राजस्थान में चुनावी चेहरे को लेकर परेशान है भाजपा

रमेश सर्राफ धमोरा

राजस्थान में दिसम्बर तक विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव को लेकर राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारियां प्रारंभ कर चुके हैं। भाजपा भी प्रदेश में अपने सांगठनिक ढांचे को मजबूत करने में जुटी है। इसी के तहत प्रदेश अध्यक्ष के पद पर सांसद सीपी जोशी व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर राजेंद्र सिंह राठौड़ को नियुक्त किया है। प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए गए सतीश पूनिया को उपनेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। भाजपा अपने चुनावी गणित में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला फिट कर रही है। इतना सब करने के बाद भी भाजपा आलाकमान राजस्थान को लेकर संतुष्ट नहीं लग रहा है। इसीलिए पार्टी के बड़े नेता लगातार राजस्थान का दौरा कर गुआपसी खेमेबंदी को रोकने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन भाजपा में व्याप्त खेमेबंदी रुक नहीं रही है।

राजस्थान में भाजपा की सबसे बड़ी समस्या चुनावी चेहरे की हैं। जिसके सहारे पार्टी चुनावी मैदान में उतर सके। राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सबसे बड़ी नेता मानी जाती रही है। मगर भाजपा आलाकमान उन्हें चुनाव में चेहरा बनाना नहीं चाहता है। भाजपा आलाकमान चाहता है कि वसुंधरा राजे के स्थान पर नए लोगों को आगे बढ़ाया जाए। इसी सोच के तहत जोधपुर के सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है।

राजपूत समाज से आने वाले गजेंद्र सिंह को पार्टी आलाकमान राजस्थान में प्रमुख चेहरा बनाना चाहता था। मगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गजेंद्र सिंह को संजीवनी क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी घोटाले में लपेटकर विवादास्पद बना दिया है। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि गिरफ्तारी से बचने के लिए केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को राजस्थान उच्च न्यायालय से अपनी अग्रिम जमानत तक करवानी पड़ी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को लोकसभा चुनाव में हराकर गजेंद्र सिंह शेखावत जोधपुर से सांसद बने थे। इस कारण मुख्यमंत्री गहलोत गजेंद्र सिंह को लपेटने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं।

इन दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुलकर गजेंद्र सिंह शेखावत पर प्रदेश के लाखों गरीब परिवारों से 900 करोड रुपए ठगने का आरोप लगा रहे हैं। मुख्यमंत्री गहलोत तो सार्वजनिक रूप से इतना तक कह रहे हैं कि गजेंद्र सिंह शेखावत को आमजन से ठगी कर एकत्रित कर विदेशों में जमा करवाए गए धन को वापस लाकर गरीब लोगों को लौटाना चाहिए।

गहलोत के आरोपों से गजेंद्र सिंह शेखावत की छवी सार्वजनिक रूप से खराब हुई है और वह बैकफुट पर आ गए हैं। गजेंद्र सिंह को लेकर मुख्यमंत्री गहलोत के आक्रमक रूप को देखते हुए भाजपा आलाकमान भी उन्हें फ्रंट फुट पर उतारने से कन्नी काटने लगा है। भाजपा आलाकमान को पता है कि यदि गजेंद्र सिंह शेखावत को चेहरा बनाकर पार्टी विधानसभा चुनाव में उतरती है तो मुख्यमंत्री गहलोत का मुख्य निशाना उन्हीं पर होगा और इसका खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ेगा। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी नहीं चाहती है कि राजपूत समाज के किसी अन्य नेता को उनके स्थान पर प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़ा जाए। इसके लिए वसुंधरा राजे अपने समर्थकों से अंदर खाने गजेंद्र सिंह का विरोध करवा रही है।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए चित्तौड़गढ़ के सांसद सीपी जोशी प्रदेश में कोई पॉपुलर फेस नहीं रहे हैं। प्रदेश स्तर पर उनका कोई बड़ा जनाधार भी नहीं है। दोनों लोकसभा चुनाव भी वह मोदी के चेहरे पर जीते हैं। जातिगत समीकरण के हिसाब से उनको प्रदेश अध्यक्ष तो बना दिया गया है। मगर उन्हे चुनावी चेहरा बनाकर पार्टी को शायद ही कोई फायदा मिले। सीपी जोशी खुद भी लगातार बोल रहे हैं कि वह मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल नहीं हैं। उनका काम संगठन को मजबूत करना हैं।

