नीलम महाजन सिंह
18वीं संसद का मॉनसून सेशन शुरू होने से पहले, महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के संयुक्त अधिवेशन को, नई इमारत में संबोधित किया। उसके उपरांत सभी सांसदों ने शपथ ली तथा एक मज़बूत विपक्ष के साथ संसद सत्र चल रहा है। राहुल गांधी को वर्षों से ‘पप्पू’ कहने वालों को भी शर्मसार होना चाहिए, क्योंकि राहुल गांधी को ‘नेता-विपक्ष’ चुन लिया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का भाषण चर्चा का विषय बना हुआ है। इसमे हमें अचंभित नहीं होना चाहिए, क्योंकि राष्ट्रपति जो भी बोलतीं हैं, वह सरकार द्वारा तैयार किया गया, सरकारी उपलब्धियां, व आगे के अपने कार्यक्रम की उद्घोषणा होती है। फ़िर भी आलोचकों ने भाषण का अवलोकन किया है। क्या है राष्ट्रपति के संबोधन की विशेषताएं या खामियाँ ? राष्ट्रपति ने भी “आज़ादी के अमृतकाल की शुरुआत में यह भव्य भवन बना है”; जैसी भाजपा की भाषा का ही प्रयोग किया है। यहां एक भारत श्रेष्ठ भारत की महक है। वैसे आज़ादी के बाद भारत तो एक ही है ना? भारत की सभ्यता और संस्कृति की चेतना भी है। इसमें, हमारी लोकतांत्रिक और संसदीय परंपराओं के सम्मान का प्रण भी है। यह आवश्यक है कि नीतियों पर सार्थक संवाद होना चाहिए। राष्ट्रपति ने आज़ादी के अमृतकाल व विकसित भारत के निर्माण करने का आग्रह किया है। संविधान के लागू होने अब 75वां वर्ष है। इस दौरान देश भर में अनेक कार्यक्रम हुए। 75 साल बाद युवा पीढ़ी ने फ़िर स्वतन्त्रता संग्राम के उस कालखंड को जिया है। ‘मेरी माटी, मेरा देश अभियान के तहत, देश भर के हर गाँव की मिट्टी के साथ अमृत कलश दिल्ली लाए गए’। परंतु क्या सामाजिक समीकरण प्रतीत हुआ? 2 करोड़ से ज्यादा पेड़-पौधे तो लगाए, परंतु उद्योगों ने प्रकृति का विनाश भी किया है। 16 करोड़ से ज़्यादा लोगों ने ‘तिरंगे के साथ सेल्फी’ अपलोड की है। कर्तव्य पथ पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित की गई। राजधानी दिल्ली में देश के अब तक के सभी प्रधान मंत्रियों को समर्पित म्यूज़ियम खोला गया है। शांति निकेतन और होयसला मंदिर वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल हुए हैं। साहिबज़ादों की याद में ‘वीर बाल दिवस’ घोषित हुआ। भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिवस को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ घोषित किया गया। 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ घोषित किया गया है। देशवासियों का गौरव बढ़ाने वाले अनेक पल आए हैं। दुनिया में गंभीर संकटों के बीच भारत सबसे तेज़ी से विकसित होती हुई बड़ी अर्थ व्यवस्था बना है। लगातार 2 क्वार्टर में भारत की विकास दर 7.5 प्रतिशत से ऊपर रही है। भारत, चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर झंडा फहराने वाला पहला देश बना। भारत ने सफलता के साथ ‘आदित्य मिशन’ लॉन्च किया, धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर अपनी सैटेलाइट पहुंचाई। ऐतिहासिक G-20 सम्मेलन की सफलता ने पूरे विश्व में भारत की भूमिका को सशक्त किया। भारत ने एशियाई खेलों में पहली बार 100 से अधिक मेडल जीते। पैरा एशियाई खेलों में भी 100 से अधिक मेडल जीते। भारत को अपना