भाजपा नेताओं का मानना मोदी सरकार का यह एक और अहम फैसला
गोपेन्द्र नाथ भट्ट
राजस्थान की पूर्ववर्ती अशोक गहलोत की कांग्रेस सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों के लिए 2022 में लागू की गई ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) भाजपानीत एनडीए सरकार और उनकी अन्य कई राज्य सरकारों के गले में फांस बन गई है । पिछले लोकसभा और विभिन्न प्रदेशों की विधानसभा चुनावों में भी ओपीएस एक खास मुद्दा बन कर उभरी थी। विशेष कर कांग्रेस ने इसे प्रमुखता से उभारा था। अंततोगत्वा केंद्र की मोदी सरकार ने हाल ही अपनी केबिनेट मीटिंग में एक अहम फैसला लेते हुए सरकारी कर्मचारियों के लिए एनपीएस के स्थान पर यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) को लागू करने का फैसला लिया हैं । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के केबिनेट में लिए गए इस महत्वपूर्ण निर्णय की जानकारी केन्द्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने स्वयं बीते दिनों एक प्रेस वार्ता में दी थी।
यूनिफाइड पेंशन स्कीम को लेकर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केन्द्र और राज्य सरकार पर कड़ा प्रहार किया है। गहलोत ने कहा कि राजस्थान के कार्मिकों के हित एवं उनके भविष्य की सुरक्षा के लिए हमारी सरकार ने 2022 में ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) लागू की थी। अब भारत सरकार की कैबिनेट ने 23 लाख केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए एकीकृत पेंशन योजना (यूपीएस) को मंजूरी दे दी है, जो 1 अप्रैल, 2025 से शुरू होने वाली हैं। अंतरोगत्वा यूपीएस को लाने के लिए मजबूर हुई मोदी सरकार ने इस संदर्भ में हमारी सरकार के नजरिए को सही माना है। दरअसल में पिछले वर्ष चुनावी साल में भी पुरानी पेंशन स्कीम पर राजस्थान की तत्कालीन सरकार और केंद्र आमने सामने हो गये थे। अशोक गहलोत ने कहा कि राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों के लिए कांग्रेस की सरकार पुरानी पेंशन योजना लेकर आयी थी। तब भाजपा और केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन योजना का विरोध करते हुए शेयर मार्केट आधारित न्यू पेंशन स्कीम को बेहतर बताया था। उन्होंने कहा कि अब यूपीएस लाकर मोदी सरकार ने अपनी गलती को स्वीकार कर लिया है। गहलोत ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भी लिखा कि, “राजस्थान में जब हमारी सरकार ने पुरानी पेंशन स्कीम लागू की तब बीजेपी और केन्द्र सरकार ने विरोध किया था और शेयर मार्केट आधारित न्यू पेंशन स्कीम को श्रेष्ठ बताया था. केन्द्र सरकार की तरफ से नई योजना यूनिफाइड पेंशन स्कीम लागू करना एक स्वीकारोक्ति है कि न्यू पेंशन स्कीम में बड़ी खामियां थीं जो हम लगातार कह रहे थे।”
गहलोत ने कहा है कि भारत सरकार अब यूपीएस तो लेकर आ रही है, लेकिन इसके बाद राज्य के कर्मचारियों में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। राज्य के कर्मचारी जानना चाहते हैं कि राजस्थान सरकार ओपीएस जारी रखेगी या यूपीएस को लागू करेगी। इस मसले पर राज्य सरकार अविलंब स्थिति स्पष्ट करे जिससे सरकारी कर्मचारी बिना किसी तनाव के अच्छे से काम कर सकें।
गहलोत ने एक के बाद एक सवाल दागने शुरू कर दिए है और कहा है कि राजस्थान की भाजपा सरकार को यह भी बताना चाहिए कि भारत सरकार द्वारा एनपीएस का अंशदान इकट्ठा करने वाली पेंशन फंड विनियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के पास राजस्थान सरकार के कर्मचारियों का 40,000 करोड़ रुपये जमा है। हमारी सरकार ने कई बार कर्मचारियों की इस जमापूंजी को राज्य को लौटाने का अनुरोध किया था परन्तु केन्द्र सरकार ने यह राशि नहीं लौटाई। गहलोत ने सवाल दागा है कि भाजपा सरकार ने अभी तक कर्मचारियों की इस मेहनत की जमापूंजी को वापस लेने के लिए क्या कदम उठाए हैं और केन्द्र से यह राशि कब तक वापस आएगी? क्या कथित डबल इंजन सरकार का लाभ राज्य के सरकारी कर्मचारियों को नहीं मिलेगा?
