सुरेश हिंदुस्थानी
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा को यह कहकर प्रचारित किया जा रहा है कि यह यात्रा नफरत नहीं सद्भाव के लिए है, लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस के लिए अब सद्भाव की बातें केवल नारा ही बनकर रह गई हैं। यात्रा जैसे जैसे आगे बढ़ रही है, ठीक वैसे ही यात्रा का उद्देश्य भी सामने आता जा रहा है। हालांकि यात्रा के प्रथम दिन से ही ऐसे लोगों को सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है, जो किसी न किसी रूप में देश की संस्कृति के लिए विरोधात्मक रवैया अपनाते रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा में कभी देश तोड़ने के समर्थक शामिल होते हैं, तो कभी वामपंथी एजेंडा के तहत राजनीति करने वाले राहुल गांधी के साथ चलते दिखाई देते हैं। जहां तक सद्भाव की बात है तो यह शब्द भारत के लिए नया नहीं है और न ही इसे कांग्रेस की उपज कहा जा सकता है। लेकिन यह भी सत्य है कि कांग्रेस ने अपनी नीतियों के माध्यम से हमेशा हिन्दू समाज मानबिन्दुओं पर कुठाराघात करने का ही काम किया है, चाहे वह राम मंदिर का मामला हो या फिर सांप्रदायिक हिंसा अधिनियम प्रस्ताव का ही मामला हो, यह दोनों ही हिंदुओं की भावनाओं का कुचलने का एक दुस्साहसिक प्रयास ही था।
हम भली भांति जानते हैं कि भारत की संस्कृति कभी भी नफरत के वातावरण का समर्थन करने वाली नहीं रही, इसलिए सवाल यह है कि देश में नफरत के भाव का बीजारोपण किसने किया। क्या इसके लिए लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस की सत्ता जिम्मेदार नहीं है? क्या टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन करने में कांग्रेस नेताओं की भूमिका नहीं रही? इसमें तो स्वयं राहुल गांधी ही उनका समर्थन करने पहुंचे थे। इन बातों से लगता है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है। वे बात कुछ और करते हैं, लेकिन उनकी बातों का असर उनकी कार्यशैली में दिखाई नहीं देता। वर्तमान में राहुल गांधी की केवल एक ही शैली दिखाई देती है, वह है केवल देश को नीचा दिखाने की शैली। सांप्रदायिक सद्भाव तो भारत का मूल है, लेकिन राहुल गांधी को आज यह बात समझ में आई है। लेकिन इसके बाद भी सवाल यह आता है कि उनकी यात्रा में सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाले नेता या अन्य व्यक्ति क्यों शामिल हो रहे हैं? क्या इससे कांग्रेस के चरित्र का पता नहीं चलता? अगर कांग्रेस नेता वास्तव में सद्भाव के वातावरण का उत्थान चाहते हैं तो इसमें नफरत फैलाने वाले लोगों को शामिल नहीं करना चाहिए था। कांग्रेस को चाहिए कि वह अपनी यात्रा में ऐसे लोगों को शामिल करने का प्रयास करे, जिनकी पहचान शांति स्थापित करने वाली रही हो। ऐसे प्रयासों के लिए राजनीतिक विचार को तिलांजलि देना पड़े तो दे देना चाहिए। क्योंकि राजनीतिक विचार ही नफरत की भावना को बढ़ावा देने का कार्य करता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कांग्रेस नेताओं के मन में वर्तमान केन्द्र सरकार के प्रति द्वेष भाव भरा हुआ है। द्वेष भाव को धारण करने वाला व्यक्ति कभी भी सद्भाव नहीं ला सकता। देश भावना यही कहती है कि हम अच्छी बातों का दिल खोलकर स्वागत करें और भारतीय संस्कृति के विरोध में उठने वाले हर कदम का विरोध करें।
कांग्रेस की अवधारणा के बारे में कुछ लोगों में यह सवाल उठता है कि कांगे्रस ईसाई और मुसलमानों के बारे कभी विरोधात्मक शैली नहीं अपनाती। इनके गलत कामों पर भी कांगे्रस के नेता मौन साध लेते हैं। हो सकता है कि यह सहजता में होता हो, लेकिन जितने मुंह उतनी बातें तो होती ही हैं। अभी यात्रा के बारे में भी यह सवाल उठने लगा है कि कांग्रेस ने इसी समय भारत जोड़ो यात्रा को विराम क्यों दिया है? कहने वाले तो यहां तक कहने लगे हैं कि यह यात्रा केवल क्रिसमस और अंग्रेजी नया साल मनाने में कोई व्यवधान न हो, इसलिए ही रोकी गई है। यह सभी जानते हैं कि अंग्रेजी नव वर्ष प्राकृतिक त्यौहार नहीं है और न ही इसका प्रकृति से कोई संबंध ही है, फिर क्यों इसको बढ़ावा देने का कार्य किया जा रहा है। यह भी सर्वविदित ही है कि हम प्रकृति का साथ देंगे तो प्रकृति भी हमारा साथ देगी। आज समाज का बहुत बड़ा वर्ग यह कहने का साहस जुटाने लगा कि एक जनवरी वाला नव वर्ष भारत का नहीं है। लेकिन कांग्रेस के नेता इस भारतीय धारणा को बदलने का प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं। राहुल गांधी अगर अपने आपको हिन्दू मानते हैं तो उन्हें हिन्दू होने का परिचय अपनी कृति से देना ही होगा। अगर ऐसा होगा तो वह सांप्रदायिक सद्भाव को सही मायने में समझने लगेंगे।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा निसंदेह एक तपस्या है। देश में एकता स्थापित करने के लिए ऐसी यात्राएं पहले भी हो चुकी हैं। आद्य शंकराचार्य ने भी भारत में सांस्कृतिक ज्ञान का संदेश प्रवाहित करने के लिए ऐसी ही यात्रा की थी। हम तो चाहते हैं कि राहुल गांधी अपनी यात्रा के माध्यम से देश को मजबूत करने का कार्य करें, लेकिन ऐसी यात्राओं के लिए निकलने से पहले मन में विरक्ति का भाव भी होना चाहिए। लेकिन राहुल गांधी के मन में चल रहे विचारों को देखकर ऐसा लगता नहीं है कि उनके स्वभाव में विरक्ति है। उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान महाराष्ट्र में वीर सावरकर का उल्लेख करते समय नफरत का ही परिचय दिया था। इसलिए कहा जा सकता है कि जब नफरत के बीजों का अंकुरण उनके मन में ही हो रहा है तो सद्भाव के फूल कैसे खिलेंगे। कांग्रेस नेताओं के मन में जब तक ऐसा भाव रहेगा, तब तक कितनी भी यात्राएं निकाल लें, वे देश का मन नहीं जीत सकते। देश का मन जीतने के लिए भारत की संस्कृति को मन और मस्तिष्क में धारण करना होगा। तभी भारत जोड़ो यात्रा का उद्देश्य सफल होगा।