निर्मल रानी
स्कूली शिक्षा ग्रहण करने वाला लगभग प्रत्येक भारतवासी संत कबीर के उन दोहों से भली भांति परिचित है जो हमें गुरु के रुतबे व उनके महत्व से परिचित कराते हैं। संत कबीर का सबसे प्रसिद्ध व प्रचलित दोहा ‘गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय’।। अर्थात गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यानी गुरु भगवान से भी पहले पूजनीय है। इसी प्रकार कबीर दास कहते हैं -‘गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष। गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।। यानी – हे सांसारिक प्राणियों। बिना गुरू के ज्ञान का मिलना असम्भव है। तब तक मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनों में जकड़ा रहता है जब तक कि गुरू की कृपा प्राप्त नहीं होती। मोक्ष रूपी मार्ग दिखाने वाले गुरू हैं। बिना गुरू के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नहीं होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा? अतः गुरू की शरण में जाओ। गुरू ही सच्ची राह दिखाएंगे। इसी तरह -गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत। वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।। अर्थात गुरू और पारस के अन्तर को सभी ज्ञानी पुरुष जानते हैं। पारस मणि के विषय में जग विख्यात है कि उसके स्पर्श से लोहा सोने का बन जाता है। किन्तु गुरू भी इतने महान होते हैं कि अपने गुण ज्ञान में ढालकर शिष्य को अपने जैसा ही महान बना लेते हैं। संत कबीर की ही तरह अनेक कवियों, महापुरुषों, चिंतकों, संतों, ऋषि मुनियों ने गुरुओं की महानता का बखान अपने अपने तरीक़े से करते हुए गुरु या शिक्षक को सर्वोच्च स्थान देने की कोशिश की है।
तो क्या हमारे उन महापुरुषों द्वारा गुरुओं के सम्बन्ध में व्यक्त किये गये विचार वर्तमान युग में सही साबित हो रहे हैं ? क्या आज का सम्पूर्ण शिक्षक समाज ‘गोविन्द’ अर्थात ‘भगवान’ के समतुल्य है ? या फिर प्रदूषित होते जा रहे अन्य पेशों की ही तरह अध्यापन जैसा यह पवित्र पेशा भी अब इस पेशे में प्रवेश कर चुके अनेक साम्प्रदायिकतावादी,जातिवादी,अहंकारी,अपराधी सोच रखने वाले पूर्वाग्रही व राक्षसी मनोवृत्ति रखने वाले लोगों की वजह से बदनाम व अविश्वसनीय होता जा रहा है ? अनेक शिक्षकों की क्रूरता के संबंध में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये दिन प्राप्त होने वाले समाचार तो कम से कम ऐसा ही आभास कराते हैं। राजस्थान के जालोर जिले के सुराणा गांव स्थित निजी स्कूल सरस्वती विद्या मंदिर की इसी वर्ष 20 जुलाई की घटना ने पूरे देश को आक्रोशित कर दिया था। इस घटना में कथित तौर पर छैल सिंह नामक एक अध्यापक ने तीसरी कक्षा के छात्र इंद्र मेघवाल को इतना पीटा कि बच्चे की कान की नस फट गई और अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी। बताया गया था कि मृतक छात्र ने पेयजल के मटके को कथित रूप से छू लिया था। जिसके बाद ही शिक्षक छैल सिंह ने उसकी पिटाई कर डाली। इस घटना से जातिवादी तनाव भी पैदा हो गया था। क्या किसी गोविन्द समान ‘गुरु ‘ से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह अपने शिष्य के पानी की मटकी छू लेने मात्र से इतना क्रोधित हो उठे कि ‘गुरु ‘ की जानलेवा पिटाई से बच्चे की मौत हो जाये?
