सीता राम शर्मा ” चेतन “
बदहाल नापाक के बिलबिलाते विदेश और रक्षा मंत्री बिलावल और आसिफ का रुदन इन दिनों वैश्विक समाचारों की चर्चा में है । दोनों ही हैरान परेशान हो चीख-चीख कर दुनिया को बता रहे हैं कि उनका देश आतंकवाद को जन्म पोषण और विस्तार देने की अपनी नापाक हरकतों के कारण आज खुद उसका शिकार हो रहा है और वे, उनका देश और उनकी सरकार उससे तबाह हैं । नापाक पाकिस्तान को दिवालिया मान चुके वहां के विदेश मंत्री आसिफ ने पिछले दिनों सियालकोट के एक कॉलेज के दीक्षांत समारोह में कहा कि हमारे कई राजनेताओं और नौकरशाहों ने ऐसी भारी गलतियां की है जो अब देश पर भारी पड़ रही है । उन्होंने कहा कि आतंकवाद को हम ही लेकर आए थे और अब ये हमारा मुकद्दर बन गया है ! वहीं अपने स्व निर्मित एंव पोषित आतंकवाद से बूरी तरह भयभीत और बिलबिलाते उसके बड़बोले और मतिमंद रक्षा मंत्री बिलावल ने हाल ही में जर्मनी में म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यदि अंतरिम अफगान सरकार ने अपने क्षेत्र से संचालित आतंकवादी समूहों से निपटने के लिए इच्छाशक्ति और क्षमता का प्रदर्शन नहीं किया तो आतंकवाद को पाकिस्तान से बाहर अन्य स्थानों पर जाने में अधिक समय नहीं लगेगा । नापाक के इन नापाक हुक्मरानों की अपनी काली करतूतों की व्यथा कथा और इनके द्वारा किए जा रहे विधवा विलाप का अर्थ बिल्कुल स्पष्ट, पारदर्शी और आइने की तरह साफ है कि आज पाकिस्तान की जो दुर्दशा है और वहां की आम जनता आज जिस आर्थिक बदहाली और आतंकवाद से बूरी तरह त्रस्त है उसका सबसे बड़ा गुनाहगार उसका आज तक का शासन-प्रशासन ही रहा है ।
वहां की सत्ता और सेना ने आज तक भारत विरोध के नाम पर जिस नाकामी, भ्रष्टाचार और आतंकवाद की फसल बोई और काटी है, उसका नतीजा ही आज वहां की करोड़ो आम जनता को वर्तमान बदहाली और आतंकवादी हिंसा के रुप में भोगना पड़ रहा है । अतः वहां की आम जनता को चाहिए कि जब जागो तभी सबेरा की कहावत को चरितार्थ करते हुए वह कम से कम अब भी अपने नापाक शासन-प्रशासन और सेना के खिलाफ खड़ी हो और आतंकवाद के विरुद्ध उसे कठोर और निर्णायक लड़ाई के लिए बाध्य करे । रही बात इन नापाक मंत्रियों के रुदन की, तो पाकिस्तानी आवाम हो या वैश्विक जनमानस और शासक-प्रशासक, उन्हें आतंकवाद पर इनकी इस स्वीकारोक्ति के माध्यम से उनके और उनके नापाक हो चुके मुल्क पाकिस्तान के विरुद्ध अत्यंत कठोर और निर्णायक नीति, नीयत और कार्रवाई का कदम उठाना चाहिए, अन्यथा आज नहीं तो कल बिलबिलाते बिलावल का सच दुनिया के किसी भी देश को भोगना पड़ सकता है । कब, क्यों और कैसे ? इस सच के ज्यादा विस्तार में जाने की जरूरत बिल्कुल नहीं है क्योंकि आतंकवाद कब, कैसे और कहां अपना आतंक बरपाता है या बरपा सकता है, यह बात आज लगभग पूरी दुनिया जानती है । खुद को सर्व शक्तिमान, शक्तिशाली और पूर्ण रुपेण सुरक्षित समझने के विश्वास और दंभ से भरे कई प्रमुख राष्ट्र आतंकवाद का शिकार हो चुके हैं, आज भी हो रहे हैं और बेशक आतंकवाद का जितना और जितने रुप में विस्तार हो चुका है, आंशिक अल्पकालीन वैश्विक एकजुटता और यदा-कदा के संघर्ष के बाद भी शिकार होते रहेंगे । इसमें कतई संदेह नहीं कि यदि उनके द्वारा समय रहते आतंकवाद के विरुद्ध दीर्घकालीन वैश्विक एकजुटता और उसके समूल विनाश की दूरदर्शी योजना बना इसे जड़ से