आजम खान के जेल से बाहर आने से उत्तरप्रदेश की सियासत में जबरदस्त उबाल

Azam Khan's release from jail has caused a stir in Uttar Pradesh politics

अशोक भाटिया

उत्तरप्रदेश के पूर्व मंत्री और समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान मंगलवार को सीतापुर जेल से रिहा हो रहे थे पर आजम खान की रिहाई आठ हजार रुपए के लिए अटक गई है। आजम खान मंगलवार यानी 23 सितम्बर की सुबह सात बजे सीतापुर जेल से रिहा होने वाले थे लेकिन चालान के आठ हजार रुपए जमा नहीं होने के चलते उनकी रिहाई अटक गई। अब बताया जा रहा है कि सुबह 10 बजे कोर्ट खुलने के बाद चालान जमा होगा और तब ही आजम खान जेल से बाहर आ सकेंगे।

मालूम हो कि बीते वर्ष शत्रु संपत्ति को खुर्द-बुर्द करने के आरोपों से घिरे सपा नेता आजम और अब्दुल्ला आजम को रामपुर पुलिस ने क्लीन चिट दे दी थी। इस मामले में कुछ दिन पूर्व आजम खां के खिलाफ आईपीसी की धारा 467, 471 और 201 में एडिशल चार्जशीट दाखिल करते हुए स्पष्ट किया था संबंधित केस में सपा नेता आजम की संलिप्तता पाई गई है। तीन दिन पहले कोर्ट ने दोनों पक्षों की आपत्तियों को निस्तारित करते हुए सपा नेता आजम खां पर एडिशनल चार्जशीट में बढ़ाई गईं आईपीसी की धारा 467, 471 और 201 का संज्ञान ले लिया था। इस मामले में आजम खां को एक अक्तूबर को व्यक्तिगत रूप से तलब किया गया है।

बता दें की आजम खान के खिलाफ दर्ज 72 मुकदमों में रिहाई के आदेश सीतापुर जेल को मिल चुके हैं। हाल ही में एमपी-एमएलए सेशन कोर्ट ने आजम खान के 19 मुकदमों में रिहाई परवाने जारी किए थे। कल से ही उनके समर्थक आजम खान के बाहर आने को लेकर उत्साहित है। आजम खान 23 महीने बाद जेल से बाहर आ रहे हैं। उनके स्वागत के लिए मंगलवार की सुबह से ही सीतापुर जेल के बाहर उनके समर्थक जुटने लगे थे। आजम खान के बेटे अदीब आजम भी वहां पहुंचे हैं। समर्थकों को जानकारी थी की आजम खान सुबह सात बजे के करीब जेल से बाहर आएंगे पर अब दिन नहीं समय बदल सकता है ।

आजम खान मंगलवार को सीतापुर जेल से रिहा तो हो रहे हैं लेकिन, उनकी मुश्किलें अभी कम नहीं होंगी। रिकार्ड रूम में अभिलेखों में हेराफेरी और साक्ष्य मिटाने के आरोपों में अदालत ने आजम को व्यक्तिगत रूप से एक अक्तूबर को तलब किया है।

गौरतलब है कि आजम खान का नाम सपा में उत्तरप्रदेश के बड़े चेहरे के तौर पर जाना जाता है। रामपुर में प्रत्याशी का ऐलान आजम के कार्यालय से होता रहा है, जबकि लखनऊ में केवल औपचारिक मंजूरी मिलती थी। जेल में रहते हुए भी आजम समय-समय पर सियासत में हलचल लाते रहे। उनके विरोधी न केवल सक्रिय हुए बल्कि आर्थिक और राजनीतिक रूप से मजबूत भी हुए, बावजूद इसके आजम की लोकप्रियता और कद में कोई कमी नहीं आई।

आजम खान की रिहाई से पहले ही अटकलें शुरू हो गई हैं कि वह सपा छोड़ सकते हैं और बसपा या आजाद समाज पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं। जेल में रहते हुए उन्होंने चंद्रशेखर से मुलाकात की है। हालांकि, उनके लंबे राजनीतिक कॅरियर और पहले के ऐलानों को देखें तो यह संभावना कम लगती है, क्योंकि आजम कई बार मंच से यह स्पष्ट कर चुके हैं कि वे सपा के संस्थापक सदस्य हैं और पार्टी नहीं छोड़ेंगे।

