नीति गोपेंद्र भट्ट
नई दिल्ली। गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के सम्बन्ध में किए गए एग्जिट पोल्स केपूर्वानुमान के अनुरूप गुजरात विधानसभा के चुनाव परिणाम में गुरुवार को भाजपा का कमल प्रचण्ड रुप मेंखिला है और हिमाचल प्रदेश में मतदाताओं से हाथ को मिली मज़बूती से कांग्रेस की भी पाँच साल बाद पुनःसत्ता में वापसी हुई है।इस प्रकार भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के बावजूद अब देश के तीन प्रदेशों मेंकांग्रेस की सरकारें हों जायेंगी जबकि भाजपा को एक और प्रदेश में सत्ता से बाहर होना पड़ा है ।
आम आदमी पार्टी (आप) ने गुजरात में विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय बना वोटों का विभाजन कियालेकिन तेरह प्रतिशत वोट लेकर राष्ट्रीय पार्टी का तमगा अवश्य हासिल कर लिया है लेकिन दूसरी ओरगुजरात में कांग्रेस को पूरी तरह जमिंदोंज करने और भाजपा को एक नया इतिहास रचने में अवश्य मदद कीहै।
भाजपा द्वारा गुजरात में अब तक के सभी चुनाव परिणामों के रिकार्डों को तोड़ते हुए रचे गए नए इतिहास सेप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय गृह मन्त्री अमित शाह बहुत गदगद हैं। नई दिल्ली में दीन दयाल उपाध्यायमार्ग पर स्थित भाजपा के राष्ट्रीय पार्टी मुख्यालय पर गुरुवार शाम को आयोजित विजय समारोह में इसकीस्पष्ट झलक दिखाई दी।
इधर कांग्रेस हलकों में भी हिमाचल प्रदेश में पार्टी को मिली सफलता पर खुशी देखी गई तथा अपना 77 वाँजन्म दिवस मनाने राजस्थान के रणथम्भोर बाघ अभयारण्य पहुँची यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी औरहिमाचल में कई रेलियाँ कर सक्रिय रहने वाली कांग्रेस महामन्त्री प्रियंका गाँधी के साथ राजस्थान में इन दिनोंभारत जोड़ों यात्रा निकाल रहें राहुल गाँधी ने गहरी खुशी ज़ाहिर की हैं।
गुजरात और हिमाचल में रहा राजस्थान का कनेक्शन
पिछलें चुनावों की तरह इस बार भी गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में राजस्थान कागहरा कनेक्शन रहा। भाजपा की ओर से गुजरात में केन्द्रीय मन्त्री और राजस्थान से राज्यसभा सांसद भूपेन्द्रयादव चुनाव प्रभारी थे,वहीं कांग्रेस की ओर से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मुख्य चुनावपर्यवेक्षक तथा पूर्व मन्त्री डॉ. रघु शर्मा को गुजरात में चुनाव प्रभारी बनाया गया था।
इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश में इस बार कांग्रेस को मिली विजय का श्रेय राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पुरानी पेन्शन योजना (ओपीएस) को दिया जा रहा है। कांग्रेस द्वारा अपने चुनाव घोषणा पत्र मेंहिमाचल के सेवानिवृत सरकारी कर्मचारियों को ओपीएस का लाभ देने की घोषणा का वहाँ के तीन लाखसरकारी कर्मचारियों के परिवार से जुड़े मतदाताओं पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने कांग्रेस के पक्ष में भारीमतदान किया। यहाँ विधानसभा चुनावों में भी चुनाव प्रचार के लिए मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत और पूर्वमुख्यमंत्री सचिन पायलट कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी,छत्तीसगढ़ के मुख्य मंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश मेंकांग्रेस के प्रभारी राजीव शुक्ला तथा हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा आदि वरिष्ठ नेताओं केसाथ बहुत सक्रिय रहें।
कांग्रेस पार्टी हिमाचल में भाजपा के ओपरेशन लोटस के डर से जीतें हुए कांग्रेस विधायकों को नई सरकार केगठन तक राजस्थान लाने का विचार भी कर रहीं है।
चुनाव परिणामों का आत्म विश्लेषण
सभी पार्टियाँ हालिया चुनाव परिणामों पर अपने-अपने ढंग से आत्म विश्लेषण करने में जुट गई हैं।
गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के साथ ही देश के पांच राज्यों की छह विधानसभा सीटों परहुए उपचुनाव के नतीजों में राजस्थान की सरदारशहर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के दिग्गज ब्राह्मण नेतादिवंगत मास्टर भँवर लाल शर्मा के पुत्र अनिल कुमार शर्मा की विजय से एक बार फिर मुख्यमंत्री अशोकगहलोत की साख और धाक जमी है। उनके शासन काल में पिछलें चार वर्षों में हुए उप-चुनावों में राजसमन्द कोछोड़ कांग्रेस ने हर जगह भाजपा को पराजित किया हैं।
उधर उत्तर प्रदेश में सपा के दिग्गज नेता पूर्व केंद्रीय रक्षा मन्त्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंहयादव के निधन से हुए उपचुनाव में उनके पुत्र और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव नेमैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा उम्मीदवार के रूप में प्रचंड जीत हासिल की है।
उप चुनाव वाले पांच राज्यों में कुढ़नी (बिहार) से भाजपा,पदमपुर(ओडिशा) से बीजद ,सरदाशहर (राजस्थान) से कांग्रेस,रामपुर (यूपी) से भाजपा, खतौली (यूपी) से रालोद और भानुप्रतापपुर (छत्तीसगढ़) से कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव जीतें हैं।
इधर आप ने देश की राजधानी दिल्ली में दिल्ली नगर निगम के चुनावों में भाजपा से एमसीडी में उनकी निरन्तरपन्द्रह वर्षों की सत्ता को छीन कर देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को पूर्ण रूप से अपने नाम कर लिया है।वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा के आम चुनाव और इससे पूर्व कुछ और प्रदेशों में वाले विधानसभा चुनावों में यहसभी राजनीतिक दलों के लिए चिन्ता का एक बड़ा सबब बन गया हैं।