तिकड़ी के तिकड़म से दलदल में कराहता भाजपाई कमल!

BJP's lotus groaning in the swamp due to the tricks of the trio!

सीता राम शर्मा ” चेतन “

पूर्णतः योग्य के अभाव में अयोग्य का साथ देना बड़ी भूल और अक्षम्य अपराध होता है इसलिए चुनाव से पूर्व मोदी सरकार की कई बड़ी त्रुटियों और अमान्य नीतियों एंव कृत्यों का उतना प्रबल विरोध या विश्लेषण विवेकहीनता और अपने राष्ट्रीय चिंतन और कर्तव्य से विमुखता का पर्याय होता पर अब जब नई सरकार का गठन हो चुका है, मुझे लगता है मोदी सरकार और पिछले एक दशक में तेजी से बदलती भाजपाई नीति पर बहुत स्पष्टता से लोक चिंतन और विमर्श होना चाहिए । हालाकि संभव है कि हाशिए का लेखक होने के नाते मेरे इस चिंतन और विमर्श का महत्व देश के बुद्धिजीवी वर्ग और विशिष्ट राजनीतिज्ञों, आलोचकों के लिए पूर्ण रूपेण निष्प्रभावी और महत्वहीन हो, पर यह बात मैं बहुत जिम्मेवारी और साफगोई के साथ गंभीरतापूर्वक कहता हूं कि वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों और उसके शत-प्रतिशत सत्य का मेरा यह अनुभव चिंतन और विमर्श भारत के एक सौ चालीस करोड़ से ज्यादा आम भारतीय नागरिकों के लिए बहुत ज्यादा महत्व का है ।

इस बात में ना कोई संदेह है और ना ही संदेह की कोई गुंजाइश है कि 2014 में राष्ट्रीय सत्ता में हुआ परिवर्तन और देश को मोदी का नेतृत्व मिलना एक अत्यंत क्रांतिकारी, सौभाग्यशाली घटनाक्रम था । मोदी के नेतृत्व में पिछले दस वर्षों में शांति, सुरक्षा, समृद्धि और विकास के कई महत्वपूर्ण काम हुए हैं और जारी भी हैं । राष्ट्रीय स्वच्छता, संस्कार, समृद्धि से लेकर सीमा सुरक्षा तक के लिए इस दौरान कई महत्वपूर्ण काम किए गए । राष्ट्र प्रथम और सर्वोच्च के भाव का विस्तार आम जनमानस से लेकर वैश्विक भारतीय मानस तक में हुआ है । निःसंदेह मोदी सरकार के एक दशक में राष्ट्र ने अपने वास्तविक स्वरूप और विकास पथ की ना सिर्फ सफलतापूर्वक पहचान की है बल्कि अपनी कई कमियों कमजोरियों से मुक्ति का प्रयास करते हुए अपने स्वर्णिम भविष्य की यात्रा भी प्रारंभ कर दी है ।

अब सवाल यह उठता है कि यदि मोदी सरकार के कार्यकाल में इतना कुछ बेहतर हुआ है तो फिर ऐसे नकारात्मक आलेख शीर्षक के साथ इस सरकार को लेकर चिंता और विरोध का कारण क्या और क्यों ?

