बारामूला : इंजीनियर राशिद का जीवन-संघर्ष

Baramulla: Engineer Rashid's life struggle

डॉ. सुधीर सक्सेना

वह साँसद हैं: काश्मीर घाटी के सिंहद्वार पर स्थित बारामूला से लोकसभा के लिये निर्वाचित सांसद उन्होंने जेल में रहते हुये पर्चा दाखिल किया। चुनाव प्रचार के लिये वह पैरोल या जमानत पर रिहा भी नहीं हुये। चार जून को मतों की गणना में वह अव्वल आये। वह दो लाख से अधिक वोटों से जीते। मतों के मान से यह जीत बड़ी थी, किंतु उससे भी ज्यादा बड़ी और मानीखेज इस नाते थी कि उन्होंने जम्मू-काश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और सज्जाद लोन जैसे दिग्गजों को हराया था। वह जीते, लेकिन लोकसभा की सदस्यता की शपथ बहुत दिनों के बाद ले सके।

पूरा नाम शेख अब्दुल राशिद। मगर जाने जाते हैं इंजीनियर राशिद के नाम से। जन्म की तारीख 17 अगस्त, सन 1967। पैदाइश लंगाट नामक छोटे से कस्बे में, जो उत्तर काश्मीर के कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण-रेखा के समीप स्थित है। वह सत्तावन साल के होने को है, किंतु दिखते कहीं अधिक के है। इसकी वजह शायद उनका जीवन-संघर्ष है। उनकी कहानी लोमहर्षक है। वह मेहनत-मशक्कत, जद्दोजहद, अपहरण, गिरफ्तारी, साहसिक- उपक्रमों, चुनावी कामयाबी और बेढब घटनाओं से बिंधी हुई है।
आइये, इंजीनियर राशिद को जानने से पेश्तर हम थोड़ा बारामूला को जान लें, जिसे प्राक-काल के वारा-मूल से जोड़ा जाता है। सामरिक अवस्थिति के कारण यह महत्वपूर्ण वाणिज्यिक एवं निर्माण केंद्र रहा। हिन्दु और बौद्ध काल में यह खूब फला-फूला।

नौंवी और दसवीं शताब्दी शती में राजा ललितादित्य मुक्तपीठ रानी सुगंधा और क्षेमगुप्त के काल में यहाँ अनेक मंदिर-मठ बने। समय के साथ यहाँ इस्लाम का आगमन हुआ। इस्लाम ने यहाँ आहिस्ता-आहिस्ता पांव पसारे। सन् 1421 में सैयद जांबाज वली सरहद पार से शिष्यों के साथ आये और इसे अपने मिशन का मरकज बनाया। उनकी मजार यहीं है, जहां दूर-दूर से अनुयायी आते हैं। मुगलों को यह स्थान बड़ा प्रिय था और वह सम्राटों का पड़ाव बनकर उभरा। सन् 1586 में यहाँ सम्राट अकबर आये और सन् 1620 में सम्राट जहांगीर। सन् 1620 में ही यहाँ सिखों के छठवें गुरु श्री हरगोबिंद सिंह भी आये। सम्राट अकबर के आने पर इसे दुल्हन की तरह सजाने का जिक्र इतिहास में है। कालांतर में यह जम्मू-कश्मीर की डोगरा रियासत का हिस्सा बना। विभाजन के बाद कबायली हमले में इसे बड़ी क्षति पहुंची। 26 अक्टूबर, सन् 47 को राजा हरि सिंह के विलय-पत्र पर हस्ताक्षर करते ही यह भारत गणराज्य का अंग हो गया। इसके पहले तक रावलपिंडी-मरी- मुजफ्फराबाद – बारामूला मार्ग काफिलों और कारोबारियों के लिए खुला हुआ था। तदंतर यह बंद हो गया। पिछले दशकों में यहाँ तेजी से निर्माण कार्य हुए, पक्की सड़के-पुल बने और अब तो यह रेलमार्ग से श्रीनगर, अनंतनाग और काजीगुंड से जुड़ गया है। जल्द ही यह जम्मू और बनिहाल से भी जुड़ जायेगा। बारामूला की सामरिक महत्ता का आभास इससे हो सकता है कि यह पाकिस्तान में रावलपिंडी और पाक अधिकृत काश्मीर में मुजफ्फराबाद से सटा हुआ है। श्रीनगर से इसकी दूरी फकत 55 किमी है। इतिहास के ग्रंथों को खंगाले तो चीनी यात्री ह्वेन्त्सांग यहां आया था। ब्रिटिश इतिहासकार मूर काफ्ट का भी यहाँ आगमन हुआ।

बारामूला, बारामूला जिले का प्रशासनिक केंद्र है; झेलम नदी के दोनों तटों पर बसा हुआ। पाँच पुल उन तटों को जोड़ते हैं। इनमें एक झूलता ब्रिज भी है। जल्द इन पुलों की तादाद बढ़ जायेगी। बहरहाल, शेरे खास यानि पुराना बारामूला नदी के उत्तरी किनारे पर बसा है और नया यानि ग्रेटर बारामूला दक्षिणी तट पर। रेलवे स्टेशन ग्रेटर बारामूला के पूर्वी छोर पर है। बारामूला जिला यूं तो करीब 3000 वर्ग किमी में फैला हुआ है, अलबत्ता बारामूला नगर की आबादी एक लाख से कम है। इनमें 85 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या मुस्लिमों की है और करीब नौ फीसद सिख है। हिन्दु लगभग 5.5 प्रतिशत है। बौद्धों और ईसाइयों की आबादी नगण्य है, किंतु सेंट जोसेफ कैथलिक चर्च पुराना हैं और सेंट जोसेफ स्कूल प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थान है। नगर में इधर नागरिक सुविधाओं का खूब विस्तार हुआ है। बारामूला के मिजाज का अंदाजा इससे लगाइये कि नगर में 80 फीसद से अधिक लोग साक्षर है।

