
तनवीर जाफ़री
पिछले दिनों ख़ासतौर पर मुहर्रम सम्बन्धी आयोजनों के दौरान भारत सहित दुनिया के और भी कई देशों में 86 वर्षीय ईरानी सुप्रीम लीडर व धार्मिक विद्वान आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामनेई के पोस्टर लगाये गये। भारत में इस तरह के पोस्टर प्रायः श्रीनगर से लेकर लखनऊ,उन्नाव,बिजनौर,भोपाल व इंदौर जैसे और भी कई शहरों में लगाये गये। इनमें कई जगह तो पुलिस ने इन पोस्टर्स को उतरवा दिया और कई जगहों पर पुलिस ने पोस्टर लगाने वालों को ही समझा बुझा कर इन्हें सार्वजनिक स्थानों से हटाने हेतु प्रेरित किया। भोपाल व अन्य कई जगहों पर तो आयतुल्लाह ख़ामनेई के चित्र के साथ ही भारतीय तिरंगा भी लगाया गया था। बिजनौर में कुछ युवकों द्वारा आयतुल्लाह का पोस्टर फाड़ने की घटना के अतिरिक्त देश की आम जनता की ओर से इन चित्रों को लेकर कोई आपत्ति नहीं सुनाई दी। यहाँ तक कि अनेक जगहों पर शिया सुन्नी हिन्दू व सिख सभी समुदायों के लोग आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामनेई के पोस्टर हाथों में लिये देखे गये। परन्तु मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष ने ज़रूर आयतुल्लाह का पोस्टर लगाने को देश विरोधी व राष्ट्रविरोधी बता डाला।
दरअसल ईरानी सुप्रीम लीडर व धार्मिक विद्वान आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामनेई पिछले दिनों ईरान, इज़रायल के मध्य हुये 12-दिवसीय युद्ध के दौरान अमेरिकी साम्राज्यवाद का मुंह तोड़ जवाब देने की हिम्मत व क्षमता रखने वाले विश्व के इकलौते नेता के रूप में स्थापित हुये हैं। इस युद्ध में इज़रायल में लगभग 585 लोग मारे गए और 1,326 घायल हुए, जबकि ईरान में क़रीब 230 लोग मारे गए जिनमें अधिकांश आम नागरिक थे। युद्ध के नौवें दिन अमेरिका भी इस्राईल के समर्थन में युद्ध में कूदा और उसने “ऑपरेशन मिडनाइट हैमर” के तहत ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हमले किए। इसके जवाब में ईरान ने भी क़तर में अमेरिका के अल-उदीद सैन्य अड्डे पर 6 मिसाइलें दाग़ी। साथ ही यह धमकी भी दे डाली कि वह होर्मुज़ जलडमरू समुद्री मार्ग को बंद कर देगा। यह संक्षिप्त युद्ध कोई मामूली युद्ध नहीं था बल्कि यह मध्य पूर्व की भू-राजनीति में एक ऐसी महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने निश्चित रूप से क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति संतुलन को प्रभावित कर दिया है । बेशक भारत जैसे कई देशों ने इस युद्ध के दौरान अपना रुख़ तटस्थ बनाए रखा परन्तु भारत में अमेरिकी साम्राज्यवाद व इस्राईली आतंक का विरोध करने वाला एक बड़ा वर्ग भावनात्मक रूप से ईरान व उसके बुलंद हौसलों के साथ जुड़ा हुआ था। ईरान द्वारा इस्राईल व अमेरिका से टकराने की सराहना इसलिये भी की जा रही है क्योंकि मुस्लिम जगत के 56 देशों के असहयोग व अनेक मुस्लिम देशों के अमेरिका व इस्राईल के समर्थन में खड़े होने के बावजूद ईरान ने इस्राईल व अमेरिका की किसी धमकी व हमलों की कोई परवाह किये बिना इनके हर हमलों का जवाब उसी तीव्रता से दिया।
