- सभी राजनीतिक दलों के नेता प्राधिकरणों पर बनाएं दबाव अन्यथा संसदीय चुनाव में झेलना पड़ेगा विरोध
- न्यू ग्रेटर नोएडा घोषित क्षेत्र के लोग “पहले गांव का विकास, बाद में भूमि अधिग्रहण” के फार्मूले के लिए बनाएं दबाव
कर्मवीर नागर प्रमुख
जब गौतम बुद्ध नगर की 288 ग्राम पंचायतों को औद्योगिक नगरीय क्षेत्र घोषित करने के बाद पंचायत पुनर्गठन बंद किया गया था तो अधिकतर लोगों ने गांवों में आपसी राजनीतिक रंजिश की दृष्टि से राहत की सांस ली थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि चुनाव न होने से इन गांवों में आपसी वैमनस्यता तो काफी हद तक खत्म हुई है लेकिन औद्योगिक नगरीय क्षेत्र घोषित गांवों के लोगों को नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। खासतौर से नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण क्षेत्र के गांव प्राधिकरणों की अनदेखी और भेदभाव की वजह से नरक बन गए हैं। इन गांवों में टूटे-फूटे और कीचड़ भरे रास्ते आम हैं ।जिन गांवों के किसानों की भूमि पर गगनचुंबी इमारतें और चमचमाते सेक्टर्स का निर्माण किया गया है उन्होंने सोचा भी नहीं था कि पंचायत राज व्यवस्था समाप्त होने के बाद इन गांव की यह दुर्दशा हो जाएगी।
अब भले ही इन गांवों का योजनाबद्ध तरीके से समुचित विकास करने एवं म्युनिसिपल सेवाएं देने का दायित्व प्राधिकरणों का है लेकिन सच्चाई तो यह है कि प्राधिकरण इन गांवों के साथ भेदभाव करते नजर आ रहे हैं। प्राप्त जानकारी और आंकड़ों पर नजर डालें तो प्राधिकरण की बोर्ड बैठक में गांवों के विकास के लिए अनुमोदित धनराशि का मात्र चौथाई हिस्सा ही गांवों के विकास कार्यों पर खर्च किया जा रहा है जिस पर कोई आवाज उठाने वाला नहीं है। क्योंकि प्राधिकरण के अधिकारियों ने इन गांवों के किसानों को मुआवजा और भूखंड आवंटन जैसे अहम मुद्दों पर उलझा के रखा हुआ है जिस वजह से गांव का विकास अभी तक मुख्य मुद्दा नहीं बन पाया है। इसमें भी एक विशेष बात यह भी है कि प्राधिकरण द्वारा ही नहीं बल्कि अब तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा भी गांवों की अनदेखी करना आम बात हो गई है। ऐसा हो भी क्यों न, क्योंकि लोकतंत्र में मतदाताओं की संख्या विशेष मायने रखती है इसलिए जनप्रतिनिधियों का रुझान ग्रामीण क्षेत्र से हटकर हाईराइज इमारतों की तरफ बढ़ता नजर आ रहा है।यही तो असल वजह है कि शासन और प्रशासन आजकल शहरी सेक्टर्स और हाई राइज इमारतों के वाशिंदों की समस्याओं को निस्तारित करने पर जोर दे रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ इंडस्ट्रियल टाउनशिप घोषित गांवों पर किसी का खास फोकस नहीं है। यहां तक की इन ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा जिन गांवों को वर्षों पूर्व स्मार्ट विलेज के रूप में विकसित करने के लिए चयनित किया गया था वह गांव अभी पूरी तरह बदहाल है। लगभग 9 वर्ष पूर्व पंचायत पुनर्गठन समाप्ति के बाद से आज तक इन गांवों में प्राधिकरणों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से वार्षिक योजना बनाकर विकास कार्य नहीं कराए गए बल्कि यह गांव प्राधिकरणों की मनमानी पर निर्भर है। क्योंकि न तो प्राधिकरण के अधिकारियों की गांव के विकास कार्यों में कोई रुचि है और नाही इन गांवों के विकास के लिए जनप्रतिनिधियों द्वारा प्राधिकरण पर कोई खास दबाव नजर आता है।
इस तरह प्राधिकरण द्वारा औद्योगिक नगरीय क्षेत्र घोषित गांवों के साथ विकास कार्यों में किया जा रहा भेदभाव और अनदेखी का दुष्प्रभाव साफ स्पष्ट नजर आ रहा है।
कर्मवीर नागर प्रमुख ने नये ग्रेटर नोएडा क्षेत्र के लोगों को अभी से आगाह करते हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण से पूर्व प्राधिकरण पर योजनाबद्ध तरीके से गांवों के विकास कार्य कराना सुनिश्चित करें अन्यथा भविष्य में पंचायत पुनर्गठन बंद होने के बाद औद्योगिक नगरीय क्षेत्र घोषित 288 गांवों की तरह पश्चाताप करना पड़ेगा। कर्मवीर नागर प्रमुख ने कहा कि प्राधिकरणों द्वारा विकास कार्यों में किए जा रहे हैं भेदभाव और अनदेखी की पोल खोल के लिए गांव के लोगों को जागरूक करने का काम किया जाएगा जो आगामी संसदीय चुनाव में प्रचार करने आए नेताओं से सवाल कर सकें। अगर भावी प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों द्वारा समय रहते हुए प्राधिकरणों पर विकास कार्यों के लिए दबाव नहीं बनाया गया तो चुनावी समर में गांवों का विरोध झेलना होगा। और अगर विकास के मुद्दे पर ग्रामीण क्षेत्र एकजुट हो गया तो परिणाम बदलते देर नहीं लगेगी।
कर्मवीर नागर प्रमुख ने प्राधिकरण के अधिकारियों को भी आगाह करते हुए कहा कि नये ग्रेटर नोएडा के लिए भूमि अधिग्रहण से पूर्व प्रत्येक गांव की डीपीआर बना कर योजनाबद्ध तरीके से विकास कार्य कराए जाना सुनिश्चित किया जाए अन्यथा भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के दौरान गांवों का विरोध झेलने के लिए तैयार रहें। क्योंकि इन गांवों के लोग पूर्व में भूअधिग्रहित गांवों में प्राधिकरणों द्वारा विकास कार्यों की अनदेखी से गांवों को नर्क बनते देख रहे हैं। कर्मवीर नागर प्रमुख ने नये ग्रेटर नोएडा घोषित क्षेत्र के ग्राम वासियों को संदेश देते हुए कहा कि प्राधिकरण पर “पहले गांवों का विकास, बाद में भूमि अधिग्रहण” के फार्मूले के अभी से दबाव बनाएं अन्यथा बाद में कोई सुनने वाला नहीं है।