प्रदीप शर्मा
लोकसभा चुनाव में अभी दो साल का वक्त है। विपक्षी दल अभी अलग-अलग मुद्दों पर बंटी हुई है। कांग्रेस नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर उलझी हुई है तो शिव सेना संजय राउत को लेकर और तृणमूल कांग्रेस पर पार्थ चटर्जी का संकट छाया हुआ है। इधर, बीजेपी ने 2024 के लिए प्लान बनाना शुरू कर दिया है। गृह मंत्री अमित शाह ने तो अगले लोकसभा चुनाव में भी पीएम मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। पूरा बीजेपी का कुनबा अगले आम चुनाव के लिए मिशन मोड में आ चुका है। पार्टी के दिग्गज नेताओं का बड़े राज्यों का दौरा शुरू हो चुका है। पार्टी के कार्यकर्ताओं को लक्ष्य भी दिया जा रहा है। यानी जीत कैसे मिले, जीत के लिए प्रयास कितना हो इसकी तैयारी शुरू हो चुकी है। अमित शाह ने कार्यकर्ताओं के टारगेट भी बता दिया है। दरअसल, बीजेपी ब्रैंड मोदी को भुनाने के लिए पूरी तरह तैयार दिख रही है। विपक्षी दल जहां आपसी मतभेद को ही पाटने में लगे हैं वहीं, बीजेपी अपने सहयोगी दलों को साधते हुए अपने सबसे बड़े ब्रैंड के साथ मैदान में उतरने की रणनीति बना चुकी है।
एक बड़ा सवाल ये है कि आखिर बीजेपी को अपने सबसे बड़े ब्रैंड पर इतना भरोसा क्यों है? तो इसका सीधा सा जवाब है कि इस वक्त भारत की राजनीति में पीएम मोदी की टक्कर का नेता विपक्ष में नहीं है। दूसरी बात, पीएम मोदी की लोकप्रियता अभी भी पूरे देश में सबपर भारी हैं। तीसरी बात, बीजेपी में अभी मोदी के कद का नेता फिलहाल नहीं है। वैसे भी भगवा दल अपने इस सबसे बड़े जिताऊ नेता के साथ मैदान में उतरकर जीत की लय बरकरार रखना चाह रही है। उधर, विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव से लेकर उपराष्ट्रपति चुनाव तक में बिखरा-बिखरा नजर आ रहा है। ऐसे में मजबूत मोदी के सामने विपक्ष फिलहाल तो छितराया नजर आ रहा है। यानी बीजेपी के 2024 में भी मोदी के पीछे एक बड़ा कारण ये भी है।
बीजेपी ने पिछले महीने हैदराबाद में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में 2024 की तैयारियों पर ही जोर दिया। इस बैठक में पीएम मोदी के कार्यकाल की उपलब्धियों का जिक्र किया गया। इस बैठक में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा वंशवाद और भ्रष्टाचार को लेकर विपक्षी दलों पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि इससे समाज कल्याण के कामों में बाधा आती है। दरअसल, बीजेपी वंशवाद की बात करके वैसे क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दलों को निशाने पर ले रही है जिसमें परिवारवाद है। इस बैठक में बीजेपी ने गरीब की चिंता, रोजगार की बात की। पीएम नरेंद्र मोदी ने भी 2024 के पहले 10 लाख रोजगार देने का ट्वीट कर चुके हैं। इसे मिशन मोड में पूरा करने के लिए मंत्रालयों को निर्देश दिया जा चुका है। यानी, बीजेपी हर वो तैयारी, रणनीति बना रही है, जहां से चूक की गुंजाइश नहीं हो।
हालांकि विपक्ष के पास मुद्दों की कमी नहीं जैसे महंगाई, बेरोजगारी, रूपए में आई भारी गिरावट और देश की गिरती आर्थिक इस्थिती लेकिन विपक्ष इसे सही तरीके से उठाने में विफल रहा है बेशक इसके भी कई कारण है जिसे देश का बुद्धिजीवी वर्ग भलीभाती जानता है।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी कैंडिडेट पीएम मोदी के सामने विपक्ष बिल्कुल कमजोर दिख रहा है। वैसे भी 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी के सामने विपक्ष बिल्कुल बिखर गया था। मोदी की अपील और विपक्षी बिखराव ने बीजेपी की जीत आसान कर दी थी। देश का बड़ा विपक्षी दल कांग्रेस अभी अपने सबसे मुश्किल हालात से गुज रहा है। दूसरी तरफ अलग-अलग राज्यों में जो क्षेत्रीय दल हैं उनमें और कांग्रेस में तारतम्यता नहीं है। ऐसे में मोदी बनाम ऑल में भी मोदी का पलड़ा भारी दिख रहा है। हो सकता है कि आने वाले वक्त में चीजें थोड़ी बदले लेकिन क्या वो मजबूत बीजेपी को टक्कर दे पाएंगी ये देखने वाला होगा।
कांग्रेस समेत विपक्षी दल आपस में तालमेल नहीं बैठा पा रही है। उधर, बीजेपी अपने सहयोगी दलों को साधना शुरू कर चुकी है। बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और बीजेपी में तनातनी चल रही है। लेकिन यहां भी बीजेपी ने पहल कर दी है। बिहार में बीजेपी की संयुक्त राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में बीजेपी ने साफ कर दिया कि राज्य में पार्टी जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। पार्टी नेता अरुण सिंह ने साफ कहा कि बीजेपी गठबंधन धर्म में विश्वास करती है और पार्टी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के साथ गठबंधन में आम चुनाव और 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेगी। माना जा रहा है कि आम चुनाव से पहले बीजेपी कुछ पुराने सहयोगियों को भी साथ जोड़ सकती है। यानी जीत के लिए पार्टी हर उस फॉर्म्युले को अपनाने की तैयारी में जिससे जीत पक्की हो जाए।
2024 में पीएम मोदी की वापसी को रोकने के लिए क्या बिखरा विपक्ष एकजुट हो पाएगा? इसपर विशेषज्ञों का अलग-अलग मानना है। दरअसल, अलग-अलग राज्यों में क्षेत्रीय दल अलग-अलग मुद्दों पर चुनाव लड़ते हैं। ऐसे में केंद्र की राजनीति के केंद्र में कौन आएगा इसको लेकर जद्दोजहद चल रही है। ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी, शरद पवार की एनसीपी, आरजेडी, समाजवादी पार्टी जैसे कई दल कुछ मुद्दों पर साथ आने की कोशिश तो करते हैं लेकिन ये सभी मिलकर सीधे पीएम मोदी को टक्कर देते फिलहाल नजर नहीं आते हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि उपराष्ट्रपति चुनाव में टीएमसी ने वोट नहीं डालने का फैसला किया है। विपक्षी कैंडिडेट मार्गरेट अल्वा समेत पूरे विपक्षी दलों के लिए ये एक झटका था। अगर पूरा विपक्ष एकजुट हो पाएगा तभी बीजेपी के लिए थोड़ी मुश्किल हो सकती है।