बिना किसी दुराव छिपाव संकोच और भय के इसका सपाट उत्तर दूं तो वह यह है कि देशहित में कई बड़े और महत्वपूर्ण काम करने के बावजूद किसी भारतीय नागरिक, चिंतक और लेखक के मन-मस्तिष्क में यदि आज सच्चे मायने में सबसे बड़ी चिंता या चिंतन का कोई विषय होना चाहिए तो वह वर्तमान मोदी सरकार और भाजपा की वर्तमान स्थिति ही हो सकता है । उक्त संदर्भ में विषयांतर या अन्यथा विस्तार का बिना कोई प्रयास किए अत्यंत संक्षिप्त में जो बात सोची समझी और कही जा सकती है वो निम्नलिखित है –
एक – क्या 2014 में हुए सत्ता परिवर्तन के मूल कारण भ्रष्टाचार मुक्त सत्ता और शासन में कोई वास्तविक बदलाव हुआ ? इसका जवाब बहुत स्पष्ट है – नहीं । पहले और अब की सरकार में यदि भ्रष्टाचार को लेकर कोई अंतर आया है तो वह यह है कि पहले की सरकार भ्रष्टाचार करती थी षड्यंत्र, गुप्तता और लापरवाही के साथ और आज की सरकार भ्रष्टाचार करती है पाखंडी पारदर्शिता और तकनीकी चतुराई के साथ । पहले विकास और सुधार के कई महत्वपूर्ण काम सिर्फ कागजों पर ही निपटा दिए जाते थे और आज विकास के काम जरूरत से ज्यादा शोर मचाकर, दिखाकर जमीन पर उतारे जा रहे हैं पर चतुराई भरी पापी जादूगरी के साथ । पहले भ्रष्टाचार का माध्यम बिना काम हुए भी होता था और आज भ्रष्टाचार का माध्यम ज्यादा काम है । अत्यंत संक्षिप्त में भाजपा के भ्रष्टाचार को समझना हो तो पिछली एक दशक में बढ़ी उसकी संपत्ति और आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन करना होगा । पिछले एक दशक में बढ़ते राजनीतिक दिखावे, प्रदर्शन, तामझाम और प्रचार प्रसार के प्रबंधन के खर्चों का आकलन मूल्यांकन यह सोचने समझने के लिए काफी है कि आखिर इन माध्यमों पर खर्च हो रहा अकूत धन कहां से आ रहा है ? क्या भाजपाई नेता अपने दल और संगठन के विकास विस्तार के लिए अपनी जमीन जायदाद बेच रहे हैं या फिर इसके हाथ में धन उगलने वाला कोई जादुई पिटारा आ गया है ! स्पष्ट है कि ऐसा कोई चमत्कार नहीं हुआ । सही-गलत, नीति-अनीति, प्रचार-प्रसार, खरीद-फरोख्त पर बेतहाशा खर्च होता सारा धन इसके पास जहां से और जिनसे आ रहा है वह सत्ता के प्रभाव और दुरुपयोग का ही नतीजा है, जिसे यह वैधानिक तरीके से चंदा के रुप में लेने की नैतिकता बताएं दिखाएं या फिर दानवीरों की गुप्त कृपा कहें, सब झूठ ही होगा क्योंकि वास्तव में यह है भ्रष्टाचार ही । भ्रष्टाचार मुक्ति को लेकर भाजपाई सरकार चाहे जितने दावे करे परिणाम आज भी संतोषजनक और मान्य नहीं हैं । पिछले एक दशक में ना सिर्फ राजनीति में धन बल का प्रभाव ज्यादा बढ़ा है बल्कि देश की संसद में अपराधी सांसदों की संख्या भी बढ़ गई है !