सबसे बड़ा समुद्री-पुल, ‘अटल सेतु’ मिला। पहली ‘नमो भारत ट्रेन’ तथा पहली ‘अमृत भारत ट्रेन’ भी मिली। भारतीय एयरलाइंस कंपनी ने दुनिया की सबसे बड़ी एयरक्राफ्ट डील की है। परंतु यह भी याद रखना होगा कि ‘एयर इंडिया’ जिसका निजीकरण तो हो गया है, परंतु आम जनता उनकी सेवाओं से संतुष्ट नहीं है। सारा धन तो रत्न टाटा के पास चला गया? महामहिम ने कहा कि ‘मिशन मोड’ में लाखों युवाओं को सरकारी नौकरी दी है। परंतु यह भी सत्य है कि करोडों युवा बेरोज़गार हैं तथा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। पिछले 12 महीनों में अनेक महत्वपूर्ण विधेयक, आज कानून बन चुके हैं। परंतु इन पर कोई चर्चा नहीं हुई और इन्हें एकतरफ़ा पारित किया गया है। 3 दशक बाद ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ पारित हुआ, इससे लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं की ज़्यादा भागीदारी सुनिश्चित हुई है। यह ‘वीमेन डेवलपमेंट’ के संकल्प को मज़बूत करता है। ‘रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म’ के अपने कमिटमेंट को लगातार जारी रखा गया है। ‘गुलामी के कालखंड’ से प्रेरित क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम अब इतिहास हो गया है। अब दंड को नहीं, अपितु न्याय को प्राथमिकता दी जाती है। ‘न्याय सर्वोपरि’ के सिद्धांत पर ये नई न्याय संहिता को देश में लागू किया गया है। ‘डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम’ से डिजिटल स्पेस और अधिक सुरक्षित होने वाला है। जम्मू-कश्मीर आरक्षण कानून से, वहां भी जनजातीय समुदायों को प्रतिनिधित्व का अधिकार मिलेगा। परंतु अभी भी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में आर्मी व अन्य सशक्त पुलिस दल कार्यरत हैं. पिछले वर्ष 76 अन्य पुराने कानूनों को भी हटाया गया है। परीक्षाओं में होने वाली गड़बड़ी को लेकर युवाओं की चिंता से अवगत हैं। इसलिए ऐसे गलत तरीकों पर सख़्ती के लिए नया कानून बनाने का निर्णय लिया गया है। मैडम जी, नित (NEET) परीक्षाओं की धांधली का क्या हुआ? नैशनल टेस्ट अथॉरिटी की निष्पक्षता पर अंकुश लग गया है। कोई भी राष्ट्र, तेज़ गति से तभी आगे बढ़ सकता है, जब वह पुरानी चुनौतियों को परास्त करते हुए अपनी ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा भविष्य- निर्माण में लगाए। पिछले 10 वर्षों में, भारत ने राष्ट्र-हित में ऐसे अनेक कार्यों को पूरा होते हुए देखा है जिनका इंतजार देश के लोगों को दशकों से था। ‘राम मंदिर के निर्माण’ की आकांक्षा सदियों से थी। इसी संसद ने ‘तीन तलाक’ के विरुद्ध कड़ा कानून बनाया। इसी संसद ने हमारे पड़ोसी देशों से आए पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने वाला कानून बनाया। ‘वन रैंक वन पेंशन’ को भी लागू किया, जिसका इंतजार चार दशकों से था। यह लागू होने के बाद अब तक पूर्व सैनिकों को लगभग 1 लाख करोड़ रुपए मिल चुके हैं। भारतीय सेना में पहली बार चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति भी हुई है। राष्ट्रपति ने उत्कलमणि पंडित गोपबंधु दास की अमर पंक्तियां असीम राष्ट्र प्रेम की भावना का सदा संचार करती हैं। उन्होंने कहा था, “मिशु मोर देह ए देश माटिरे, देशबासी