अजय कुमार
आम चुनाव से पूर्व उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष अप्रैल में राज्यसभा की भी 10 सीटों पर और मई में विधान परिषद की 13 सीटों पर चुनाव होगा। इसके अलावा दो विधान सभा सीटों पर भी मतदान होना है.इसमें से लखनऊ पूर्वी क सीट भाजपा विधायक गोपाल जी टंडन की हाल ही में मृत्यु के बाद रिक्त हुई है,वहीं दूसरी सोनभद्र की दुद्धी विधान सभा क्षेत्र के बीजेपी विधायक रामदुलार को रेप के मामले में 25 वर्ष की सजा सुनाये जाने के बाद रिक्त हुई है,माना जा रहा है कि लखनऊ पूर्वी और दुद्धी सी पर अगले महीने जनवरी में चुनाव हो सकते हैं. ब पार्टी के एक उच्च पदस्थ सूत्र का कहना है कि अगले पांच महीने के भीतर विधान परिषद की 13, राज्यसभा की 10 और लोकसभा की 80 सीटों पर चुनाव होना है. इन चुनावों में पार्टी नए नेतृत्व को मौका देने की की रणनीति पर काम कर रही है।जिनके जरिये पार्टी प्रदेश में अगड़े, पिछड़े, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग में अपनी नई लीडरशिप भी तैयार करेगी। पार्टी जिन्हें फिर से विधान परिषद, लोकसभा या राज्यसभा जाने का मौका नहीं देगी, उन्हें भी संगठन से जुड़ी कोई न कोई जिम्मेदारी दी जाएगी। जातीय समीकरण साधते हुए इन सीटों पर नए चेहरों को मौका दिया जाएगा।इसके अलावा इसमें महिला और युवाओं की संख्या बढ़ाई जाएगी। टिकट पाने वालों में पंचायतीराज और नगरीय निकाय संस्थाओं के जनप्रतिनिधि, सहकारी संस्थाओं में चुने हुए प्रतिनिधि, पार्टी के पूर्व व वर्तमान पदाधिकारी भी शामिल होंगे।
बहरहाल, आम चुनाव तो अगले वर्ष के मध्य से कुछ पूर्व होना है,परंतु इससे पूर्व बीजेपी को कुछ और चुनावों का भी सामना करना है. कुछ दिनों के भीतर सबसे पहले पूर्व लखनऊ पूर्व विधान सभा सीट पर चुनाव होना है. यह सीट बीजेपी विधायक गोपाल जी टंडन की मौत के बाद खाली हुई है.आम चुनाव से पूर्व इस सीट को जीतने के लिए बीजेपी ने पूरी ताकत लगा दी है.वह नहीं चाहती है कि यह सीट उसके साथ से निकल जाये.यदि यहां बीजेपी हार गई तो इसका गलत मैसेज आम चुनाव में भी जायेगा. इसी के साथ कुछ महीनोें के भीतर यूपी में राज्यसभा और विधान परिषद की कुछ रिक्त सीटों के लिए भी चुनावी बिसात सजेगी.बता दें कि राज्यसभा में उत्तर प्रदेश के कोटे की 10 सीटों का कार्यकाल आम चुनाव से पहले 2 अप्रैल, 2024 को खत्म हो जायेगा. वहीं, विधान परिषद में भी विधायक कोटे की 13 सीटें 5 मई को खाली हो जाएंगी. इसलिए, लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने के साथ बीजेपी एवं अन्य दलों को इन सीटों का गुणा-भाग भी दुरूस्त करना पड़ेगा. यूपी कोटे की राज्यसभा की जो 10 सीटें खाली हो रही हैं, उसमें फिलहाल 9 सीटों पर भाजपा का कब्जा हैं. सपा से एक मात्र सीट जया बच्चन की खाली होगी. चुनाव आयोग अगले वर्ष मार्च में इसके लिए चुनाव कार्यक्रम घोषित कर सकता है. वहीं, विधान परिषद में खाली हो रही 13 सीटों में 10 भाजपा, एक उसके सहयोगी अपना दल और 1-1 सपा और बसपा के पास है. 5 मई के पहले इन सीटों पर भी चुनाव प्रस्तावित है.
बात राज्य सभा की जो दस सीटें रिक्त हो रही हैं उसके बारे में की जायें तो इसमें से एक सीट पर मार्च 2018 को हुए राज्यसभा चुनाव में सपा ने जया बच्चन को मैदान में उतारा था और वह चुनाव जीत गई थीं.वहीं एक अन्य सीट पर 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले मायावती से दोस्ती का हाथ बढ़ाने की कोशिश में लगी सपा ने बसपा उम्मीदवार भीमराव आंबेडकर को समर्थन दिया था. हालांकि, क्रॉस वोटिंग व संख्या गणित में भाजपा भारी पड़ी और उसने अपने 9 उम्मीदवार जिता लिए थे. सपा से जया बच्चन तो चुनाव जीत गईं, लेकिन बसपा से भीमराव हार गए थे. 2022 के चुनाव के बाद विधानसभा के बदले गणित के चलते इस बार भाजपा के लिए सभी सीटों को बचा पाना मुश्किल होगा, जबकि सपा के पास राज्यसभा में संख्या बढ़ाने का मौका होगा.
