बिहार अब ‘गंगाजल’ नहीं, ‘गुड न्यूज’ है

धनंजय कुमार

नई दिल्लीः बिहार को लेकर एक अरसे से जो धारणा(परसेप्शन) बनी हुई है उसे देखते हुए कोई भी उद्योगपति वहां उद्योग लगाने के पहले दस बार सोचेगा। इसलिए बिहार में निवेश के लिए उद्योगपतियों को तैयार करना बड़ी टेढ़ी खीर है- टेढ़ी खीर क्या, असंभव है। लेकिन बिहार के मौजूदा उद्योग मंत्री शहनवाज हुसैन ने 12 मई को दिल्ली में हुए बिहार इंवेस्टर मीट में यह मुनादी कर दी कि राज्य अब उद्योग लगाने का सबसे पसंदीदा राज्य बन गया है। बिहार की तकदीर बदलने वाली है। बंदे ने होटल ताज मान सिंह में उद्योगपतियों का जमावड़ा तो लगा दिया लेकिन बिहार के प्रति धारणा का सवाल पूरे दिन उनका पीछा करता रहा ।

ऐसा अचानक क्या हो गया कि बिहार को लेकरएक अरसे सेजो धारणा बनी हुई है वह यकायक बदल गई ? शहनवाज हुसैन ने फिल्मी टच देकर इस सवाल से कन्नी काटी। शहनवाज बोले कि अब बिहार ‘गंगाजल’ नहीं, ‘गुड न्यूज’ है। ये दोनों हिट फिल्म के नाम हैं। 2003 में बनी प्रकाश झा फेम गंगाजल बिहार में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अपराध को चित्रित करती फिल्म है। अजीब है न, गंगाजल यहां भ्रष्टाचार और अपराध का पर्याय बन गया है। संभव है बुरी तरह मैली हो गई गंगा के पानी को इस पर्याय के लिए उपयुक्त समझा गया हो।

गुड न्यूज हाल में बांझपन दूर करने की विधि आईवीएफ (इन विट्रो गर्भाधान) यानी महिला की कोख के बाहर, थीम पर बनी फिल्म है। इस विधि में गर्भाधान (फर्टिलाइजेशन) कोख के बाहर एक पेट्री डिस में होता है। उद्योग के मामले में बिहार मानो बांझ हो, बिहार इनवेस्टर मीट भी आईवीएफ सदृश साबित हुई । वह भी कोख के बाहर यानी पटना में न होकर दिल्ली में हुई।

फिर जनाब शहनवाज की बात मान भी ली जाए कि बिहार अब गुड न्यूज है तो फिल्म की तरह ही वहां उद्योग लगना बेहद कंप्लीकेटेड (जटिल) है। फिल्म में गंर्भ ठहरने की गुड न्यूज तो आती है लेकिन भ्रूण को पुनः कोख में डालने में दो महिलाओं में अदलाबदली हो जाती है और गुड न्यूज में नाटकीय मोड़ आ जाता है। उसी तरह धारणा बदल भी गई हो तो बिहार में उद्योग लगाना बेहद जटिल प्रक्रिया साबित होगी । और कोई नहीं, बिहार भाजपा के वाणिज्य मंच के अध्यक्ष एवं एशियन फर्मास्यूटिकल लिमिटेड के प्रबंध निदेशक नीरज कुमार ही बिहार में उद्योग के शहनवाज के आशावाद पर पानी फेरते सुनाई देते हैं। वे बताते हैं कि बिहार में एक सड़क बनने में कम से कम 10 साल लग जाते हैं। बिहार में जमीन के इतने टुकड़े हो गए हैं कि एक उद्योग के लिए जमीन अधिग्रहण करने में 5000 लोगों के दस्तखत चाहिए। जब तक चकबंदी नहीं होती उद्योग लगाना टेढ़ी खीर है। इसलिए उद्योग के गुड न्यूज के सामने कई अड़चनें हैं।

बहरहाल, इस मीट में 170 से अधिक कंपनियों जिसमें 30 बड़ी हैं, का जमावड़ा करने के लिए शहनवाज ने शोहरत तो खूब बटोरी लेकिन यह बात बिरले को ही हजम हो रही है कि बिहार सुधर गया और वहां अब उद्योगों के फूलने फलने का युग आने वाला है।इस मीट में शिरकत करने वाली बड़ी कंपनियों में अडानी, आईटीसी, लुलु समूह, एचयूएल, टाटा ब्लूस्कोप, कोकाकोला, अमेजन, फ्लिपकार्ट, सैमसंग, अमूल, ब्रिटेनिया, उषा मार्टिन, होंडा , एल एंड टी, श्री सीमेंट, अंबुजा सीमेंट.आदि प्रमुख रहीं। लुलु दुबई की एक बड़ी कंपनी है। शहनवाज ने कहा है कि वह इस तरह का मजमा दुबई, मुम्बई, सूरत और देश के अन्य शहरों में लगाने वाले हैं ।
बिहार में फूड पार्क, लेदर पार्क, टेक्सटाइल पार्क, आईटी पार्क- यह सब सुन कर सपने जैसा लगता है न, लेकिन सपना देखने से शहनवाज हुसैन को कौन रोक सकता है । कहते हैं न कि जो सपना देख सकता है वह उसे पूरा भी कर सकता है।

शहनवाज बिहार को अपने ससुराल हरियाणा के समकझ खड़ा करने का मुगालता पाले हुए हैं । वैसे बोलने की रौ में वे खुद भी कह गए कि बिहार में उद्योग का लगना असंभव है । उन्होंने कहा- पार्टी (भाजपा) मुझे असंभव कार्य करने के जिम्मे सौंपती रही है और मैं कभी पीछे नहीं हटा। जो भी हो, शहनवाज के भगीरथ प्रयास की चहुंओर प्रशंसा हो रही है। बहरहाल, गुड न्यूज की समां बंध भी जाए तो शराबबंदी की वजह से मजा किरकिरा ही रहेगा।