समाप्त नहीं किया गया तो लाख सावधानियों के बाद भी आतंकवाद का शिकार होते रहने की आशंकाओं से भयभीत और गैरजरुरी खर्च करने के लिए वे सदैव बाध्य होंगे । अतः बेहतर होगा कि वैश्विक समुदाय और शासन आतंकवाद के ज्यादा विस्तार, शक्तिशाली और सरलता से और ज्यादा प्रभावी होने के पूर्व ही इसके विरुद्ध आरपार की निर्णायक जंग को तैयार हो जाए, लड़े तथा जीते भी । पाकिस्तान के इन नापाक हुक्मरानों की स्वीकारोक्ति का वैश्विक नेताओं, शासको को पूरा लाभ उठाना चाहिए । उन्हें हाथ आए इस अवसर का पूरा लाभ उठाते हुए इन पाकिस्तानी मंत्रियों और इनकी सरकार से यह कहना चाहिए कि वे उनके देश के आतंकवादियों से मुक्ति दिलाने के लिए उसे हर संभव सैन्य सहयोग करने को तैयार हैं । याद रहे सैन्य सहयोग, आर्थिक सहयोग कदापि नहीं, क्योंकि यदि ऐसा किया गया तो वह जहरीले और घातक सांप को दुध पिलाने जैसा होगा । मुझे लगता है भारत को अप्रत्यक्ष रूप से इस अवसर का कुशलतापूर्वक हर संभव कूटनीतिक सदुपयोग करना चाहिए । घबराए, चिंतित, विचलित और भयभीत हुए इन पाकिस्तानी हुक्मरानों की आंतकी स्वीकारोक्ति को निरंतरता देते हुए उसका उपयोग उसके पोषित आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक आक्रमकता में बदलने का काम यूं भी भारत वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में बहुत सरलतापूर्वक करवा सकता है । पाकिस्तानी आतंकवाद और कई घोषित हो चुके वैश्विक आतंकवादी संगठनों और आतंकवादियों के नाम और उनकी सच्चाई अब सर्वविदित है । रही बात नापाक की बदहाली के इस दौर में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से उसका साथ देने वाले कुछ बेहद चतुर, मतलब परस्त देशों की तो सौभाग्य से वर्तमान समय में उनका बहुत खुलकर साथ और सहयोग देना भी मुश्किल है ।
आतंकवाद से त्रस्त वैश्विक समुदाय और भारत के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि अभी बदनीयति और हैवानियत की सारी हदें लांघ चुके नापाक के लिए लंबे समय तक उसके आतंकवाद का पालन पोषण करने वाला और उसकी घोर शैतानियत के लिए अपनी तिजोरी का पिछला दरवाजा खोलकर उसे जी भर कर मुंह मांगी खैरात देने वाला मुल्क फिलहाल उसके खाली कटोरे से नजरें फेर रखा है तो दूसरी तरफ पुराने मालिक का चतुर दुश्मन भी अब उसके भयावह भविष्य की कल्पना से आशंकित हो पीठ दिखाए उस पर गुर्रा रहा है । रही-सही दुर्गति की सारी कसर उसकी उस कौमी संगत ने निकाल दी है जिसे वह मूर्खता में खुद की कौमियत वाली जागीर मान बैठा था । फिलहाल हालात इतने बूरे और बेकाबू हैं कि एक तरफ मजबूरी में डूब मरने के लिए उसके सामने स्वजनित आतंकवाद के कई खौफनाक कुएं हैं तो दूसरी तरफ लाख गिड़गिड़ाने के बाद भी भीख ना मिलने और भूख से बेहाल आक्रोशित जनता के डर से छलांग मार कर मरने वाली गहरी खाई है ! कुल मिलाकर कह सकते हैं कि आज जब नापाक अपने ही जनित और पोषित आतंकवाद और हैवानियत के दंश को झेलने के लिए मजबूर और अभिशप्त है तब उसके आतंकवाद से सबसे ज्यादा त्रस्त भारत के सामने एक अत्यंत सुनहरा अवसर है कि वह ना सिर्फ नापाक के वर्तमान और भविष्य के आतंकवाद से मुक्ति का हर संभव सफल प्रयास करे बल्कि ऐसा कर के आतंकवाद से दुनिया को मुक्ति दिलाने के वसुधैव कुटुम्बकम के अपने आत्मीय और मानवीय सिद्धांत और कर्म को भी फलीभूत करे ।