चीन में उइगर मुसलमानों पर अत्याचार और मुस्लिम देशों की चुप्पी

Atrocities on Uighur Muslims in China and silence of Muslim countries

अशोक मधुप

आज के आधुनिक युग में, जब मानवाधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता की बातें वैश्विक मंचों पर जोर-शोर से उठाई जाती हैं, चीन में उइगर मुसलमानों की स्थिति , उनके उत्पीड़न और उनकी धार्मिक आजादी पर हमले गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। चीन के शिनजियांग प्रांत में, जहाँ अधिकांश उइगर आबादी रहती है, सरकार द्वारा व्यापक पैमाने पर अत्याचार और दमन की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। इन अत्याचारों में जबरन श्रम, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मिटाने के प्रयास, और तथाकथित “पुनर्शिक्षण शिविरों” में बड़े पैमाने पर कैद शामिल हैं। इन गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों के बावजूद, दुनिया के कई मुस्लिम देशों की चुप्पी हैरान करने वाली है।

कारोबार के सिलसिले में अरब व्यापारियों द्वारा चीन का सफर करने के कारण चीन में इस्लामी प्रभाव सैकड़ों वर्ष पुराना है, लेकिन शिनजियांग में उइगुर मुसलमानों का संबंध अरब नरल से नहीं है। इनका ताल्लुक तुर्कों से है। इनकी भाषा और संस्कृति चीनी भाषा और संस्कृति से भिन्न है। शिनजियांग को सरहदें मंगोलिया, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान, करकिस्तान, कजाकिस्तान और हिंदुस्तान से मिलती हैं। शिनजियांग सदियों से कृषि एवं व्यापार पर आधारित है। काशगर समेत कई नगर प्रसिद्ध सिल्क रूट के लिए जाने जाते हैं। चीन में मुसलमानों की आबादी करीब 2.85 प्रतिशत है। शिनजियांग में लगभग 47 प्रतिशत (1.2 करोड़) उइगुर मुसलमान और 40 फीसदी हॉन चौनी राहते हैं। 1949 में शिनजियांग में 90 प्रतिशत तुकीं मुसलमान और चार फीसदी हान वंशी आबाद थे। अब वहां हान चीनियों की बड़ी तादाद को बसाकर उइगुरों को अल्पसंख्यक बनाया जा चुका है। चीन में 39 हजार मसजिदें हैं। इनमें 25 हजार शिनजियांग में हैं। 20 नवंबर 1949 को उइगुरों ने पूर्वी तुर्किस्तान (शिजियांग) को स्वतंत्र घोषित किया था, किंतु यह स्वतंत्रता अधिक दिनों तक कायम नहीं रह सकी। चीन की कम्युनिस्ट सरकर ने उसी वर्ष फौजी कार्रवाई करते हुए इसे पीपुल रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) में शामिल कर लिया। इस कारण चीन और उइगुरों के बीच झड़पों का सिलसिला जारी है। कहा जाता है कि 1990 और 2008 के ओलंपिक खेलों के दौरान अलगाववादी उइगुरों द्वारा किए गए प्रदर्शनों से नाराज हुकमरान ने मुसलमानों को चीन के लिए खतरा मानते हुए अत्याचार में इजाफा किया। उन पर अफगानिस्तान में प्रशिक्षण लेने और अलकायदा से संबंध रखने का आरोप है। स्थिति यह है कि शिनजियांग के मुसलमानों को अपना मजहब और पहचान छोड़कर कम्युनिज्म अपनाने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

