बीजेपी ने भगवान को इतना बेचा है जितना किसी और पार्टी ने नहीं बेचा

संदीप ठाकुर

राम,शिव,दुर्गा, मां गंगा और अब बजरंग बली…अलग अलग राज्य अलग अलग भगवान
का नाम लेकर भाजपा विगत कई सालों से चुनाव लड़ रही है। उत्तर प्रदेश में
राम,पश्चिम बंगाल में दुर्गा और अब कर्नाटक में हनुमान की पूंछ पकड़
भाजपा चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश भाजपा कर रही है। सवाल यह है कि
भगवान के नाम के सहारे भाजपा वोट क्याें मांगती है ? क्या मोदी के
नेतृत्व वाली भाजपा ने विगत नाै सालों में ऐसा कुछ नहीं किया जिसके आधार
पर वह वोट मांग सके। हालांकि कर्नाटक में चुनाव प्रचार आज बंद हाे गया।
लेकिन प्रचार के दौरान बजरंग दल काे बजरंगबली से जोड़ कर वोट मांगना
हास्यास्पद है। बजरंग दल क्या बजरंग बली का पर्याय है, जिस पर प्रतिबंध
लगा तो बजरंग बली कैद हो जाएंगे? कर्नाटक की जनसभाओं में नरेंद्र मोदी ने
ताे ऐसा ही कहा। भाजपा नेता हर चुनाव में भगवान काे क्याें आगे कर देते
हैं ?

आम जनता पर भयावह आर्थिक मंदी का गंभीर असर है। भारी महंगाई और बेरोजगारी
से उपजा असंतोष भाजपा सरकार के गले में फंदे की तरह लटका है। ऐसी सूरत
में वाेटराें काे बरगलाने के लिए किसी न किसी बहाने हिंदू-मुस्लिम और
धार्मिक ध्रुवीकरण भाजपा के लिए सबसे बड़ा हथियार है। भाजपा इस हथियार का
इस्तेमाल हर चुनाव में करती है। ऐसा देखा गया है कि चुनाव के समय कोई न
कोई नेता बेमतलब की बयानबाजी कर जाता है और बिना कोई मौका चूके भाजपा उसे
लपक लेती है। जैसे कर्नाटक चुनाव में बजरंग दल पर प्रतिबंध वाले
कांग्रेसी बयान काे भाजपा ने बजरंगबली के साथ जोड़ कांग्रेस काे प्रचार
में बैक फुट पर ला दिया। इसी तरह यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने
जिन्न्ना का ज़िक्र आज़ादी के आंदोलन में महापुरुषों की चर्चा के संदर्भ
में क्या किया,भाजपा ने इसी पर सपा काे घेर लिया। नतीजा, जिन्ना के बारे
में अखिलेश के बयान ने उन लोगों को भी नाराज़ कर दिया, जो भाजपा को हराने
के लिए गैर भाजपा विपक्षी पार्टियों की एकजुटता चाहते थे। यूपी में राम
मंदिर का मुद्दा भाजपा के लिए सबसे प्रमुख मुद्दों में से एक है। सन 1990
के बाद से ही भाजपा इसे भुनाने में लगी है। यूपी में यह नारा बेहद
लोकप्रिय है कि “चुनिए उन्हें जो राम को लाए हैं”। अगले साल यानी 2024
में इस नारे का भरपूर इस्तेमाल करने की तैयारी भाजपा ने अभी से कर ली है।

असल में धर्म के मुद्दे व्यक्ति को अंदर से डराते हैं और वह किसी काे भी
अपना रक्षक समझने लगता है। इस मनोविज्ञान का भाजपा को खूब पता है इसलिए
वह अंध भक्ताें व आईटी सेल के पेड ट्रोलरों के माध्यम से अपना नेरेटिव
तैयार करती रहती है। धर्म निरपेक्ष पार्टिया गिरती पड़ती हांफती खांसती
भाजपा से आगे निकलने के लिए दौड़ लगाती हैं । दाैड़ में कभी इनके नेता
मन्दिर जाते हैं। कभी जनेऊ दिखाते हैं। कभी ब्राह्मण सम्मेलन करते हैं।
कभी परशुराम की मूर्तियाँ लगाने की घोषणाएं करने लगते हैं। लेकिन जीत
नहीं पातीं। वैसे भी धर्मनिरपेक्ष पार्टियां जब तक भाजपा की शुरू की गई
रेस में दौड़ती रहेंगी वह भाजपा से हारती रहेंगी। भाजपा को हराना है तो
उसे कामकाज,महंगाई,बेरोजगारी,आर्थिक मुद्दों पर खींचकर ही हराया जा सकता
है।