बता दें विधानसभा की मौजूदा सदस्य संख्या के हिसाब से राज्यसभा से एक प्रत्याशी जिताने के लिए 37 वोट की जरूरत होगी. सपा के पास 109 और रालोद के पास 9 विधायक हैं. ऐसे में 118 विधायकों के साथ सपा कम से कम तीन सीटें जीतने की स्थिति में होगी. सत्तारूढ़ गठबंधन के पास कुल 279 (भाजपा-254, अपना दल (एस)-13, निषाद पार्टी-6, सुभासपा-6) विधायक हैं। ऐसे में 7 सीटों पर उसकी जीत लगभग तय है. इसके अलावा कांग्रेस के पास 2, जनसत्ता दल के पास 2 व बसपा के पास एक विधायक है.जनसत्ता दल का समर्थन आम तौर पर भाजपा को रहता है। पिछले विधान परिषद चुनाव में कांग्रेस व बसपा ने किसी भी दल के प्रत्याशी का समर्थन नहीं किया था.हालांकि, लोकसभा चुनाव के लिए पक्ष और विपक्ष दोनों ओर नए दोस्तों को जोड़ने-तोड़ने की कोशिशें चल रही हैं.ऐसे में चुनाव के समय तक तक दोस्ती व निष्ठा के टिकने-डिगने के आधार पर संख्या व समीकरण आगे-पीछे हो सकता है.
गौरतलब हो,उत्तर प्रदेश विधान परिषद में इस समय कांग्रेस का कोई भी सदस्य नहीं हैं.ऐसा पहली बार हुआ है.पिछले साल जुलाई में कांग्रेस पहली बार यूपी के विधान परिषद में शून्य पर पहुंच गई थी.कांग्रेस की स्थिति में फिलहाल आगे भी सुधार होते नहीं दिख रहा है. यही स्थिति इस बार मई में विधान परिषद में बसपा की भी हो सकती है.वह भी शून्य पर पहुंच जाये तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा. उसके पास केवल एक विधायक है और इस आधार पर उसका उम्मीदवार पर्चा भी नहीं भर सकता, क्योंकि नामांकन के लिए भी 10 प्रस्तावक की जरूरत होती है. विधानसभा के मौजूदा गणित के हिसाब से विधान परिषद में एक प्रत्याशी जिताने के लिए 29 विधायक की जरूरत पड़ेगी. अगर सत्तापक्ष और विपक्ष अपने मौजूदा सभी सहयोगियों को चुनाव होने के समय तक साथ रखने में सफल रहते हैं तो भाजपा गठबंधन कम से कम 9 और सपा-रालोद गठबंधन 4 सीटें जीतने की स्थिति में होगा. इसका एक बड़ा फायदा सपा के लिए यह होगा कि एक बार फिर वह विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की सीट की दावेदार हो जाएगी. परिषद में अभी उसके 9 सदस्य हैं और नेता प्रतिपक्ष के लिए जरूरी 1/10 सदस्य के मानक से वह एक पीछे है. 5 मई को खाली हो रही सीटों के हिसाब से सपा की सदस्य संख्या घटकर 8 रह जाएगी. सपा के पास अपने 109 विधायक हैं.ऐसे में कम से कम 3 सीट वह अपने दम पर भी जीतने की स्थिति में है. लिहाजा, परिषद में उसका दहाई में जाना तय है और उसे नेता प्रतिपक्ष का पद वापस मिल जाएगा।
भाजपा के जिन राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो रहा है उसमें अनिल अग्रवाल, अशोक वाजपेयी, अनिल जैन, कांता कर्दम, सकलदीप राजभर, जीवीएल नरसिम्हा राव, विजय पाल तोमर, सुधांश त्रिवेदी, हरनाथ सिंह यादव और सपा की जया बच्चन शामिल हैं. इसी प्रकार विधान परिषद में जिन नेताओं का कार्यकाल खत्म होने वाला है उसमें भाजपा के यशवंत सिंह, विजय बहादुर पाठक, विद्या सागर सोनकर, सरोजनी अग्रवाल, अशोक कटारिया, अशोक धवन, बुक्कल नवाब, महेंद्र कुमार सिंह, मोहसिन रजा, निर्मला पासवान शामिल हैं.वही अपना दल (एस) के आशीष पटेल,सपा के नरेश चंद्र उत्तम,बसपा के भीमराव आंबेडकर शामिल हैं.