दो – शिक्षा, स्वास्थ्य और शासन जैसे मूलभूत क्षेत्रों की स्थिति । पिछले एक दशक में एक तरफ जहां शिक्षा के व्यवसायीकरण में तेजी से वृद्धि हुई है वहीं सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाई के स्तर में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ है । केंद्र सरकार द्वारा संचालित विद्यालयों की वास्तविकता देख जान और समझ कर तो पैरों तले जमीन खिसक जाती है । नई शिक्षा नीति बना कर देश में शैक्षणिक क्रांति और विकास का पाखंडी शोर मचाती केंद्र सरकार की शैक्षणिक अव्यवस्था तथा उसमें अफसरशाही और भ्रष्टाचार का आलम देख कर तो ऐसा महसूस होता है कि यह सरकार सिर्फ सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्ति का शोर मचाकर बेवजह अपनी पीठ थपथपाए जा रही है । सच्चाई भयावह है । शैक्षणिक विकास के लिए लाखों करोड़ रुपए का बजट देख कर खुश होते करोड़ों भारतीयों को यदि केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों का सच दिखाया बताया जाए तो सच मानिए उनका सीना अपनी सरकार पर चौड़ा होने की बजाय दुख पीड़ा और आक्रोश से फट पड़ेगा । मैं इसके एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थान केंद्रीय विद्यालय का साक्षी रहा हूं । जिसके कई शिक्षक बताते हैं कि सर, केंद्रीय विद्यालय पठन-पाठन का केंद्र ना होकर सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के केंद्र बन चुके हैं ! विद्यालय प्राचार्य अब विद्यालय में पठन-पाठन के प्रबंधक ना होकर विद्यालय के वित्त मंत्री की भूमिका में कार्य कर रहे हैं ! शिक्षकों की शिकायत सुनने वाला अब कोई नहीं है क्योंकि नीचे से ऊपर तक आर्थिक भ्रष्टाचार का ऐसा गठजोड़ है, जो अनीति को नीति घोषित कर चुका है ! यह जानकर आश्चर्य होता है कि सरकारी नियम और फरमान के अनुसार देश भर के सरकारी शैक्षणिक संस्थान अपनी जरूरत का हर समान जेम नामक पोर्टल से ही खरीदने को बाध्य हैं जहां कई शैक्षणिक सामग्री की कीमत तो नजदीकी बाजार मूल्य से बहुत अधिक होती है ! शिक्षक खुद इस सरकारी व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाते हैं ! पर सरकार से पूछे तो कौन ? स्वास्थ्य व्यवस्था की बात करें तो आयुष्मान भारत योजना लाने का ढोल पीटती मोदी सरकार के आने के बाद सरकारी स्वास्थ्य बीमा की प्रीमियम राशि में तीन गुणा से अधिक की वृद्धि कर दी गई थी ! वहीं जीवन बीमा की बात करें तो प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना लाकर सबको महज 436 रुपए में दो लाख का जीवन बीमा उपलब्ध कराने का दंभ भरने वाली इस सरकार के आने के बाद जीवन बीमा की प्रीमियम राशि में भी ना सिर्फ बढ़ोतरी की गई थी बल्कि बाद में इस सरकार द्वारा जीवन बीमा पाॅलिसि पर जीएसटी भी लागू कर दिया गया था, जो जीवन मूल्यों को लेकर सचेत बीमा धारकों के लिए कष्टदायक स्थिति है । रही बात शासन व्यवस्था की तो डिजिटल इंडिया का शोर मचाती इस सरकार के तमाम दावों के बाद आज भी जन सरोकार से संबंधित सरकारी विभागों की स्थिति क्या है ? यह किसी से छिपी हुई नहीं है । जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र हो, ड्राइविंग लाइसेंस हो, जमीन से संबंधित कार्य हो या फिर न्याय व्यवस्था से संबंधित कार्य, वास्तविकता वही जानता है, जो इनके लिए प्रयास करता है !

