आयुर्वेद चिकित्सा :- प्रकृति का अनुपम उपहार

रघुवीर चारण

कार्तिक माह (पूर्णिमान्त) की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है इस दिन धन के देव कुबेर, मां लक्ष्‍मी, और धन्‍वंतरि का पूजन किया जाता है. इस दिन सोना, चांदी या बर्तन आदि खरीदना शुभ माना जाता है।

महर्षि धनवंतरि को आयुर्वेद का प्रवर्तक और देवताओं के चिकित्सक के रूप में जाना जाता है आयुर्वेद के अवतरण में ब्रह्मा जी से प्राप्त ज्ञान को धनवंतरि जी ने आगे प्रसार किया था महर्षि धनवंतरि का आयुर्वेद के प्रति अतुलनीय योगदान के लिए धनवंतरि जयंती (धनतेरस) को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाता हैं।

आयुष मंत्रालय भारत सरकार द्वारा इसकी शुरुआत 28 अक्टूबर 2016 से की गई इस बार हम सातवां आयुर्वेद दिवस मनाने जा रहे हैं राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस – 2022 की थीम “हर दिन हर घर आयुर्वेद ” रखी हैं ।

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति नहीं अपने आप में एक सम्पूर्ण विज्ञान है इस प्रकार, ’आयुर्वेद‘ शब्द का अर्थ है-’जीवन का विज्ञान‘। साधारण भाषा में कहें तो जीवन को ठीक प्रकार से जीने का विज्ञान ही आयुर्वेद है, क्योंकि यह विज्ञान केवल रोगों की चिकित्सा या रोगों का ही ज्ञान प्रदान नहीं करता, अपितु जीवन जीने के लिए सभी प्रकार के आवश्यक ज्ञान की प्राप्ति कराता है। आयुर्वेद के दो मुख्य प्रयोजन (उदेश्य) है “प्रयोजनं चास्य स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकार प्रशमनं च ।” अर्थात् आयुर्वेद का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी व्यक्ति के रोग को दूर करना है। हमारी दिनचर्या , ऋतुचर्या, आहार-विहार अगर समुचित हो तो हम तमाम रोगों से दूर रहकर अपने जीवन को उज्जवल और दीर्घायु बना सकते हैं। आयुर्वेद में आहार ही मेडिसिन है यदि हम भोजन का सेवन विधि पूर्वक करेंगे तो कभी भी अस्वस्थ नहीं होंगे। आयुर्वेद चिकित्सा का प्रकृति पर आधारित होना इसकी सबसे बड़ी महता है ।

आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीन तम चिकित्सा पद्धति है इसका इतिहास 5000 वर्ष पुराना है जब तक आधुनिक चिकित्सा विज्ञान (एलोपैथी) का उद्भव नहीं हुआ तब तक हमारे शल्यज्ञ महर्षि सुश्रुत् ने प्लास्टिक सर्जरी व अन्य शल्य उपकरणों के बारे में खोज कर ली थी आयुर्वेद के उत्थान में महर्षि चरक, सुश्रुत, वाग्भट, धन्वंतरि का अहम् योगदान रहा हमारे आचार्यों ने आयुर्वेद को आठ विभागों में बाँटा है इसमें पंचकर्म पद्धति द्वारा चिकित्सा के बहुत अच्छे परिणाम है ।

आज 21 वी सदी में हमारे दिमाग में यह प्रश्न जरूर आता है कि हजारों वर्ष पुरानी हमारी पारंपरिक चिकित्सा विज्ञान इतना विकसित नहीं हो पायी जबकि एलोपैथी का विकास बहुत तेजी से हुआ इसके पीछे का मुख्य कारण है आज़ादी से पूर्व ब्रिटिश साम्राज्य में आयुर्वेद की उपेक्षा की गई आयुर्वेद ग्रंथो को नष्ट कर दिया गया आयुर्वेद उपचार को अवैज्ञानिक और अंधविश्वासी बताया गया था।