तो उत्तर कश्मीर के इसी बारामूला लोकसभा क्षेत्र से इंजीनियर राशिद निर्वाचित सांसद हैं। उनका जीवन कठिन रहा है। यह किसी रोचक पटकथा की मानिंद है। राशिद ने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया, किन्तु उससे पहले उन्होंने इंडियन आर्मी के लिये पोर्टर के तौर पर काम किया। उनका काम था संवेदनशील कुपवाड़ा में सेना के निरापद आवागमन के लिए बारूदी सुरंगों को साफ करना। बहरहाल, राशिद ने डिप्लोमा हासिल किया और सड़क एवं इमारत महकमे में जूनियर इंजीनियर हो गये, मगर अपशकुन देखिये कि सोपोर में आतंकियों ने उन्हें इस बिना पर अगवा कर लिया कि उन्होंने उन्हें निर्माण सामग्री देने से इंकार किया। किसी विधि उनसे छूटे तो अगले साल सेना ने उन्हें आतंकवादियों की मदद के आरोप में बंदी बना लिया। पब्लिक सेफ्टी ऐक्ट से बचने के वास्ते बकौल राशिद उन्हें तीन मोबाइल फोन और 35 हजार रूपयों की रकम देनी पड़ी। उनके पिता ने इसके लिए अपनी जमीन बेची। राशिद जेल से तो छूटे, लेकिन उनकी सरकारी नौकरी जाती रही। गाड़ी और हिफाजत के फेर में उन्होंने सियासत का दामन थामा। उन्होंने जनता के मुद्दे उठाये। सघन प्रचार किया। फलत: सन् 2008 में वह लंगेट से एमएलए चुन लिये गये। असेंबली में वह खूब सक्रिय रहे। उनका पहरावा था खान-सूट या काश्मीरी फेरन। पांवों में नायलान रबड़ की चप्पले अथवा प्लास्टिक शूज। उन्होंने यूनाइटेड जेहाद काउंसिल को वार्ता की मेज पर लाने की पहल की और अफजल गुरु के लिए क्षमादान की कोशिश की। सन् 2010 में वह सुर्खियों में थे, जब उन्होंने करीब 3000 काश्मीरी युवकों को पत्थरबाजी से तौबा की शपथ दिलायी।

बारामूला की फिजा में इंजीनियर राशिद के बारे में तरह तरह के किस्से तैरते रहते हैं। ये किस्से इनके सियासी ढब और लोगों में उनकी पॉपुलरिटी को दर्शाते हैं। बताते हैं कि एकबारगी अर्द्धरात्रि में एक इश्क का मारा बदनसीब युवक उनके घर आया और कुंडी खटखटायी, राशिद ने दरवाजा खोला तो युवक ने अपनी आपबीती सुनाई कि उसकी मेहबूबा, जो भिन्न समुदाय की है, के घरवाले उसकी उससे शादी को रजामंद नहीं है। लिहाजा वह खुदकुशी करने जा रहा है। राशिद उसी वक्त युवक को गाड़ी में बिठाकर लड़की के घर पहुंचे और उन्हें शादी के लिये रजामंद करने में कामयाब हुये।

इंजीनियर राशिद सन् 2014 में असेंबली का चुनाव फिर से जीते। 8 अक्टूबर, 15 को उन पर सदन में बीजेपी- विधायक ने हमला किया, क्योंकि राशिद ने कथित तौर पर दावत में बीफ परोसा था। बहरहाल, वह मुद्दों को लगातार उठाते रहे हैं। उन्होंने अवामी इत्तेहाद पार्टी की स्थापना की। सन् 2019 में उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा, किन्तु असफल रहे। नेशनल कांफ्रेंस को 1.33 लाख वोटों के मुकाबले उन्हें 1.2 लाख मत मिले। इसी साल दो घटनाएं और घटी। केंद्र ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म किया। कुछ ही दिनों के भीतर अशांति और अस्थिरता फैलाने के आरोप में राशिद को यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। वह दिन और आज का दिन राशिद सलाखों के पीछे हैं।

इंजीनियर राशिद का उमर अब्दुल्ला और सज्जाद लोन को एक संग मात देना बड़ी बात है। उन्हें 4.72 लाख वोट मिले। उन्हें पहाड़ी और गुज्जर समुदायों ने भरपूर समर्थन दिया। शियाओं ने भी उन्हें खूब वोट दिये। इसमें शक नहीं कि राशिद मुखर नेता हैं। उन्होंने ऊधमपुर में लिंचिंग का मुद्दा भी उठाया था। दिल्ली में प्रेसक्लब में उनके चेहरे पर स्याही भी फेंकी गयी। बेटे अबरार के मुताबिक राशिद काश्मीर की समस्याओं के सम्मानजनक समाधान के हिमायती है। द हिन्दू से बातचीत में अबरार ने कहा कि यदि अवाम ने उन्हें उनकी आवाज संसद में उठाने को चुना है, तो उन्हें इसकी इजाजत मिलनी चाहिये।

कहना कठिन है कि ऐसा होगा या नहीं। अलबत्ता इंजीनियर राशिद को 5 जुलाई को बंद कमरे में संसद की सदस्यता की शपथ दिलायी गयी है। जहाँ तक सियासत की बात है तो कोई नजूमी भी दावे से पेशीनगाई नहीं कर सकता।