सीता राम शर्मा ” चेतन ”
देश का अस्तित्व जनता से होता है और जनता का देश से । किसी भी समर्थ, शक्तिशाली और विकसित देश को चाहिए होती है नैतिक गुण, बल और कर्म से संपन्न जनता और जनता को देश से सबसे पहले चाहिए होती है अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन जीने की ऐसी उत्कृष्ट व्यवस्था, जिसमें वह अपनी शांति, सुरक्षा और विकास के अनुभव से जनित पूरे विश्वास के साथ एक स्वतंत्र, बाधा मुक्त और निर्भीक जीवन जी सके । भारत में अब तक ना देश की व्यवस्था ऐसी हो पाई है और ना ही जनता की मानसिकता । अच्छी बात यह है कि देर से ही सही अब इसकी शुरुआत होती दिख रही है । स्वाभाविक रूप से इससे कुछ रूढ़ीवादी, अशिक्षित, अविकसित, पाखंडी लोगों के साथ उनकी इस स्थिति का लाभ उठाते कुछ षड्यंत्रकारी लोगों, समूहों और उनके संरक्षकों को तकलीफ हो रही है और होगी भी । वे ऐसी सुधारात्मक हर नीति और कार्य का हर संभव पुरजोर विरोध भी करेंगे क्योंकि ऐसा ना करने से उन्हें अपना पापी अस्तित्व ही समाप्त होता दिखेगा । पर स्पष्ट है कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा, हाँ उन्हें खुद को खुद में अपनी मानसिक कमियों, विकृतियों के अनुसार एक सकारात्मक बदलाव के लिए थोड़ा-बहुत या कठिन श्रम तो करना ही होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है । बेहतर होगा कि अब जितनी जल्दी हो सके उन्हें इस बदलाव के लिए खुद को तैयार कर लेना चाहिए । उन्हें किसी भी षड्यंत्रकारी अपराधी विरोध की बजाय इस बदलाव के लिए कमर कस लेनी चाहिए । जो ऐसा करेंगे उनका अस्तित्व बचेगा और सुरक्षित रहेगा, जो नहीं करेंगे आगामी भविष्य में दंड पाएंगे और अपने तथा अपनों के जीवन के लिए संकट भी उत्पन्न करेंगे । उक्त विचार या किये गए विश्लेषण का सार शीर्षक से ही स्पष्ट है । इस आलेख में चर्चा और चिंतन का मुख्य विषय है वर्तमान समय में देश में वर्षों से चली आ रही अपराध, उत्पात, भय और शोषण की बेखौफ मानसिकता और कार्य प्रणाली के विरूद्ध अब जिस तरह से कुछ राज्य सरकारें नये तरीके से खुलकर न्याय और संविधान सम्मत कार्रवाई कर रही हैं और उसे बहुतायत जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है, वह हर दृष्टिकोण से उचित और प्रशंसनीय है । अनुकरणीय है । इन्हें ना सिर्फ जारी रखने की जरूरत है बल्कि देश तथा जनता के शांतिपूर्ण विकास और सुरक्षित भविष्य के लिए ऐसे हर संभव नये नियम कानून बनाकर उन्हें पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता, पारदर्शिता और सख्ती से लागू करने की भी जरूरत है । बावजूद इसके इन नीतियों और कार्रवाईयों का विरोध हो रहा है तो क्यों ? बात अपराधियों के ठिकानों, आशियानों पर बुलडोजर चलाने की हो या फिर धर्म के नाम पर शोर मचाकर आम जनता और जन-जीवन के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण करने के साथ उनकी शांति व्यवस्था को भंग करते लाउडस्पीकरों को शांत करने की, दोनों ही कार्य निर्विवाद रूप से सही और न्यायसंगत हैं । ना अनैतिक और अपराधी तरीके से किसी व्यक्ति के द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति अथवा राष्ट्रीय संपित्त को हड़पना या नुकसान पहुंचाना सही है और ना ही धर्म अथवा व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक परंपरा, समारोह के नाम पर किसी मंदिर, मस्जिद, गिरिजा, गुरूद्वारे या अपने घर अथवा होटल, क्लब, धर्मशाला में लाउडस्पीकर लगा शोर मचाकर किसी भी तरह का धार्मिक कर्मकांड या उत्सव अथवा मातम मनाना । इसलिए यदि ऐसे अपराधों, ऐसी गलतियों, कुरीतियों, रूढ़ीवादी परंपराओं पर अब बुलडोजर चल रहे हैं या शोर मचाते लाउडस्पीकरों को बंद किया जा रहा है, तो इस पर कोई संदेह और विवाद किए बिना इन कार्रवाईयों का, इन सुधारात्मक नीतियों का खुले दिल और दिमाग से देश के हर एक नागरिक को शत-प्रतिशत समर्थन करना चाहिए । उचित तो यह होगा कि इस तरह की नीतियों और कार्रवाईयों में यदि कोई संवैधानिक नियम कानून की कोई बाधा हो या भविष्य में आने की संभावनाएं भी हो तो देश और जन हित के लिए देश के हर एक नागरिक के साथ न्यायपलिका, राजनीतिक दलों, केंद्र और राज्य सरकारों को भी नीजि और सामुहिक समर्थन और प्रयास से अब उसे दूर करना चाहिए क्योंकि ऐसी नीतियाँ और ऐसे कार्यों का सबसे पहले और सबसे ज्यादा लाभ आम जनता और देश को ही मिलेगा । मिलता रहेगा ।