बिहार विधानसभा चुनाव 2025 : अस्थिर गठबंधन और युवा बनाम अनुभवी नेतृत्व की जंग

Bihar Assembly Elections 2025: Shaky alliances and a battle between youth and experienced leadership

अशोक मधुप

बिहार का 2025 विधानसभा चुनाव राजनीतिक अस्थिरता, नए सिरे से बने गठबंधनों, और युवा बनाम अनुभवी नेतृत्व के बीच सीधे मुकाबले के कारण भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन चुका है। यह चुनाव न केवल राज्य के शासन की दिशा तय करेगा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। इस बार का चुनावी परिदृश्य पिछले चुनावों से कई मायनों में अलग है, खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बार-बार पाला बदलने ने इस जंग को और भी दिलचस्प बना दिया है। यह चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनैतिक भविष्य भी तै करेगा।

बिहार की राजनीति हमेशा से ही गठबंधनों के टूटने और बनने के लिए जानी जाती है, लेकिन 2025 के चुनाव से पहले का घटनाक्रम अभूतपूर्व रहा।जनवरी 2024 में, जनता दल (यूनाइटेड) के नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेतृत्व वाले महागठबंधन को छोड़कर नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ मिलकर सरकार बनाई। इस बार एनडीए में प्रमुख रूप से बीजेपी, जदयू और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (एचएएम) शामिल हैं।

एनडीए गठबंधन विकास और सुशासन के पुराने एजेंडे पर भरोसा कर रहा है, साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्रीय चेहरा एक बड़ा फैक्टर है। हालांकि, नीतीश कुमार के दल-बदल से उपजी विश्वसनीयता का संकट एनडीए के लिए एक चुनौती है। सीट बंटवारे को लेकर कुछ छोटे सहयोगियों में असंतोष की खबरें और मगध जैसे कुछ क्षेत्रों में पिछले चुनाव में एनडीए का कमजोर प्रदर्शन इस गठबंधन के लिए चिंता का विषय है।

नीतीश कुमार के एनडीए में लौटने के बाद, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के युवा नेता तेजस्वी यादव महागठबंधन के एकमात्र और निर्विवाद नेता बन गए हैं। इस गठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, और वाम दल (CPI, CPI-ML) शामिल हैं। महागठबंधन का मुख्य फोकस तेजस्वी यादव के ‘रोजगार और विकास’ के वादे पर है। तेजस्वी, अपने पिता लालू प्रसाद यादव के सामाजिक न्याय के आधार को आर्थिक न्याय के साथ जोड़कर एक नया राजनीतिक विमर्श बनाने की कोशिश कर रहे हैं। तेजस्वी यादव खुद को परिवर्तनकारी नेता के रूप में पेश कर रहे हैं, जो ‘डबल इंजन’ सरकार की कथित विफलता और पुराने जंगलराज के आरोपों का मुकाबला ‘युवा और विजनरी’ नेता की छवि से कर रहे हैं।

बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा से ही निर्णायक रहे हैं। इस चुनाव में भी ‘4 C’ (कास्ट, कैंडिडेट, कैश और कोऑर्डिनेशन) फैक्टर महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। जीतन राम मांझी (HAM) और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) जैसे छोटे क्षेत्रीय दल, जो क्रमशः मुसहर और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) के मतदाताओं पर प्रभाव रखते हैं, निर्णायक साबित हो सकते हैं। VIP, जो अब महागठबंधन में है, मिथिलांचल क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ के कारण गठबंधन को मजबूती दे सकता है।

यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण RJD का पारंपरिक आधार है, जबकि NDA कुर्मी-कोइरी के साथ मिलकर अगड़ी जातियों और दलितों के एक हिस्से को साधने की कोशिश कर रहा है।

यह चुनाव केवल गठबंधन की राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जनहित के मुद्दों पर भी लड़ा जा रहा है। तेजस्वी यादव ने 10 लाख सरकारी नौकरियों का अपना पुराना वादा दोहराया है, जो राज्य के युवा मतदाताओं के बीच एक बड़ा चुनावी मुद्दा है। एनडीए ‘जंगलराज’ के आरोपों को फिर से हवा दे रहा है, लेकिन तेजस्वी यादव ने इस बार इसे ‘डबल जंगलराज’ कहकर पलटवार किया है। वे मौजूदा NDA सरकार पर कानून व्यवस्था बनाए रखने में विफल रहने का आरोप लगाया है।