उधर सत्ता पक्ष के नेता यूपीएस की जमकर तारीफ कर रहे हैं। भाजपा नेताओं ने मोदी कैबिनेट के फैसले को जनहित में उठाया गया कदम बताया है। कर्मचारियों की लंबे अरसे से पुरानी पेंशन स्कीम की मांग थी। वर्तमान में केंद्रीय कर्मचारियों को न्यू पेंशन स्कीम का लाभ मिलता है लेकिन अब मोदी सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के लिए यूपीएस का ऐलान किया है ।भाजपा नेताओं ने सवाल किया की गहलोत की ओ पी एस स्कीम इतनी ही बेहतर थी तो पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से उसे अपने घोषणा पत्र में शामिल क्यों नहीं किया था?
उल्लेखनीय है कि यूपीएस योजना से केंद्र सरकार के 23 लाख कर्मचारियों एवं उनके परिवारों को प्रत्यक्ष रूप आर्थिक फायदा मिलेगा। देश में बीते कई वर्षों से सरकारी कर्मचारियों के लिए अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा 2004 में शुरू की गयी नयी पेंशन स्कीम के प्रति असंतोष व्याप्त था। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल के दौरान विपक्षी दलों ने इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाया और कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस ) को फिर से लागू कर दिया गया।सबसे पहले यह घोषणा राजस्थान में कांग्रेस की गहलोत सरकार ने की थी। इसका दबाव केंद्र सरकार पर लगातार बना रहा था। पिछले वित्त वर्ष 2023 के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टीवी सोमनाथन की अध्यक्षता में पेंशन की नयी योजना बनाने के संबंध में एक कमिटी बनाने की घोषणा की थी। इस कमेटी को अपना एक प्रारूप इस साल लोकसभा चुनाव से पहले पूर्व प्रस्तुत करना था, जो नहीं हो पाया।मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने से पहले ही एक नयी और बेहतरीन योजना को मंजूर कर दिया।
इस नयी पेंशन योजना के आने के बाद से एक चर्चा जोरों पर है कि क्या सरकार पुरानी पेंशन योजना, जो अंग्रेजों के दौर से शुरू होकर 2004 तक तक लागू रही, की तरफ वापस मुड़ रही है। लेकिन केंद्र सरकार का कहना है कि हमारी ऐसी कोई योजना नहीं है। हालांकि पुरानी पेंशन योजना के अंतर्गत सरकारी कर्मचारियों को अपनी सेवा के कार्यकाल के दौरान पेंशन कोष में कुछ भी अंशदान नहीं देना होता था तथा सेवानिवृत्ति पर पेंशन और मृत्यु होने पर परिवार को मिलने वाली पेंशन 100 प्रतिशत सरकारी अंशदान के माध्यम से ही प्राप्त होती थी। देश में यह योजना 57 वर्षों तक चली लेकिन वर्ष 2004 में इसे समाप्त कर एक ऐसी पेंशन योजना को लागू किया गया, जिसमें सरकारी कर्मचारियों को अपनी सेवा के कार्यकाल के दौरान पेंशन हेतु अपने वेतन का एक हिस्सा नियमित रूप से अंशदान के रूप में देना था।
अब 2025 से लागू होने वाली यूपीएस में भी सरकारी कर्मचारियों को 2004 की नयी पेंशन स्कीम की तरह ही अपने वेतन का 10 प्रतिशत अंशदान पेंशन कोष में जमा करवाना होगा, पर अब इसमें सरकार का अंशदान और बढ़ेगा. यह समझना जरूरी है कि सरकारी कर्मचारियों को पेंशन हेतु अपना अंशदान जमा करवाना होगा, उसमें कोई रियायत नहीं दी गयी है. बीस वर्षों के बाद भारत में सरकारी कर्मचारियों को पेंशन के संबंध में यूपीएस के रूप में एक नयी योजना उपलब्ध हुई है, जो 2004 की नयी पेंशन स्कीम से कई मामलों में बहुत बेहतर है. मसलन, अब सरकारी कर्मचारियों को एक निश्चित रकम की गारंटी पेंशन के रूप में उपलब्ध होने की रहेगी, जो कि एनपीएस में नहीं थी, जबकि कर्मचारी अपने वेतन का 