गोपेन्द्र नाथ भट्ट
सोशल मीडिया के मौजूदा युग में राजस्थान में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की भाजपा सरकार सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार के लिए एक नई नव प्रसारक नीति ला रही हैं। इस अभिनव नीति का उद्देश्य समाज की अन्तिम पंक्ति में बैठे लोगों तक सरकारी योजनाओं की सुलभ पहुंच करा अंत्योदय के लक्ष्य को साकार करना है। राज्य सरकार इसके लिए सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की मदद लेगी। नई नीति के तहत हर जिले में काम करने वाले नव प्रसारक जन कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जनता के मध्य जागरुकता लाएंगे। राज्य सरकार का सूचना एवं जन संपर्क विभाग (डीआईंपीआर) के जिला सूचना एवं जन सम्पर्क अधिकारी (पीआरओ) इन नव प्रसारकों के मेंटर के रूप में इनके कार्य की निगरानी करेंगे। डीआईंपीआर के अधिकारी, इन नव प्रसारकों को कंटेट क्रिएशन, वीडियो- ऑडियो एडिटिंग, एसईओ, सोशल मीडिया मैनेजमेंट और ब्रांडिंग आदि स्किल्स प्राप्त करने के लिए भी मदद करेंगे।
इस नीति में नव प्रसारकों के लिए दो प्रकार की श्रणियां बनाई गई हैं । श्रेणी ए में एक लाख से अधिक सब्सक्राइबर अथवा फॉलोअर्स वाले सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स और श्रेणी बी में न्यूनतम 7 हजार से 1 लाख तक सब्सक्राइबर अथवा फॉलोअर्स वाले सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स को रखा गया है। जिला स्तर पर प्रत्येक श्रेणी में एक-एक नव प्रसारक और संभाग स्तर पर श्रेणी ए में दो एवं बी में एक नव प्रसारक का चयन किया जाएगा। नव प्रसारक फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम और यूट्यूब में से अपने कम से कम दो सोशल मीडिया अकाउंट्स पर राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं और निर्णयों से संबंधित एक पोस्ट प्रतिदिन अपलोड करेंगे। साथ ही, सरकार के विभिन्न सोशल मीडिया हैंडल्स की पोस्ट्स को प्रतिदिन शेयर अथवा री-पोस्ट कर योजनाओं का प्रचार-प्रसार करेंगे।
राज्य सरकार की जन कल्याणकारी नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों तथा उपलब्धियों का प्रचार प्रसार करने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकार के सूचना एवं जन संपर्क विभाग (डीआईंपीआर ) की होती है। इस विभाग को सरकार का आईना माना जाता हैं। यह विभाग आजादी के राज्य के गठन से अब तक विभिन्न माध्यमों से सरकार की जन कल्याणकारी नीतियों,योजनाओं और कार्यक्रमों तथा उपलब्धियों का प्रचार प्रसार करता आया है। सबसे पहले इसके लिए प्रचार प्रसार के परंपरागत साधनों मेलो, नुक्कड़ नाटकों, कठपुतली प्रदर्शन,गोष्ठियों,कवि सम्मेलनों,सामुदायिक सम्मेलनों,प्रेस नोट वितरण आदि का उपयोग किया जाता था। इसके बाद परंपरागत माध्यमों के साथ-साथ क्षेत्रीय प्रचार के माध्यमों फिल्म प्रदर्शन, विकास प्रदर्शनियों, प्रचार सामग्री वितरण और समाचार पत्रों तथा आकाशवाणी वार्ताओं एवं इंटरव्यू आदि से सघन प्रचार प्रसार के कार्य किए जाते रहें। कालांतर में रेडियों के अलावा दूरदर्शन का आगमन हुआ और राज्य सरकार के प्रचार प्रसार में एक नया आयाम जुड़ा। तदोपरांत प्रेस तार,फैक्स, टेलीप्रिंटर का युग आया और प्रचार प्रसार में इन माध्यमों का भारी योगदान रहा। पिछले तीन चार दशकों में कम्प्यूटर क्रांति आने क्या बाद ईमेल और डिजिटल प्रजेंटेशन आदि ने प्रचार प्रसार के नए आयाम स्थापित किए और अब जब दुनिया 21 वीं सदी की सिल्वर जुबली पार कर रही है तो मोबाइल क्रान्ति भी अपने परवान पर है और सारी दुनिया एक मुट्ठी के बन्द हो गई है। सोशल मीडिया के वर्तमान युग ने पब्लिसिटी को नए पंख लगा दिए है और प्रचार प्रसार के सारे पुराने साधन कालातीत से लगने लगे है। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स ने संचार के युग में एक नई क्रांति ला दी है और राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर आम आदमी तक सन्देश वाहक बन गया है। पलक झपकते ही क्षण मात्र में हर ताजा खबर मोबाईल स्क्रीन पर आ रही हैं और प्रचार प्रसार के दूसरे माध्यम अब इस डिजिटल क्रांति के आगे फीके हो गए है।
ऐसे में राजस्थान सरकार द्वारा सरकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार के लिए एक नई नव प्रसारक नीति लाना स्वागत योग्य कदम कहा है सकता है फिर भी राज्य सरकार को प्रचार प्रसार के परंपरागत और गैर परंपरागत साधनों को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि असली भारत देश और प्रदेश के गांवों में बसता है जहां आज भी परंपरागत और गैर परंपरागत प्रचार साधनों का अपना महत्व है फिर राजस्थान देश का भौगोलिक दृष्टि से सबसे बड़ा प्रदेश है। राज्य के मरुस्थलीय और आदिवासी क्षेत्रों में आबादी बहुत छितराई हुई है। कई पिछड़े और सुदूर अंचलों में रहने वाले लोग अशिक्षित है तथा अनेक इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी अपने आपमें एक बड़ी समस्या है।
राजस्थान के सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद अपने प्रचार प्रसार के गुरुत्तर दायित्वों को पूरा करने में कई नवाचार किए है और कई ऐसे प्रयोग भी किए है,जोकि देश में इससे पहले कभी नहीं हुए। इसमें प्रदेश के प्रमुख नगरों में टेलीफोन खंभों पर लाउड स्पीकर लगा कर प्रतिदिन समाचार सुनाना शामिल है। यह प्रयोग पब्लिक रेडियो के रुप में लोकप्रिय रहा तथा कर्फ्यू एवं अन्य आपात परिस्थितियों में भी कारगर सिद्ध हुआ। इसी प्रकार रोशनी का रथ प्रचार वाहन चलती फिरती प्रदर्शनी और सिनेमा प्रदर्शन का उपयोगी साधन साबित हो चुके है। आज भी शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में नई तकनीकी से जोड़ इसका कारगर ढंग से प्रचार प्रसार कार्यों में सदुपयोग किया जा सकता है। प्रदेश में 200 विधानसभा और 25 लोकसभा सीट है और आने वाले परिसीमन के बाद इनकी संख्या और अधिक बढ़ेगी लेकिन राज्य के हर विधान सभा ने औसत एक पीआरओ भी नियुक्त नहीं है। नई नीति को लागू करने के लिहाज से राज्य सरकार की अपने सूचना तन्त्र को बढ़ाना होगा
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स सरकारी सूचना तन्त्र के साथ मिल कर विशाल राजस्थान के गाँव गांव और ढाणी ढाणी में सुदूर एवं पिछड़े इलाकों की जनता तक राज्य सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं, नीतियों, कार्यक्रमों और उपलब्धियों के प्रचार प्रसार के कार्य को कितने कम समय में प्रभावी ढंग से लागू करने में सफल होंगे?