- मैंने खुद समझा की सीनियर भारतीय हॉकी टीम के लिए क्या चाहिए
- मुझे डी में दबाव बना और तेजी से गेंद को ले निशानेबाजी बेहतर करने की जरूरत
सत्येन्द्र पाल सिंह
नई दिल्ली : दूध बेचकर परिवार चलाने वाले दूधिए के बेटे अब भारत की सीनियर हॉकी टीम के उदीयमान स्ट्राइकर गुरजोत सिंह ने अपने पिता की मदद के लिए रात में चप्पल फैक्ट्री में काम किया और सुबह हॉकी का अभ्यास। गुरजोत पहली हॉकी इंडिया जूनियर पुरुष अकेडमी नैशनल चैंपियनशिप 2021 में भोपाल बतौर स्ट्राइकर हॉकी कौशल दिखा चयनकर्ताओं को प्रभावित कर भारत की जूनियर पुरुष हॉकी टीम में स्थान बनाया 2023 में वह पहली बार सुल्तान ऑफ जोहोर कप 2023 , एफआईएच हॉकी 5 विश्व कप ओमान 2024, 12 वें सुलतान ऑफ जोहोर कप 2024 और पुरुष जूनियर एशिया कप मस्कट में खेलने के बाद ारत के लिए चीन में हीरो एशियन पुरुष चैंपियंस ट्राफी में खेले।
गुरजोत की मेहनत आखिर रंग लाई। 19 वर्षीय उदीयमान स्ट्राइकर गुरजोत सिंह ने हाल ही में मोची(चीन) में पुरुष एशियन चैंपियंस ट्रॉफी से भारतीय पुरुष हॉकी टीम के लिए सीनियर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट करियर का आगाज किया। ड्रैग फ्लिकर हरमनप्रीत सिंह की अगुआई में भारत ने फाइनल में मेजबान चीन को 1-0 से हरा कर एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी हॉकी खिताब जीता। गुरजोत ने भारत के लिए चीन में सभी सात मैच खेले और कोई गोल न करने के बावजूद अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे। गुरजोत ने कहा, ‘ हमारी सीनियर भारतीय हॉकी में माहौल बहुत बढ़िया है। हमारी टीम के सभी सीनियर खिलाड़ी बड़े भाईयों की तरह माहौल को हल्का रखते हैं। मेरे लिए एशियन चैंपियंस ट्रॉफी में भारत की सीनियर टीम के लिए पदार्पण स्वप्निल था। मैं चीन के खिलाफ खेलने को लेकर रोमांचित था। मैंने हालांकि अपने पदार्पण मैच में गोल कर सकता था लेकिन नहीं कर पाया बावजूद इसके मैंने इस मैच में अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने मेरे भारत की सीनियर टीम के लिए पहले मैच से पूर्व कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने मुझसे कहा कि तुम्हें जरूरत से जयादा सोचने और डरने की जरूरत नहीं है और तुम्हे उसी तरह खुल कर खेलने की जरूरत है जिस तरह तुम शिविर में खेलते हो। गलतियों की बाबत न सोचने की सलाह भी मेरे काम आई। हीरो एशियन चैंपियंस ट्रॉफी हॉकी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया। मैंने खुद समझा की सीनियर भारतीय हॉकी टीम के लिए क्या चाहिए। बेशक एशियन चैंपियंस ट्रॉफी हॉकी में पदार्पण स्वप्निल था क्योंकि हमारी भारतीय टीम ने सभी मैच जीतने के साथ खिताब भी अपने नाम किया। अभी भी भी बहुत लंबा रास्ता तय करना है और अपने खेल में बहुत सुधार करना है। मुझे खासतौर पर प्रतिद्वंद्वी टीम की डी में दबाव बनाकर और तेजी से गेंद को ले निशानेबाजी बेहतर करने की जरूरत है। मेरे माता पिता ने कुछ मुश्किल वक्त देखने के बावजूद हमेशा मेरे साथ खड़े रहे।’
संघर्ष के बीच से राह बनाई गुरजोत ने
गुरजोत पंजाब के हुसैनाबाद जैसे छोटे से गांव के हैं और उनके पिता करीब के गांव में दूध बेचते हैं और उनकी मां गृहिणी और बहने पढ़ रही हैं। बचपन में गुरजोत बहुत शारारती थे। जब वह छह बरस के थे और तब वह साइकिल दुर्घटना में बाल बाल बचे थे और तब उनके सिर में चोट लगी थी और छह टांके आए थे। गुरजोत बताते है, ‘साइकिल दुर्घटना के बाद मुझे कई बरस तक कमजोरी महसूस हुई। जब मैं दस बरस का तो इससे पूरी तरह उबर गया अर करीब के सरकारी स्कूल में पढ़ने लगा। स्कूल मैंने पाया कि जो बच्चे हॉकी खेलते हैं उन्हें कुछ ज्यादा छूट मिलती है। हॉकी खेलने वाले बच्चे देर से स्कूल आ सकते हैं और अभ्यास के लिए जल्दी जा सकते हैं। सो मैंने भी सोचा की हॉकी में हाथ क्यों न आजमाउं।’ 2020 के आते आते गुरजोत को पिता की मदद के लिए चप्पल फैक्ट्री में काम करना पड़ गया। तब गुरजोत रात में चप्पल फैक्ट्री में काम करते और सुबह हॉकी का अभ्यास करते। 2020 के आखिर में एक स्थानीय टूर्नामेंट में गुरजोत अब अपने सीनियर अभिषेक और सुखजीत के खिलाफ खेले। तभी गुरजोत को मैच के दौरान मालूम पड़ा कि राउंडग्लास हॉकी अकेडमी अगले दिन चयन स्पर्द्धा करेगी। गुरजोत ने अपना बैग संभाला और चयनकर्ताओं को प्रभावित करने के लिए ट्रायल देने जालंधर जाने की तैयारी कर ली।’