आज़ादी के बाद भी आयुर्वेद लगातार उपेक्षा का शिकार हो रहा है कुछ राज्यों में आयुर्वेद विभाग की हालत अभी भी दयनीय है जहाँ आयुर्वेदिक अस्पतालों में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं है ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षित चिकित्सकों की कमी आयुर्वेद के उत्थान में बाधक है ।

प्रत्येक चिकित्सा पद्धति के अपने मूल सिद्धांत होते हैं उसी प्रकार आयुर्वेद चिकित्सा के अपने सिद्धांत है इसमें निदान परिवर्जन अर्थात रोग के कारण का त्याग या शमन किया जाता है जिससे व्याधि को समूल नष्ट किया जाता हैं इसकी तुलना हमें आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से नहीं करनी चाहिए || आधुनिक चिकित्सा-पद्धति में क्योर होने वाले रोगों की संख्या बहुत कम है, जैसे क्षय रोग, कैंसर आदि। आयुर्वेद में डेंगु, हेपेटाईटिस, कोलाइटिस, पेक्रियेटाइटिस , ब्रोंकाइटिस अर्थराइटिस , सोरियासिस व सिरदर्द से लेकर कैंसर तक हम सैकड़ों रोगों को पूर्णतः निर्मूल (क्योर) कर सकते हैं। इसमें आयुर्वेद की भूमिका अधिक श्रेष्ठ है।

कोरोना महामारी के दोरान् देश में इम्युनिटी बूस्टर (रोग प्रतिरोधक क्षमता) में आयुर्वेद का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा इस दोरान आयुर्वेद उत्पादों की माँग अन्य देशों में काफी बढ़ गई एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में आयुर्वेदिक दवाइयों का सालाना कारोबार 10 हजार करोड़ रुपये का है, जबकि एक हजार करोड़ रुपये की आयुर्वेदिक दवाइयां निर्यात की जाती हैं. यानी दूसरे देशों को भेजी जाती हैं. अगर सभी आयुर्वेदिक उत्पादों की बात करें तो 2018 में इसका सालाना कोराबार 30 हजार करोड़ रुपये था, जो 2024 तक 71 हजार करोड़ रुपये का हो सकता है। पिछले एक साल में इसमें काफी तेजी आई है, जब से कोरोना वायरस आया है. आपने देखा होगा कि कोरोना वायरस से बचने के लिए लोग काढ़ा पी रहे हैं, हल्दी वाला दूध पी रहे हैं, गिलोय का सेवन कर रहे हैं और अदरक का भी अधिक सेवन कर रहे हैं असल में ये सभी इलाज की पद्धतियां आयुर्वेद में हैं आयुर्वेद में इन्हीं जड़ी बूटियों से लोगों को सही किया जाता है और भी इसके अलावा आयुर्वेद में दवाइयां हैं।

योग की तरह आयुर्वेद को भी विश्व पटल पर पहुंचाने के लिए पहले हमें इसे अपनाना होगा और इसको मुख्यधारा में लाना चाहिए ना की वैकल्पिक चिकित्सा के रुप में प्रयोग करना चाहिए क्योंकि यह हमारे देश की धरोहर है सरकार को आयुर्वेद के अनुसंधान में बजट बढ़ाना चाहिए साथ ही आयुर्वेद के नाम फर्ज़ी दवाखानों व अंधविश्वासी बाबाओं पर नियंत्रण आवश्यक हैं जिनके द्वारा आयुर्वेद चिकित्सा को बदनाम किया जा रहा है हम भारतीयों पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव हमेशा हावी रहा है वो भले चिकित्सा विज्ञान, भाषा, या जीवनशैली सारे क्षेत्रों में असर पड़ा है अब 21वीं सदी का भारत आत्मनिर्भरता की और बढ़ रहा हैं आने वाला समय आयुर्वेद का है इसलिए हमें अपनी चिकित्सा पद्धति में भी आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है आखिरकार इस आयुर्वेद दिवस पर प्रण लें – आयुर्वेद अपनाएँ स्वस्थ जीवन शैली पाएँ ।।