चीन का एक स्वायत्त क्षेत्र शिनजियांग सदियों से उइगर मुसलमानों का घर रहा है। ये उइगर मुख्य रूप से सुन्नी मुस्लिम हैं। उनकी अपनी एक विशिष्ट संस्कृति, भाषा और इतिहास है। हालाँकि, पिछले कुछ दशकों में, चीनी सरकार ने इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कठोर नीतियाँ लागू की हैं। चीन इन उइगरों मुस्लिमों के लिए “पुनर्शिक्षण शिविरों” का संचालन करता है। कुख्यात और परेशान करने वाला मुद्दा चीन का इन “पुनर्शिक्षण शिविरों” का संचालन है। चीन सरकार इन्हें “व्यावसायिक कौशल शिक्षा प्रशिक्षण केंद्र” कहती है, लेकिन कई पूर्व बंदियों और मानवाधिकार समूहों के अनुसार, ये वास्तव में राजनीतिक और धार्मिक ब्रेनवाशिंग के केंद्र हैं। इन शिविरों में लाखों उइगरों और अन्य अल्पसंख्यक मुसलमानों को बिना किसी मुकदमे के कैद किया गया है। यहाँ उन्हें अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को त्यागने, मंदारिन भाषा सीखने, और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादारी की शपथ लेने के लिए मजबूर किया जाता है। यौन उत्पीड़न, यातना, और जबरन नसबंदी की खबरें भी इन शिविरों से सामने आई हैं, जो मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हैं।इन शिविरों के बाहर भी उइगरों की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता पर कड़े प्रतिबंध हैं। मस्जिदों को ढहाया जा रहा है या उनकी वास्तुकला को चीनी शैली में बदल दिया जा रहा है। बच्चों के अरबी नाम रखने पर प्रतिबंध है। कुरान जैसे धार्मिक ग्रंथों को जब्त किया जा रहा है। उइगर भाषा के उपयोग को हतोत्साहित किया जा रहा है और बच्चों को स्कूलों में मंदारिन भाषा सीखने के लिए मजबूर किया जा रहा है। निगरानी तंत्र बहुत व्यापक है। निगरानी तंत्र में चेहरे की पहचान करने वाले कैमरे और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) तकनीक का उपयोग किया जाता है। उइगरों के घरों में चीनी अधिकारियों को “रिश्तेदार” बनाकर रहने के लिए भेजा जाता है, जो उनके व्यवहार पर नजर रखते हैं । उनकी धार्मिक प्रथाओं की निगरानी करते हैं।

चीन पर यह भी आरोप है कि वह उइगरों को जबरन श्रम में लगा रहा है। कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों, विशेष रूप से कपड़ा और कपास उद्योग पर आरोप है कि वे उइगरों द्वारा जबरन श्रम से बने उत्पादों का उपयोग करती हैं। रिपोर्टों के अनुसार, उइगरों को अपने घरों से निकालकर दूर के कारखानों में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, जहाँ उन्हें बहुत कम या कोई वेतन नहीं मिलता। यह एक आधुनिक दासता का रूप है जो अंतर्राष्ट्रीय श्रम कानूनों का उल्लंघन है।

इस्लाम से संबंध होने, संदिग्ध गतिविधियों में संलिप्त रहने, पास्पोर्ट के लिए आवेदन करने, विदेशों में रह रहे रिश्तदारों से बात करने, सोशल मीडिया पर सर्च के दौरान अनजाने में विदेशी वेबसाइट खुल जाने, तब्लीग करने या फिर भरोसे के काबिल नहीं रहने के शक में उइगुरों पर अत्याचारों किए जा रहे हैं। मजहबी आजादी व आवास छीनते हुए उन्हें यातना शिविरों में रखा जा रहा है। चीन के मुस्लिम विरोधी रुख के चलते मदों को लंबी दाढ़ी रखने, टोपी औढ़ने, महिलाओं के नकाब पहनने, आबादी नियंत्रण को गर्भपात कराने, 16 वर्ष से कम आयु के अवयस्क बच्चों के दीनी तालीम हासिल करने और सार्वजनिक स्थानों पर नमाज अदा करने की इजाजत नहीं है। 2014 से रमजान महीने के फर्ज रोजों पर प्रतिबंध लगा रखा है। 500 मसजिदों से अजान के लिए लगे लाउडस्पीकरों को हटा दिया गया। 2017 में मसजिदों से नमाज की चटाई, कुरआन मजीद और अन्य धार्मिक वस्तुएं हटाई जा चुकी हैं। हलाल चीजों से रोकने व हराम वस्तुओं के प्रयोग पर मजबूर किया जाता है। उन्हें इस्लाम से दूर रखने का हरसंभव प्रयास किया जा रहा है।

भारत, फिलिस्तीन और म्यांमार आदि में मुसलमानों के हक पर जरा सी आंच आते ही मुस्लिम जगत में बवाल मच जाता है। हाल में आई लब मुहममद के नारों के साथ भारत में कई जगह प्रदर्शन हुए लेकिन चीन द्वारा शिनजियांग में उइगुर मुसलमानों को कुचलने एवं योजनाबद्ध तरीके से नस्ल खत्म करने के मुद्दे पर हर तरफ खामोशी है। पड़ोसी देश को तो चीन द्वारा उइगुर मुसलमानों का उत्पीड़न और धार्मिक पाबंदियां नजर नहीं आतीं, अन्य मुस्लिम राष्ट्र भी आंखें मूंदें हुए हैं।