ऐसी ही एक घटना पिछले दिनों बिहार के गया ज़िले के वज़ीर गंज इलाक़े के एक स्कूल में घटी। यहां भी एक शिक्षक द्वारा बेरहमी से पीटे जाने के बाद 8 साल के एक छात्र की मौत हो गई। बताया जाता है कि होमवर्क न करने पर शिक्षक द्वारा छात्र को बेरहमी से मारा गया था। पटना में एक शिक्षक ने 5 साल के छात्र को उसके द्वारा संचालित कोचिंग क्लास में पढ़ाई ना करने पर डंडे से इतना मारा कि मारते-मारते डंडा टूट गया। इसके बाद क्रूर लालची शिक्षक ने बच्चे की लात-घूंसे से भी पिटाई की। इस दौरान बच्चा ज़मीन पर गिर गया परन्तु वह उसे लात-घूंसे- थप्पड़ से लगातार पीटता रहा। बच्चा चीख़ता चिल्लाता रहा और शिक्षक से उसे छोड़ने की मिन्नतें करता रहा, परन्तु दुष्ट अध्यापक ने उसे इतना मारा कि बच्चे की मौत हो गई। इसी तरह बिहार के गया के एक निजी स्कूल में तीसरी क्लास में पढ़ने वाले 6 साल के विवेक को उसके ‘गुरूजी ‘ व गुरूजी की धर्मपत्नी दोनों ने कमरे में बंद कर उस बच्चे की छाती पर चढ़कर उसे इतना पीटा कि बच्चे की मौत हो गयी। बच्चे का क़ुसूर केवल इतना था कि उसने दुर्गा पूजा की थाली में रखे प्रसाद में से एक सेब उठा लिया था। क्या बच्चे की मौत से मां दुर्गा प्रसन्न हुई होंगी ?
यूपी के औरैया में 10वीं में पढ़ने वाले निखिल नामक एक दलित छात्र की किसी ग़लती को लेकर स्कूल में शिक्षक ने कथित तौर पर बुरी तरह पिटाई कर दी। इसके बाद छात्र को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। निखिल दसवीं कक्षा का छात्र था। उत्तर प्रदेश के ही श्रावस्ती ज़िले के सिरसिया क्षेत्र के एक निजी स्कूल में बनकटवा गांव निवासी तीसरी कक्षा के छात्र बृजेश विश्वकर्मा की उसके शिक्षक ने कथित तौर पर इतनी पिटाई की कि बच्चे की मौत हो गयी। मृतक छात्र के परिजनों का आरोप था कि बृजेश विश्वकर्मा को उसके शिक्षक ने स्कूल की फ़ीस जो 250 रुपये प्रति माह है,समय पर अदा न करने के ग़लत आरोप में पीटा था। परिजनों के अनुसार फ़ीस का भुगतान ऑनलाइन किया जा चुका था,परन्तु शायद अध्यापक को इसका पता नहीं चला।
उपरोक्त चंद उदाहरण कलयुग के इस दौर में शिक्षक समाज में प्रवेश कर चुके कुछ क्रूर मानसिकता रखने वाले लोगों के चरित्र व उनकी क्रूर व आपराधिक मानसिकता को उजागर करने के लिये काफ़ी हैं। परन्तु इसी शिक्षक समाज में ऐसे शिक्षक भी मौजूद हैं जो बच्चों को अपनी संतानों जैसा प्यार देते हैं। अपने छात्रों की सफलता से गौरवान्वित होते हैं। बच्चों से ट्यूशन पढ़ाने की कोई अतिरिक्त फ़ीस नहीं लेते। यहाँ तक कि ग़रीब बच्चों की फ़ीस स्वयं भरने वाले शिक्षक आज भी मौजूद हैं। यूँही नहीं भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम ने स्वयं को पूर्व राष्ट्रपति,भारत रत्न अथवा मिसाइल मैन के बजाये स्वयं को ‘ प्रोफ़ेसर ‘ कहकर संबोधित किये जाने का अनुरोध किया था। यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि इस पवित्र व नोबेल शिक्षा जगत में ऐसे लोगों का प्रवेश हो गया है जिनका पेशा तो अध्यापन का है परन्तु उनकी मनोवृत्ति राक्षसीय है ?