ऐसे में अमेरिका व इस्राईल विरोधी भावना रखने वालों का ईरान के पक्ष में खड़े होना स्वाभाविक है। वैसे भी भारत से ईरान के पुराने और गहरे सम्बन्ध रहे हैं। रहा सवाल आयतुल्लाह ख़ामनेई के चित्र को विदेशी नेता का चित्र बताकर इसका विरोध करना, तो यह तो केवल प्रेरणा हेतु व उनके समर्थन में पोस्टर मात्र लगाये गये थे। वह भी आयतुल्लाह ख़ामनेई के शिया समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरु होने के लिहाज़ से। परन्तु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि इसी देश में अनेक जगहों पर ट्रंप के चित्र लगाकर उनके चुनाव में विजयी होने की प्रार्थना करने हेतु लोग हवन पूजा भी कर चुके हैं। ट्रंप कौन से स्वदेशी नेता हैं ? अबकी बार ट्रंप सरकार के नारे लगवाना,यह राष्ट्रभक्ति की कौन से श्रेणी है ? हमारे ही देश में क्यूबा के महान क्रांतिकारी नेता अर्नेस्तो चे ग्वेरा को देश में एक वर्ग अपना आदर्श मानता है। उनके पोस्टर लगता है व उनके चित्र की टी शर्ट पहनता है। कारण सिर्फ़ एक है कि इसी महान साहसी युवक ने अमरीका के बढ़ते साम्राज्यवाद को 1950-60 के दशक में कड़ी चुनौती दी थी और उस दौरान अमरीका इसे अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझता था। परन्तु आज अमेरिकी साम्राज्यवाद का विरोध करने वालों की नज़र में चे ग्वेरा एक महान क्रांतिकारी है। भारत में लेनिन व कार्ल मार्क्स के चित्र भी उनके समर्थक लगते रहते हैं। कई जगहों पर तो इनकी आदमक़द प्रतिमाएं भी लगी हुई हैं।
दुनिया के अनेक देशों में यहां तक कि ब्रिटेन व अमेरिका जैसे देशों में भी महात्मा गांधी,बाबा साहब भीम राव अंबेडकर,पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे कई प्रतिष्ठित नेताओं के चित्रों का इस्तेमाल होता रहता है बल्कि कई जगह उनकी प्रतिमायें भी लगी हुई हैं। गाँधी के चित्र तो अक्सर आज भी दुनिया के अनेक देशों में शांति व अहिंसा सम्बन्धी प्रदर्शनों या मार्च में शांति व अहिंसा का सन्देश देने की ग़रज़ से प्रयोग किये जाते हैं। उस समय कहीं भी कोई ऐसी संकीर्ण आवाज़ नहीं उठाता कि यह नेता तो भारतीय है इनके चित्र यहाँ क्यों ? परन्तु भारत में कुछ लोगों द्वारा आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामनेई के चित्र का विरोध करना ज़रूर इस बात को दर्शाता है कि जो वर्ग आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामनेई के चित्र से नफ़रत करता है इसका सीधा मतलब है कि वह न केवल अमेरिकी साम्राज्यवाद का समर्थक है बल्कि वह ग़ज़ा में लगभग अस्सी हज़ार बेगुनाहों के हत्यारे इज़राईल व उसके नेता बेंजमिन नितिन याहू के साथ खड़ा है। याद रखना चाहिये कि अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) ने 21 नवंबर 2024 को इस्राईल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के विरुद्ध ग़ज़ा में युद्ध अपराध और मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों के आरोप में गिरफ़्तारी वारंट जारी किया है। नेतन्याहू पर आम नागरिकों को निशाना बनाने , क्षेत्र में भुखमरी फैलाने , हत्या, उत्पीड़न और अमानवीय कृत्य के आरोप हैं जोकि केवल 8 अक्टूबर 2023 से 20 मई 2024 के बीच ग़ज़ा में इजरायली सैन्य कार्रवाइयों के दौरान अंजाम दिये गये हैं। जबकि 20 मई 2024 और इस वारंट के जारी होने के बाद नेतन्याहू की दमनात्मक कार्रवाइयों में और भी इज़ाफ़ा हुआ है। ब्रिटेन, कनाडा, नीदरलैंड, इटली, और अन्य यूरोपीय देश यह कह चुके हैं कि वे आईसीसी द्वारा जरी इस वारंट का पालन करेंगे। अतः 124 आईसीसी हस्ताक्षरकर्ता देशों में यात्रा करना नेतन्याहू के लिए जोखिम भरा हो सकता है। इन देशों में उन्हें गिरफ़्तार किया जा सकता है।
ऐसे अपराधी व्यक्ति के समर्थन में खड़े होना व एक साहसी,निडर व अमेरिका के बजाय केवल ‘सर्वशक्तमान ‘ ईश्वर की सत्ता पर विश्वास रखने वाले फ़क़ीर का विरोध करना चिंताजनक है। आयतुल्लाह खामेनेई को केवल शिया,मुसलमान या ईरानी नेता जैसे संकुचित नज़रिये से नहीं देखा जाना चाहिये बल्कि वे आज अमेरिकी साम्राज्यवाद के साथ साथ इस्राईली आतंकवाद के प्रबल विरोध का प्रतीक बन चुके हैं।