चीन में उइगर मुसलमानों पर हो रहे इस भयावह अत्याचार के बावजूद, दुनिया के अधिकांश मुस्लिम देश इस मुद्दे पर आश्चर्यजनक रूप से चुप हैं। जहाँ पश्चिमी देश और मानवाधिकार संगठन लगातार चीन की आलोचना कर रहे हैं। मुस्लिम बहुल देशों जैसे सऊदी अरब, पाकिस्तान, मिस्र, और संयुक्त अरब अमीरात ने इस मुद्दे पर या तो चुप्पी साध रखी है या चीन के पक्ष में बयान दिए हैं। यह चुप्पी न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि यह इस्लामी भाईचारे के सिद्धांतों के भी खिलाफ है, जो ‘उम्मा’ (वैश्विक मुस्लिम समुदाय) की एकता और एक दूसरे के समर्थन पर जोर देता है।

मुस्लिम देशों की इस चुप्पी के कई जटिल कारण हैं। सबसे बड़ा कारण आर्थिक निर्भरता है। चीन आज दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । कई मुस्लिम देशों का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और आर्थिक साझेदार है। पाकिस्तान, सऊदी अरब, और मिस्र जैसे देश चीन से बड़े पैमाने पर निवेश और आर्थिक सहायता प्राप्त करते हैं। चीन का “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” (BRI) कई मुस्लिम देशों के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ ला रहा है। इन आर्थिक संबंधों को खतरे में डालने से बचने के लिए, ये देश मानवाधिकारों के मुद्दे पर चीन की आलोचना करने से बचते हैं। मुस्लिम देश चीन को संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभाव को संतुलित करने वाले एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार के रूप में देखते हैं। वे चीन के साथ अपनी भू-राजनीतिक संबंधों को मजबूत करना चाहते हैं, खासकर जब उनके संबंध अमेरिका के साथ तनावपूर्ण होते हैं। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान चीन को भारत के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में देखता है। ईरान भी चीन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हुए है, क्योंकि दोनों ही देश अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं।

चीन सरकार शिनजियांग में अपनी कठोर नीतियों को आतंकवाद और उग्रवाद से लड़ने के लिए आवश्यक बताती है। कुछ मुस्लिम देश, जो स्वयं इस्लामी आतंकवाद से पीड़ित हैं, चीन के इस तर्क को स्वीकार करते हैं। वे मानते हैं कि चीन की कार्रवाई उनके अपने सुरक्षा हितों के अनुरूप है, भले ही इसके लिए मानवाधिकारों का उल्लंघन हो। कई मुस्लिम देशों का अपना मानवाधिकार रिकॉर्ड भी बहुत अच्छा नहीं है। सऊदी अरब, मिस्र, और तुर्की जैसे देशों में भी असहमति को दबाने और धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के आरोप लगे हैं। इसलिए, वे चीन की आलोचना करने में हिचकिचाते हैं, क्योंकि इससे उन पर भी सवाल उठ सकते हैं। वे अक्सर आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत का हवाला देते हैं।

चीन में उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार मानवाधिकारों का एक गंभीर उल्लंघन हैं। यह मुद्दा केवल एक क्षेत्रीय समस्या नहीं है, बल्कि एक वैश्विक नैतिक चुनौती है। मुस्लिम देशों की इस मामले पर चुप्पी विशेष रूप से निराशाजनक है। यह चुप्पी न केवल उन लाखों उइगरों के साथ विश्वासघात है जो अपने धर्म और संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, बल्कि यह मुस्लिम उम्मा के मूलभूत सिद्धांतों के भी खिलाफ है।

इस चुप्पी को तोड़ने और मानवाधिकारों के लिए खड़े होने के लिए, मुस्लिम देशों को अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर नैतिक जिम्मेदारी दिखानी चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को चीन पर दबाव बनाना जारी रखना चाहिए, ताकि वह इन शिविरों को बंद करे, जबरन श्रम को खत्म करे, और उइगरों को उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता वापस दे। चीन द्वारा शिनजियांग के उइगुर मुसलमानों को हिरासती शिविरों में कैद रखने तथा उत्पीड़न के साथ उनकी धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध की अमानवीय वारदातें अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से छिपी नहीं हैं। अमेरिका के बाद जर्मनी ने भी चीन के अत्याचार, धार्मिक भेदभाव व नस्लीय घृणा की कठोर शब्दों में निंदा की है। पिछले दिनों हिरासती शिविरों में कैद 311 उइगुर मुसलमानों की सूची जर्मन न्यूज चैनल डी डब्ल्यू समेत कई अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को हासिल हुई। 403 पृष्ठों पर आधारित खुफिया दस्तावेज के सामने आने से मालूम हुआ कि उइगुर

मुसलमानों की तबाही और मानवता को लज्जित करने वाले किस्से सार्वजनिक पटल पर आने के बावजूद दुनिया भर के 180 करोड़ मुसलमानों का चीन चुप्पी साध लेना निराशाजनक है। एक दर्जन से अधिक मुस्लिम देशों का उइगुर प्रकरण पर चीन की हिमायत करते हैं।