डॉ. अंशुल उपाध्याय
आतंकवाद जाति और मज़हब के नाम पर गहरा धब्बा हैं। जो लोग भी इस कृत्य में शामिल होते है उनकी जीवन प्रत्याशा अपने आप ही कम जाती हैं। एक ओर जहां आतंकी नेटवर्क को चलाने के लिए बालकों के दिमाग में ज़हर और नफ़रत भरकर उनको कम उम्र में ही इस काम में धकेल दिया जाता है। वही दूसरी और युवाओं को रूपये और उनके परिवार का पोषण का जूठा वादा करके आतंकी बनने के लिए घसीट लिया जाता है।
अव्वल दर्जे की मनोवैज्ञानिक ट्रेनिंग का नतीजा होते हैं आतंकी
बदलते परिवेश में मनोवैज्ञानिक तरीके से युवक और युवतियों का धीरे-धीरे ब्रेनवाश करके 15 से 16 वर्ष की आयु तक उन्हें एक ट्रेंड और क्रूर आतंकी बना दिया जाता है। फिर ये मासूम एक ऐसे व्यक्ति बन जाते है जिसका ख़ुद का दिमाग चलना ही बंद हो जाता है। और जो भी उन्हें आदेश या टारगेट दिए जाते हैं वे अपना दिमाग बिना चलाए आंख मूंद कर उन टारगेटों को पूरा करने के लिए निकल जाते हैं। फिर चाहे उन्हें सुसाइड बंबर बनकर अपने ही शरीर के चीथड़े ही क्यों ना उडाने पड़े।
आतंकवादियों को जरा भी इस बात का इल्म नहीं होता कि उन्होंने उनके इस काम से कितने मासूमो को मारा है ।
इतनी क्रूरता आखिर किस लिए सिर्फ? सरकार को दिखाने के लिए या जनता को डराने के लिए? या फिर अपने नाकाम मानसून को पूरा करने के लिए? इस पर मैं बस इतना कहूंगी कि ये घटनाएं सिर्फ एक क्रूर मनुष्य के दिमाग़ से जन्म लेती है और विचलित, ब्रेन लॉक मनुष्य के द्वारा अंजाम तक पहुंचाई जाती हैं। जिनका मकसद सिर्फ समाज में आतंकवाद डर को फैलाना होता है।
कश्मीर की आड़ में अपने खूनी मंसूबों को अंजाम देते हैं आतंकी
आतंकवादी ऐसे लक्ष्य विहीन लोग होते है जो,कश्मीर की आड़ में कश्मीर को ही खोखला कर रहे है। कश्मीर में रहने वाला शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसने आतंक के इस डरावने चेहरे का सामान न किया हो। पाकिस्तान मैं बैठे कुछ लोग अगर कश्मीर की आजादी की बात कर रहे है तो इसमें कोई भी दो मत नहीं है कि जितना वह आतंक और नरसंहार फैला रहे है उसके बाद उनसे शांति और करुणा की बात करना बेफिजूल ही है ।
ये न केवल अपने खूनी मंसूबों को ही अंजाम दे रहे हैं। बल्कि हथियारों का निर्माण और उनकी तस्करी करने वालों को भी सीधा फ़ायदा पहुंचा रहे हैं। हथियारों की तस्करी करने वाले ये लोग तो अमीर देशो में बैठे हुए हैं। और आतंकवादी बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं मिडिल क्लास और निम्न तबगे के लोगों का। जबकि इन आतंकियों के जो हुक्मरान होते हैं वह खुद अपने बच्चों और परिवार को तो लग्जरी लाइफ देते हैं और आम जन को बली चढ़ाने के लिए आतंकवाद की आग में झोंक देते हैं।
दिल्ली में विस्फोट के पीछे का काला सच
वर्तमान घटना क्रम की बात करे तो, दिल्ली लाल किले के पास हुए जोरदार कार धमाके में डॉ. उमर नबी ने करीब 30-40 किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल किया था। पुलिस इस बात की आशंका जता रही हैं। कि इस धमाके में अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल हुआ है।सूत्रों के मुताबिक आतंकी ने विस्फोट को और खतरनाक बनाने के लिए अमोनियम नाइट्रेट के अलावा दूसरे पदार्थों का भी इस्तेमाल भी किया होगा। जिसकी जांच अभी चल रही है। इन्हीं केमिकल पदार्थों के द्वारा ही धमाका काफी जोरदार हुआ था और इसकी गूंज काफी दूर तक सुनाई दी थी।
मार्च 2020 में गिरफ्तार अलीपुर महिला सुधार गृह में बंद परवीन जो मौलाना मसूद अज़हर की बहन, है और लश्कर – ए -तैयबा की एक हैंडलर भी है से पूछ ताछ में पता चला है कि वह खुद जैश की महिला शाखा की प्रमुख सईदा अज़हर के निर्देशों पर काम करती थी। परवीन कथित तौर पर आतंकवादियों के लिए ऑनलाइन भर्ती का काम संभालती थी और उसकी गतिविधियों पर नज़र रखती थी है।
आज आतंकी सिर्फ पहाड़ों में छिपे बंदूकधारी नहीं रह गए है, बल्कि यहां तो यूनिवर्सिटी में पढने वाले डॉक्टर, इंजीनियर और टेक-सेवी नौजवानो को भी आतंकी बनाया जा रहा हैं। भारत के भीतर व्हाइट कॉलर टेरर का ऐसा नेटवर्क तैयार किया गया है, जो मेडिकल पेशे की आड़ में देश को अस्थिर करने की साजिश रच रहा था।
घटना के बाद परिवार द्वारा शव का बहिष्कार
फ़िदायीन आतंकी डॉ. उमर नबी जिसके इस विस्फोट में टुकड़े टुकड़े हो गए थे, उसके शव के कई टुकड़े मोर्चरी में रखे हुए हैं। डीएनए से उसके शव की पहचान भी हो गई है। फिर भी उमर का शव लेने के लिए अभी किसी ने भी दावा नहीं किया है। ये वही डॉ. उमर है जो पहले विस्फोटक से लदी कार लेकर दिल्ली के वीआईपी इलाकों में घूमता रहा और बाद में इसने इस भयानक विस्फोट को अंजाम दिया। उमर की उम्र 43 वर्ष ही थी और वह अल फलाह यूनिवर्सिटी फरीदाबाद से जुड़ा हुआ था। हालांकि सुरक्षा एजेंसियां उसके परिवार से लगातार पूछताछ कर रही हैं। पर विचार करने वाली बात यही है की, ऐसे नौजवान जो आतंक के हत्थे चढ़ जाते है अपने पीछे अपने पूरे परिवार को जीवन भर के लिए बदनामी और सामाजिक बहिष्कार का हिस्सा बना जाते है।
लेखिका फॉर्मर यू.जी.सी. सीनियर रिसर्च फैलो (रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन), दिल्ली रह चुकी हैं।