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए गए राजेंद्र राठौड़ लगातार सातवीं बार विधायक बने हैं। मगर उनका भी प्रभाव अपने क्षेत्र तक ही सीमित है। वह पार्टी का प्रदेश स्तर पर नेतृत्व कर सके इतना प्रभाव उनका नहीं रहा है। कोटा के सांसद ओम बिरला दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह की पहली पसंद है। हो सकता है यदि चुनाव में पार्टी को बहुमत मिले तो उन्हें मुख्यमंत्री भी बना दिया जाए। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए सीपी जोशी उनके आशीर्वाद से ही अध्यक्ष बन पाए हैं। लोकसभा अध्यक्ष के संवैधानिक पद पर होने के कारण ओम बिरला खुलकर पार्टी की राजनीति नहीं कर सकते हैं। ना ही वह पार्टी पदाधिकारी बन सकते हैं।

जाट नेता सतीश पूनिया के रूखे व्यवहार व वसुंधरा राजे से सीधे टकराव के चलते ही उन्हें पद से हटाया गया था। ऐसे में उनकी भूमिका सीमित ही रखी जाएगी। केंद्र सरकार में राज्य मंत्री व बीकानेर के सांसद अर्जुन राम मेघवाल अपने विवादास्पद व्यक्तित्व के चलते सर्वमान्य नेता के रूप में स्वीकार नहीं किए जा सकते हैं। उनके पुत्र से जुड़े विवादों के चलते पिछले दिनों उन्हें बचाव की मुद्रा में आना पड़ा था। बीकानेर के दिग्गज नेता देवी सिंह भाटी से अनबन के चलते ही उनका पुत्र जिला परिषद का चुनाव हार गया था। भाजपा के राज्यसभा सदस्य डॉ किरोड़ी लाल मीणा जुझारू छवि के नेता है तथा आए दिन जनआन्दोलन करते रहते हैं। मगर बढ़ती उम्र व विवादो में रहने के चलते पिछले विधानसभा चुनाव में उनका समर्थक एक भी प्रत्याशी विधानसभा चुनाव में नहीं जीत पाया था। उनकी स्वयं की दौसा संसदीय सीट पर भी उनकी विरोधी रही जसकौर मीणा को प्रत्याशी बनाया गया था।

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुलकर फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं। पिछले दिनों सचिन पायलट के अनशन के दौरान पार्टी आलाकमान ने स्पष्ट रूप से उनके ही नेतृत्व में अगला चुनाव लड़े जाने की घोषणा कर दी थी। उसके बाद से गहलोत विपक्ष सहित पायलट पर भी आक्रामक रूख अपनाए हुए हैं। अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की चुनाव की कमान पूरी तरह अशोक गहलोत के हाथ में रहेगी। वहीं भाजपा को मजबूरी में बिना चेहरे के ही चुनाव मैदान में उतरना पड़ेगा। उस पर वसुंधरा की उपेक्षा भी भाजपा को भारी पड़ सकती है।

कर्नाटक चुनाव में टिकट काटने पर बहुत से भाजपा के वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़ कर भाजपा को तगड़ा झटका दिया है। राजस्थान में भी यदि वसुंधरा राजे व उनके समर्थकों की उपेक्षा की गई वही स्थिति हो सकती है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राजस्थान में भाजपा के लिए बड़ा संकट बनी हुई है। पार्टी उनकी जितनी उपेक्षा करेगी उतना ही अधिक भाजपा को चुनाव में नुकसान उठाना पड़ेगा। प्रदेश की राजनीति में आज भी वसुंधरा राजे समर्थकों का एक बड़ा वर्ग है जो वसुंधरा राजे की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। कुल मिलाकर भाजपा के पास प्रदेश में ऐसा कोई सर्वमान्य चेहरा नहीं है जिसके नाम व नेतृत्व में सभी नेता एकजुट होकर चुनाव लड़ सकें। यही भाजपा की सबसे कमजोर कड़ी साबित होगी।

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)