शांति, संस्कृति एवं शिक्षा का महापर्व है बसंत पंचमी

Basant Panchami is a great festival of peace, culture and education

ललित गर्ग

बसंत पंचमी या श्री पंचमी हिन्दुओं का प्रमुख सांस्कृतिक एवं धार्मिक त्यौहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती, कामदेव और विष्णु की पूजा की जाती है। यह प्रकृति के सौंदर्य, नई शुरुआत, और सकारात्मकता का उत्सव भी है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा से मन में शांति और ज्ञान का संचार होता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में शिक्षा, कला, सौन्दर्य और प्रकृति का सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह ऋतुओं में बांटा जाता था उनमें बसंत लोगों का सबसे मोहक, मनोरम एवं मनचाहा मौसम था। बसंत पंचमी मन की, जीवन की, संस्कृति की, साहित्य की, संगीत की, प्रकृति की असीम कामनाओं का अनूठा एवं सौन्दर्यमय त्योहार है, जो हर वर्ष माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है। दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है। माता सरस्वती को ज्ञान-विज्ञान, सूर-संगीत, कला, सौन्दर्य और बुद्धि की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि देवी सरस्वती ने ही जीवों को वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि दी थी। इसलिए वसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा की जाती है, मां सरस्वती की पूजा करने से मां लक्ष्मी और देवी काली भी प्रसन्न होती हैं। बसंत पंचमी के 40 दिन बाद होली का पर्व मनाया जाता है, इसलिए बसंत पंचमी से होली के त्योहार की शुरुआत मानी जाती है।

मान्यता है कि बसंत पंचमी को देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। इसी दिन वह हाथों में पुस्तक, वीणा और माला लिए श्वेत कमल पर विराजमान होकर प्रकट हुई थीं। कहा जाता है कि देवी सरस्वती की पूजा सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने की थी। मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। देवी भागवत में उल्लेख है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द, स्वर व शक्ति की प्राप्ति जीव-जगत को हुई थी। इसीलिये मां सरस्वती को प्रकृति की देवी की उपाधि भी प्राप्त है। पद्मपुराण में मां सरस्वती का रूप प्रेरणादायी है। धर्मशास्त्रों के अनुसार मां सरस्वती का वाहन सफेद हंस है। यही कारण है कि देवी सरस्वती को हंसवाहिनी भी कहा जाता है। देवी सरस्वती विद्या की देवी हैं। देवी का वाहन हंस यही संदेश देता है कि मां सरस्वती की कृपा उसे ही प्राप्त होती है जो हंस के समान विवेक धारण करने वाला होता है। केवल हंस में ही ऐसा विवेक होता है कि वह दूध का दूध और पानी का पानी कर सकता है। हंस दूध ग्रहण कर लेता है और पानी छोड़ देता है। इसी तरह हमें भी बुरी सोच को छोड़कर अच्छाई को ग्रहण करना चाहिए।

सफेद रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है। यह रंग शिक्षा देता है कि अच्छी विद्या और अच्छे संस्कारों के लिए आवश्यक है कि आपका मन शांत और पवित्र हो। सभी को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। मेहनत के साथ ही माता सरस्वती की कृपा भी उतनी आवश्यक है। मां सरस्वती हमेशा सफेद वस्त्रों में होती हैं। इसके दो संकेत हैं पहला यह कि हमारा ज्ञान निर्मल हो, विकृत न हो, अहंकारमुक्त हो। जो भी ज्ञान अर्जित करें वह सकारात्मक हो। दूसरा संकेत हमारे चरित्र को लेकर है। कोई दुर्गुण हमारे चरित्र में न हो। मां ने शुभ्रवस्त्र धारण किए हैं, ये शुभ्रवस्त्र हमें प्रेरणा देते हैं कि हमें अपने भीतर सत्य, अहिंसा, क्षमा, सहनशीलता, करुणा, प्रेम व परोपकार आदि सद्गुणों को बढ़ाना चाहिए और क्रोध, मोह, लोभ, मद, अहंकार आदि का परित्याग करना चाहिए। मां सरस्वती को पीले रंग प्रिय है, मान्यतानुसार पीला रंग सुख-समृद्धि और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। पीला रंग बसंत पंचमी का मुख्य प्रतीक है। पीले रंग को सरस्वती मां का प्रिय रंग भी कहा जाता है। पीले फूलों को मां पर अर्पित किया जाता है, पीले रंग की साज-सज्जा की जाती है और पीले रंग के चावल माता को भोग में चढ़ाने शुभ माने जाते हैं।