2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में आजम खान ने अपनी राजनीतिक ताकत का बेहतरीन प्रदर्शन किया। मुरादाबाद में 2024 के चुनाव में उन्होंने एसटी हसन का टिकट कटवाकर अपनी पसंद रुचि वीरा को टिकट दिलाया था। रामपुर में टिकट फाइनल होने से पहले भी आजम खान का रुख निर्णायक रहा। यह दर्शाता है कि आजम की राजनीतिक पकड़ कितनी मजबूत है और आने वाले चुनावों में उनका प्रभाव कितना महत्वपूर्ण होगा।

उत्तरप्रदेश में 2027 में विधानसभा चुनाव होंगे और 2026 में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव। राजनीतिक दल इस समय आजम खान के अगले कदम और रणनीति को नफा-नुकसान के नजरिए से देख रहे हैं। सपा के लिए यह महत्वपूर्ण है कि आजम के सहारे मुस्लिम मतदाताओं को वापस पार्टी में लाया जा सके और भाजपा के लिए यह देखना महत्वपूर्ण है कि आजम की तकरीरों से अपने वोट बैंक का कितना ध्रुवीकरण हो सकता है।

बतादे कि आजम खान, जो रामपुर से 10 बार विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे हैं, का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। 1980 के दशक में उन्होंने रामपुर के नवाब परिवार के दबदबे को चुनौती देकर मजदूरों और रिक्शा चालकों के संगठन बनाए। सपा के साथ उनका गठजोड़ लंबा चला, लेकिन 2019 से शुरू हुए मुकदमों ने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया। भूमि हड़पने, नफरत फैलाने और धोखाधड़ी जैसे 100 से ज्यादा केसों में वे जेल पहुंचे। जेल में रहते हुए उनकी सियासी साख को भी बट्टा लगा। रामपुर सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी ने अपना परचम लहराया। 2024 लोकसभा चुनाव में भी वे जेल से ही अपने करीबी को टिकट दिलवाना चाहते थे, लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को टिकट दिया। कहा जाता है कि इस बात से आजम खान नाराज हैं। जेल से बाहर आने के बाद रामपुर में उनका स्वागत भव्य होगा, क्योंकि मुस्लिम बहुल इलाके में उनका प्रभाव अभी भी मजबूत है। लेकिन लंबी कैद ने उनकी सियासी पूंजी को कमजोर किया है।

अब सवाल उठ रहा है कि रिहाई के बाद क्या वे अखिलेश को मजबूत करेंगे या बगावत करेंगे? सपा ने आजम को समर्थन दिया, लेकिन कई नेताओं का मानना है कि अखिलेश ने उन्हें ‘साइडलाइन’ किया। अगर आजम सपा में रहते हैं, तो वे मुस्लिम-यादव गठजोड़ को मजबूत कर सकते हैं। लेकिन अगर बगावत हुई, तो रामपुर-मुरादाबाद में सपा का वोटबैंक बंट सकता है।

सियासी गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चा आजम के संभावित नए गठबंधनों की हो रही है। भिम आर्मी प्रमुख और आजाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर आजाद के साथ हाथ मिलाने की अटकलें तेज हैं। 2024 में आजाद ने नागिना लोकसभा सीट पर दलित-मुस्लिम फॉर्मूले से जीत हासिल की। नवंबर 2024 में आजाद ने सीतापुर जेल में आजम से मुलाकात की, और उनके परिवार से भी बातचीत की। आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्षने कहा, “आजम का परिवार मुस्लिम समुदाय में प्रभावशाली है। दलित-मुस्लिम भाईचारा मजबूत होगा, जो 2027 चुनावों में गेमचेंजर साबित हो सकता है।”