चालि जाआन्तु पिठिरे। देशर स्वराज्य-पथे जेते गाड़, पूरु तहिं पड़ि मोर मांस हाड़”। अर्थात् मेरा शरीर इस देश की माटी के साथ मिल जाए, देशवासी मेरी पीठ पर से चलते चले जाएं, देश के स्वराज्य-पथ में जितनी भी खाइयां हैं, वे मेरे हाड़-मांस से पट जाएं। इन पंक्तियों में हमें कर्तव्य की पराकाष्ठा दिखती है, ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ का आदर्श दिखाई देता है। नीति आयोग के अनुसार, सरकार के एक दशक के कार्यकाल में, करीब 25 करोड़ देशवासी ग़रीबी रेखा से बाहर निकले हैं। मानव केंद्रित विकास पर बल देना चाहिए है। हमारे लिए हर नागरिक की गरिमा सर्वोपरि। यही सामाजिक न्याय की हमारी अवधारणा है। भारत के संविधान के हर अनुच्छेद का संदेश भी यही है। हमारे यहां लंबे समय तक सिर्फ अधिकारों पर चर्चा होती थी। इससे नागरिकों में भी कर्तव्य-भाव जागा। आज अपने-अपने कर्तव्य के पालन से हर अधिकार की गारंटी का भाव जागृत हुआ है। रेहड़ी-ठेले-फुटपाथ पर काम करने वाले साथी भी दशकों से अपने हाल पर छोड़ दिए गए थे। मेरी सरकार ने, ‘पीएम स्वनिधि योजना’ द्वारा उनको बैंकिंग से जोड़ा। इस योजना के तहत, अब तक 10 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक की राशि के ऋण दिए जा चुके हैंI सरकार ने इन पर भरोसा करते हुए, बिना कोलेट्रेल के ऋण दिया। आप सभी, करोड़ों भारतीयों कीनआकांक्षाओं के प्रतिनिधि हैं। आज जो युवा स्कूल-कॉलेज में हैं, उनके सपने बिल्कुल अलग हैं। हम सभी का यह दायित्व है कि ‘अमृत पीढ़ी के सपनों’ को पूरा करने में कोई कसर बाकी न रहे। विकसित भारत, हमारी अमृत पीढ़ी के सपनों को साकार करे, ऐसा प्रयास होना चाहिए। सारांशाार्थ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का 1975 की आपातकाल ‘इमरजेंसी’ का विवरण, सीधे-सीधे कॉंग्रेस पार्टी और विशेष रूप से गांधी परिवार पर कटाक्ष था। राष्ट्रपति की महिमा किसी भी पार्टी से ऊपर होती है। वापिस इतिहास की खाई में जाने का कोई लाभ नहीं हुआ। फ़िर पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने देश से माफ़ी माँगी थी और पुनः प्रधान मंत्री भी बनीं थीं। इसलिए हम सभी को एक साथ मिलकर, संकल्पों की सिद्धि के लिए जुटना होगा। अटल बिहारी वाजपेयी की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं, “अपनी ध्येय-यात्रा में, हम कभी रुके नहीं हैं। किसी चुनौती के सम्मुख कभी झुके नहीं हैं”। वर्ष 2047 का जो टार्गेट रखा गया है, तब तक हममें से अनेक लोग जीवित ही नहीं होंगें, लेकिन हमारी विरासत ऐसी होनी चाहिए कि तब की पीढ़िया हमें याद करें। महामहिम भारत की राष्ट्रपति हैं, किसी विशेष राजनीतिक दल की नहीं हैं! परंतु यह हर राष्ट्रपति की ड्यूटी होती है कि जब भी वे संसद को सम्बोधित करते हैं तो उन्हें ‘सरकारी भाषा’ का ही प्रयोग करना पड़ता है। इस कारण राष्ट्रपति के संबोधन पर कटाक्ष या आंकलन कोई विशेष महत्वपूर्ण नहीं है, यह एक आम संविधानिक परंपरा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि 2029 तक, संगठित विपक्ष के द्वारा आम जनता के हितों को बढ़ावा दिया जाएगा।
नीलम महाजन सिंह
(वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर फॉर ह्यूमन राइट्स व परोपकारक)