10 प्रतिशत अंशदान के रूप में दे रहा था। इस नयी योजना के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि 25 वर्ष तक काम करने के बाद ही अंतिम वर्ष के मूल वेतन का 50 प्रतिशत हिस्सा हर हालत में पेंशन की रकम के रूप में मिलेगा. वहीं अगर सेवा 25 वर्षों से कम की है, तो पेंशन की रकम सेवा के वर्षों के अनुपात में निश्चित होगी। इस योजना का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि अगर सेवा न्यूनतम 10 वर्षों के लिए की गयी है, तो मासिक पेंशन की रकम 10,000 रुपये निश्चित रहेगी। एक अन्य सकारात्मक पक्ष यह भी है कि पेंशनधारी की मृत्यु होने पर मासिक पेंशन का 60 प्रतिशत हिस्सा पारिवारिक पेंशन के रूप में कर्मचारी के प्रतिनिधि को प्रति माह मिलेगा।
इस योजना के अंतर्गत महंगाई भत्ते को भी पेंशन की रकम में सम्मिलित किया गया है, जो एनपीएस में नहीं था। हर तीन वर्ष के बाद पेंशन फंड में सरकारी अंशदान की सीमा की बढ़ोतरी के लिए मूल्यांकन किया जायेगा, जो वर्तमान में 18.5 प्रतिशत पर निश्चित किया गया है।कर्मचारी का अंशदान भविष्य में 10 प्रतिशत ही यथावत रहेगा, उसमें इससे अधिक की बढ़ोतरी नहीं होगी। ऐसे प्रावधानों से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मोदी सरकार की यह पेंशन योजना 2004 की पेंशन योजना का एक बेहतर विकल्प है।सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि 2004 की योजना से इस योजना में आने वाले कर्मचारियों को एरियर के रूप में भी भुगतान किया जायेगा, जिसका आर्थिक खर्च करीब 800 करोड़ रुपये का होगा। जहां तक पूर्ववर्ती योजना से एकीकृत पेंशन योजना की तुलना का प्रश्न है, तो मोदी सरकार ने इस योजना के द्वारा पूरी कोशिश की है कि पुरानी पेंशन योजना के लाभों को वापस कर्मचारियों को उपलब्ध कराया जाए। फिर भी यह माना जाता है कि आज भी पुरानी पेंशन योजना तुलनात्मक रूप से सरकारी कर्मचारियों के लिए ज्यादा सहानुभूति रखती है क्योंकि उसमें न्यूनतम 20 वर्षों के बाद वेतन के 50 प्रतिशत की रकम का पेंशन के रूप में मिलना निश्चित था, जो अब 25 वर्ष है। यूपीएस के अंतर्गत सेवानिवृत्ति पर मिलने वाली ग्रेच्युटी की रकम पुरानी पेंशन योजना की तुलना में लगभग 30 प्रतिशत से कम रहेगी, जो सरकारी कर्मचारियों के लिए एक आर्थिक नुकसान होगा लेकिन दूसरी तरफ इस योजना में पुरानी पेंशन योजना की तुलना में कुछ बेहतर पक्ष भी हैं, जैसे- फैमिली पेंशन के अंतर्गत अब 60 प्रतिशत का हिस्सा दिया जायेगा, जबकि पहले यह 30 प्रतिशत ही था और न्यूनतम पेंशन की सीमा को भी 9,000 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये कर दिया गया है।
मोदी सरकार की नई पेंशन स्कीम यूपीएस पर वार पलटवार का सिलसिला जारी है। विपक्ष ने यूपीएस को भी मुद्दा बना दिया है। कांग्रेस इस नई योजना का विरोध कर रही है और नई पेंशन स्कीम की आड़ में केंद्र सरकार पर निशाना साध रही है। वहीं, सत्ता पक्ष मोदी कैबिनेट के फैसले का बचाव कर रही है। ऐसे में लगता है कुछ राज्यों के आगामी चुनाव में भी पेंशन की इस नई योजना पर चर्चा होती रहेगी।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी सरकार अपनी पेंशन की इस नई योजना को लागू करने से पहले इसकी कतिपय खामियों को दूर करेगी? साथ ही एनपीएस स्कीम के अंतर्गत पेंशन फंड विनियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) के पास राजस्थान सहित अन्य प्रदेशों की अंशदायी जमापूंजी को वापस इन राज्यों को लौटाएगी?