निर्गत जन्म प्रमाण पत्र आदि शामिल हैं। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि उक्त संदर्भ में मामला माननीय सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार 28 जुलाई को बिहार से संबंधित याचिका पर दोबारा सुनवाई होनी है तथा इसके बाद देशव्यापी पुनरीक्षण अभियान पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा। दरअसल, कुछ विपक्षी दलों और नागरिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई है।इस संबंध में उनका यह कहना है कि इससे पात्र नागरिकों को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि पूरे देश में अगस्त माह से मतदाता सूची की जांच शुरू होगी। जानकारी के अनुसार बिहार के बाद चुनाव आयोग देशभर में यह प्रक्रिया शुरू करेगा। आयोग ने अगस्त से एसआईआर(विशेष गहन पुनरीक्षण) की तैयारी के निर्देश दिए हैं। इससे यह सामने आ सकेगा कि कोई अवैध प्रवासियों ने तो मतदाता सूचियों में अपने नाम नहीं शामिल करवा लिए हैं। पाठकों को विदित ही होगा कि बिहार में कुछ समय बाद इस साल यानी कि 2025 में ही विधानसभा चुनाव होने हैं। वहीं, असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में 2026 में चुनाव निर्धारित हैं। इन राज्यों में विदेशी नागरिकों की घुसपैठ और अवैध निवास लंबे समय से चिंता का विषय रहा है। हाल ही में देश के कई राज्यों में बांग्लादेश और म्यांमार के अवैध प्रवासियों के खिलाफ अभियान चलाया गया है। ऐसे में मतदाता सूचियों में सुधार को लेकर चुनाव आयोग का यह कदम बेहद अहम माना जा रहा है। हालांकि, इधर आधार कार्ड और राशन कार्ड को भी स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची में शामिल किए जाने की मांग की जा रही है। वास्तव में, इन दस्तावेजों को उन मतदाताओं द्वारा प्रस्तुत किया जाना है, जिनके नाम वर्ष 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे, जब आखिरी बार मतदाता सूची की वेटिंग (पुनरीक्षण) का कार्य किया गया था। उपलब्ध जानकारी के अनुसार एक अगस्त 2025 को ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी होगी तथा इसमें वही नाम शामिल किए जाएंगे, जिनके फॉर्म 25 जुलाई तक जमा हो जाएंगे। एक अगस्त से एक सितंबर तक लोग अपने नाम जोड़ने या आपत्ति दर्ज करने के लिए आवेदन कर सकते हैं।आयोग की ओर से अंतिम सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी। सबसे अच्छी बात यह है कि राजनीतिक दलों को भी तैयार की गई ड्राफ्ट सूची दी जाएगी और इसे चुनाव आयोग की वेबसाइट पर भी अपलोड किया जाएगा,जो पारदर्शिता दिखाएगी। हालांकि, राज्यसभा सदस्य और पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने यह दावा किया कि बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण(वेटिंग) का कार्य एक असंवैधानिक कदम है, जिसका उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि बहुसंख्यक समुदाय के हित में काम करने वाली सरकारें सत्ता में किसी भी तरह से बनी रहें।इधर, मतदाता सूची पुनरीक्षण(वेटिंग) के मसले पर ‘इंडिया गठबंधन’ ने जिला से लेकर प्रखंड और गांव स्तर तक लोगों को जमीनी हकीकत बताने का निर्णय लिया है। अंत में यही कहूंगा कि जो भी हो पूरे देश में मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण समय-समय पर किया जाना चाहिए, जिससे यह पता चल सके कि भारत की मतदाता प्रणाली में केवल पात्र नागरिकों को ही मतदान का अधिकार मिले। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 326 भारत के चुनावी लोकतंत्र की रीढ़ है, जो यह सुनिश्चित करता है कि शासन जनता के लिए, जनता द्वारा और जनता का बना रहे।