तीन – अंतिम बात एक राजनीतिक दल के रूप में भाजपा को लेकर, जो कांग्रेस सहित अन्य क्षेत्रीय दलों पर परिवारवाद के एकाधिकार का आरोप खूब लगाती है पर अब खुद एक तिकड़ी के तिकड़म का शिकार होती दिखाई दे रही है ! केंद्र में भाजपाई सरकार के बनने के बाद जिस तरह मोदी-शाह और नड्डा की तिकड़ी ने भाजपा पर एकाधिकार कायम कर इसे अपने तिकड़म से हांकना शुरु कर दिया है, वह भाजपा के साथ पूरे देश के लिए चिंतन और चिंता का मुख्य विषय होना चाहिए । बात चाहे मोदी के दूसरे कार्यकाल में राजनाथ सिंह को गृह मंत्री पद से हटाने की हो, जिसे सत्ता शीर्ष पर दूसरा महत्वपूर्ण पद माना जाता है, चाहे बात 2018 विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान को सत्ता से रोकने के लिए किये गए षड्यंत्र के साथ पिछले वर्ष की शानदार जीत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाने की हो या फिर बात अब देश भर में आगामी भावी प्रधानमंत्री के रूप में अपनी जगह बना चुके उत्तर प्रदेश के अत्यंत लोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को हटाने के लिए किए गए और चलते अक्षम्य षड्यंत्र की हो, भाजपा के भीतर की तिकड़ी के द्वारा भीतरघात की यह स्थिति चिंताजनक है । हालाकि अच्छी बात यह है कि योगी को लेकर किया गया शाही षड्यंत्र सही समय पर उजागर हो चुका है । देश भर के न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया के साथ हर चौक चौराहों और मानस मुख पर इस बात को लेकर चर्चा, चिंता और आक्रोश के भाव बहुत स्पष्टता से दिखाई दे रहे हैं । अब तो यह लिखने कहने में भी रत्तीभर संकोच नहीं होता कि यदि शाह के अंध प्रेम से मोदी समय रहते नहीं उबरे तो उनकी कीर्ति को कलंक में बदलने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगेगा ।

खैर, यह देश किसी एक व्यक्ति के कुछ अच्छे प्रयास और काम के लिए सदा-सदा के लिए उसका अंध प्रशंसक या दास नहीं हो सकता । ऐसा होता तो आज के अधिकांश भारतीय गांधी की कटु आलोचना और भर्त्सना नहीं करते । इतिहास और जनमानस किसी भी व्यक्ति और उसके व्यक्तित्व का समग्र विश्लेषण देर-सवेर करता अवश्य है । जननेता या सत्ता का शासक रहते हुए कुछ अच्छे काम करना तो हर जननेता और शासक का कर्तव्य होता है, जिसका निर्वहन मोदी के पहले के शासकों ने उतना नहीं किया जितना मोदी ने अब तक करने का प्रयास किया है । दुर्भाग्य से लोक अदालत में अब उनका भी व्यक्तित्व और कृतित्व संदेह के दायरे में जाता दिखाई देता है, जिससे उन्हें समय रहते बाहर निकलना चाहिए क्योंकि ये उनसे ज्यादा देश और दल के लिए जरुरी है । अंत में एक अत्यंत जरुरी बात भाजपा के लिए तो उसे चाहिए कि वह अब अपना अध्यक्ष मोदी-शाह और नड्डा की तिकड़ी की पसंद से नहीं, अपनी सामुहिक पसंद से चुने और इस बात का विशेष ध्यान रखते हुए चुने कि उसकी पसंद इस तिकड़ी के तिकड़म से सर्वथा मुक्त और स्वतंत्र हो क्योंकि वर्तमान हालात में अब यह तिकड़ी भी फूट डालो शासन करो की अंग्रेज नीति पर है, जो इसने उत्तर प्रदेश में योगी के विरुद्ध जारी कर रखी है और बहुत संभव है कि ऐसा ही प्रयास ये आगामी लोकसभा चुनाव के पूर्व भी करे । बेहतर होगा कि भाजपा के भीतर आत्मघात और अंतर्कलह का एक सरल और स्थाई समाधान त्वरित इस बात पर सहमति के साथ कर लिया जाए कि राष्ट्रीय जनमानस और उसकी भावना के अनुरूप मोदी के बाद उसका सत्ता नेतृत्व योगी के ही हाथ में होगा शाह के हाथ में तो कदापि नहीं । साथ ही भाजपा को चाहिए कि अगले चुनाव तक के लिए या तो उत्तर प्रदेश में अब किसी उप मुख्यमंत्री की जरूरत को ही खत्म कर दिया जाए या फिर रखना ही हो तो क्यों नहीं एक उप प्रधान मंत्री के रूप में योगी की भी ताजपोशी कर दी जाए । क्या होगा ? यह तो भविष्य की बात है पर वर्तमान समय की हकीकत तो यही है कि एक तिकड़ी के तिकड़म के दलदल में भाजपाई कमल कराह रहा है !