दोनों गठबंधन राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के विकास पर अपने-अपने दावों के साथ मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। शुरुआती सर्वे (2025 की शुरुआत में) NDA को बढ़त दिखाते रहे हैं, लेकिन तेजस्वी की ताबड़तोड़ रैलियों और महागठबंधन के जमीनी प्रचार ने मुकाबला काँटे की टक्कर में बदल दिया है।

बिहार का चुनावी परिणाम बहुत हद तक काँटे की टक्कर में फंसा हुआ दिखता है, जहाँ जीत-हार का फैसला कुछ ही सौ वोटों के अंतर से हो सकता है (जैसा कि 2020 में हिल्सा जैसी सीटों पर हुआ था)।

तेजस्वी यादव के लिए यह चुनाव उनकी राजनीतिक परिपक्वता और नेतृत्व की क्षमता की सबसे बड़ी परीक्षा है। तो यह चुनाव नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत पर एक जनमत संग्रह भी होगा, जिनके बार-बार पाला बदलने की आलोचना हो रही है। एनडीए के भीतर, यह भाजपा की ताकत को भी परखेगा कि क्या वह अपने सहयोगियों पर निर्भरता कम करके खुद को राज्य की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित कर सकती है।

इस बार के चुनाव में पहली बार ‘जन सुराज पार्टी ‘ नामक एक नया राजनैतिक दल भी बिहार की राजनीति में अपनी ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज करा रहा है।’जन सुराज पार्टी ‘ जैसे किसी नवगठित दल द्वारा अपने पहले ही चुनाव में राज्य की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करना ही अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। बड़ी बात यह है कि इस पार्टी के लगभग सभी उम्मीदवार शिक्षित,बुद्धिजीवी,पूर्व नौकर शाह,पूर्व आई ए एस,आई पी एस,वैज्ञानिक,गणितज्ञ तथा शिक्षाविद हैं जबकि चुनाव मैदान में कूदे अन्य पारंपरिक राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनैतिक दलों के उम्मीदवारों की शिक्षा,उनके आचरण, चरित्र व योग्यता के विषय में कुछ अधिक बताने की ज़रुरत ही नहीं। बहरहाल इस नये नवेले राजनैतिक दल ‘जन सुराज पार्टी ‘ के संस्थापक व अकेले रणनीतिकार व स्टार प्रचारक वही प्रशांत किशोर हैं, जो नरेंद्र मोदी व भाजपा से लेकर देश के अधिकांश राजनैतिक दलों व नेताओं के लिये एक पेशेवर के रूप में चुनावी रणनीति तैयार करने के बारे में जाने जाते हैं। देश के विभिन्न राजनैतिक दलों को अपनी रणनीति का लोहा मनवाने के बाद मूल रूप से बिहार के ही रहने वाले प्रशांत किशोर ने अपनी योग्यता का प्रयोग सर्वप्रथम अपने ही राज्य के विकास के लिये करने का निर्णय लिया और 2022 में बिहार की जनता को जागरूक करने व उन्हें उनकी व पूरे राज्य की बदहाली के मूल कारणों से अवगत कराने के मक़सद से बिहार में ‘जन सुराज अभियान’ चलने की घोषणा की। इस घोषणा के बाद ही उन्होंने राज्य में लगभग 3,000 किलोमीटर की पदयात्रा भी की। देखना है कि बिहार की राजनीति में यह कितना परिवर्तन लाने में सफल होते हैं।

संक्षेप में, बिहार 2025 का चुनाव स्थिरता बनाम परिवर्तन, अनुभव बनाम युवा ऊर्जा, और पुराने जातिगत आधार बनाम नए आर्थिक विमर्श के बीच का संघर्ष है। मतगणना के दिन तक, राज्य की 243 सीटों पर अनिश्चितता का माहौल बना रहेगा।