दूसरी ओर, ए आइ एम् आइ एम् प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी आजम के पुराने समर्थक रहे हैं। अगर आजम ए आइ एम् आइ एम् से जुड़ते हैं, तो यह भाजपा और सपा दोनों के लिए चुनौती बनेगा। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आजम की रिहाई से मुस्लिम राजनीति में नया ध्रुवीकरण हो सकता है। आजाद समाज पार्टी या ए आइ एम् आइ एम् से गठजोड़ सपा को कमजोर करेगा, लेकिन भाजपा के लिए वोट बंटवारा फायदेमंद होगा।” परन्तु अगर वे सपा में रहकर अखिलेश को सपोर्ट करते हैं, तो मुस्लिम वोटबैंक एकजुट रहेगा। लेकिन नया गठबंधन बनता है, तो दलित-मुस्लिम गठजोड़ इंडिया ब्लॉक को चुनौती देगा। भाजपा इसे अपने फायदे में देख रही है, क्योंकि विपक्षी वोट बंटेंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि आजम का फैसला उनके स्वास्थ्य और परिवार की स्थिति पर निर्भर करेगा। तजीन फातमा ने हाल ही में कहा कि पार्टी से कोई समर्थन नहीं मिला, जो बेरुखी का संकेत है। कुल मिलाकर, आजम खान की सियासत ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली कहानी बन चुकी है, लेकिन उनकी वापसी रोहिलखंड क्षेत्र को हिला सकती है। आने वाले दिनों में उनकी चालाकी पर सबकी नजरें टिकी हैं।

18 सितंबर को हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद से ही आजम की रिहाई की उम्मीदें परवान चढ़ने लगीं। साथ ही आजम खां के नए सियासी ठौर की चर्चाएं भी शुरू हो गईं। उनका बसपा में जाने की चर्चा है । यह चर्चा अनायास नहीं है। इसके पीछे राजनीतिक जानकार बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती और तजीन फात्मा की मुलाकात बताते हैं। चर्चा है कि पिछले दिनों दिल्ली में दोनों की मुलाकात हुई थी। वार्ता के केंद्र बिंदु में आजम खां ही रहे। अब इस मुलाकात की चर्चाएं सियासी गलियारों से लेकर सोशल मीडिया तक में होने लगी हैं। जानकार इस सियासी मुलाकात को आजम खां-तजीन फात्मा के पिछले बयानों से जोड़कर देख रहे हैं। जो बताते हैं कि दोनों का मिलना इत्तेफाक नहीं है।

इससे पहले सीतापुर जेल में आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख एवं सांसद चंद्रशेखर आजाद ने आजम खां से मुलाकात कर दलित-मुस्लिम गठजोड़ की सियासत को हवा दी थी। राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि आजम का अगला कदम उनके स्वास्थ्य और परिवार की राजनीतिक रणनीति पर निर्भर करेगा। वैसे आजम खां के नजदीकी यह दावा भी करते हैं कि तजीन फात्मा पिछले कई माह से दिल्ली नहीं गई हैं। इस वजह से उनकी मायावती से मुलाकात की बात में कोई दम नहीं है।

अब जब आजम खां के बसपा में शामिल होने की चर्चाएं लखनऊ से लेकर दिल्ली तक घूम रही हैं तब इस संबंध में मीडिया ने जब अखिलेश यादव से सवाल किया तो वह हंस कर टाल गए। सपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि आजम खां के लिए सपा ही सबसे मुफीद है। उनके लिए दूसरे दलों में अपने अंदाज में काम कर पाना मुश्किल होगा। इसलिए कहीं नहीं जाएंगे, सपा में ही रहेंगे। इस बारे में पूर्व सांसद डॉ। एसटी हसन का कहना है कि आजम खां सपा के संस्थापक सदस्य रहे हैं। उनके किसी भी पार्टी में जाने की चर्चाएं पूरी तरह से निराधार हैं। उनके किसी भी पारिवारिक सदस्य की किसी भी नेता से मुलाकात की तस्वीर नहीं आई है। आजम खां सपा में हैं और सपा में ही रहेंगे। अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। न तो बसपा प्रमुख की ओर से और न ही तजीन फात्मा की ओर से। सिर्फ चर्चाओं के आधार पर अटकलें लगाई जा रही है।