बसंत पंचमी एक उत्सव ही नहीं बल्कि एक प्रेरणा भी है। बसंत पंचमी सिखाती है कि पुराने के अंत के साथ ही नए का सृजन भी होता है। असल में अंत और शुरुआत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। बसंत ऋतु के आने से पहले पतझड़ का उदास मौसम होता है, लेकिन बसंत पंचमी के साथ ही बसंत ऋतु भी दस्तक देती है और बसंत ऋतु में पतझड़ से खाली हुए पेड़ पौधों में फिर से एक चमक, एक सुंदरता उतर आती है। जीवन का दस्तूर भी कुछ ऐसा ही है। पतझड़ की तरह खालीपन आता है लेकिन सब्र का दामन ना छोड़ें तो बसंत की बहार भी आती है। पूरे मन एवं आस्था से सरस्वती की पूजा एवं साधना करें ताकि आपकी वाणी मधुर हो, स्मरण शक्ति तीव्र हो, सौभाग्य की प्राप्ति हो, विद्या की प्राप्ति हो। सरस्वती पूजा से पति-पत्नी और बंधुजनों का कभी वियोग नहीं होता है तथा दीर्घायु एवं निरोगता प्राप्त होती है। इस दिन भक्तिपूर्वक ब्राह्मण के द्वारा स्वस्ति वाचन कराकर गंध, अक्षत, श्वेत पुष्प माला, श्वेत वस्त्रादि उपचारों से वीणा, अक्षमाला, कमण्डल, तथा पुस्तक धारण की हुई सभी अलंकारों से अलंकृत सरस्वती का पूजन करें।

बसंत पंचमी के साथ, बसंत ऋतु की शुरुआत होती है, जो फसलों की कटाई के लिए एक अच्छा समय है। फाग के राग की शुरुआत भी इसी दिन होती है। फाल्गुन का अर्थ ही है मधुमास। वो ऋतु जिसमें सर्वत्र माधुर्य ही माधुर्य हो, सौन्दर्य ही सौन्दर्य हो। वृ़क्ष नये पत्तों से सज गये हो, कलियां चटक रही हों, कोयल गा रही हो, हवाएं बह रही हो। ऐसे मधुर मौसम में सरस्वती पूजन वसंत की शुचिता एवं सिद्धि का प्रतीक है, एक ऊर्जा है, एक शक्ति है, एक गति है। लोकमन के आह्लाद से मुखरित वसंत ही महक और फाल्गुनी बहक के स्वर इसका लालित्य है, यही इस त्योहार की परम्परा का आह्वान है, यही इसका अलौकिक सौन्दर्य है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया था।

सृष्टि की रचना करके जब उन्होंने संसार में देखा तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जनता एवं नीरसता ही दिखाई दी। वातावरण बिल्कुल शांत एवं नीरस लगा जैसे किसी की वाणी ही न हो। यह सब देखने के बाद ब्रह्माजी संतुष्ट नहीं थे तब ब्रह्माजी ने भगवान विष्णुजी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जल छिड़कने के बाद एक देवी प्रकट हुई। देवी के हाथ में वीणा थी। भगवान ब्रह्मा ने उनसे कुछ बजाने का अनुरोध किया ताकि पृथ्वी पर सब कुछ शांत न हो। परिणामस्वरूप, देवी ने कुछ संगीत बजाना शुरू कर दिया। तभी से उस देवी को वाणी, वीणा और ज्ञान की देवी सरस्वती के नाम से जाना जाने लगा।

उन्हें वीणावादिनी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी सरस्वती ने वाणी, बुद्धि, बल और तेज प्रदान किया। इसीलिये बसंत पंचमी का सांस्कृतिक और धार्मिक दोनों ही महत्व है। यह ज्ञान, संगीत, कला, सौंदर्यशास्त्र की देवी सरस्वती का त्योहार है। महाभारत के शांति पर्व में उन्हें वेदों की माता कहा गया है। वह अज्ञानता, अविद्या और अंधकार को दूर कर गर्मी, चमक, प्रकाश, माधुर्य, सद्भाव, पवित्रता और प्रसन्नता का संचार करती है।