समान नागरिक संहिता के लिए बीजेपी का नया प्लान, संसद से नहीं विधानसभा से होगा लागू

BJP's new plan for Uniform Civil Code, will be implemented from Vidhan Sabha, not from Parliament

अजय कुमार

बीजेपी ने हमेशा से देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने की वकालत की है, और यह मुद्दा जनसंघ के समय से ही पार्टी के एजेंडे का हिस्सा रहा है। जब से भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई है, तब से इस मुद्दे पर पार्टी ने लगातार जोर दिया है। बीजेपी ने राम मंदिर, अनुच्छेद 370 को हटाने और समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों को अपने राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बनाया था। राम मंदिर का सपना तो साकार हो चुका है, अनुच्छेद 370 को खत्म किया जा चुका है, अब सिर्फ समान नागरिक संहिता को लागू करने का काम बाकी है, जिसे बीजेपी और मोदी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट के जरिए अयोध्या में राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ हुआ, और मोदी सरकार ने संसद के जरिए अनुच्छेद 370 को खत्म किया। साथ ही, संसद के जरिए “एक देश, एक चुनाव” की दिशा में भी कदम बढ़ाए गए हैं। अब, समान नागरिक संहिता को लागू करने की प्रक्रिया को लेकर बीजेपी ने एक नई रणनीति बनाई है। बीजेपी इस मुद्दे को संसद के बजाय राज्य विधानसभा के माध्यम से आगे बढ़ाने की योजना पर काम कर रही है। इस बारे में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में अपने बयान के माध्यम से संकेत दिए थे।

अमित शाह ने राज्यसभा में संविधान पर चर्चा करते हुए समान नागरिक संहिता के महत्व को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 44 के तहत हमारा संविधान समान नागरिक संहिता की बात करता है, लेकिन यह अभी तक देश में लागू नहीं हो पाया है। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस को दोषी ठहराते हुए कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू किया था, और कांग्रेस ने तुष्टिकरण की राजनीति शुरू कर दी थी। अमित शाह ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की बात की है, लेकिन कांग्रेस ने हर बार इसे टाल दिया। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि उत्तराखंड में बीजेपी सरकार ने यूसीसी को लागू किया है और इसी मॉडल के तहत बीजेपी शासित अन्य राज्यों में भी यूसीसी को लागू किया जाएगा।

समान नागरिक संहिता का मतलब है कि देश में सभी नागरिकों के लिए एक ही कानून हो। इसका उद्देश्य विवाह, तलाक, संपत्ति के बंटवारे और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर हर नागरिक के लिए समान कानून लागू करना है। वर्तमान में, मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिम समुदाय के लोग अपने पारिवारिक मामलों का हल करते हैं, लेकिन समान नागरिक संहिता के लागू होने से सभी समुदायों के लिए एक समान कानून होगा। बीजेपी ने इस मुद्दे को जनसंघ के समय से उठाया था, और पार्टी का मानना है कि यह देश की धर्मनिरपेक्षता और समानता को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मुद्दे पर कई बार अपनी राय दी है। उन्होंने संविधान पर चर्चा के दौरान सेकुलर सिविल कोड के संवैधानिक महत्व की बात की और संकेत दिए कि सरकार समान नागरिक संहिता लाने की दिशा में काम कर रही है। उन्होंने 15 अगस्त को लाल किले के प्रचीर से भी यह कहा था कि जिन कानूनों से देश को धर्म के आधार पर बांटा जाता है, उन्हें समाप्त किया जाना चाहिए। उनके अनुसार, देश को एक सेकुलर सिविल कोड की आवश्यकता है, और गलत कानूनों का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है।

इस संदर्भ में अमित शाह ने उत्तराखंड की तर्ज पर अन्य बीजेपी शासित राज्यों में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात की। उन्होंने स्पष्ट किया कि बीजेपी शासित राज्यों में यूसीसी को लागू करने के लिए विधानसभा के रास्ते पर आगे बढ़ा जाएगा। इस रणनीति के तहत, बीजेपी पहले उत्तराखंड में यूसीसी को लागू कर चुकी है, और अब दूसरे बीजेपी शासित राज्यों में इसे लागू करने की योजना बनाई जा रही है। उत्तराखंड में बीजेपी ने विधानसभा चुनावों के दौरान यूसीसी को लागू करने का वादा किया था, और सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने इस पर अमल किया। उत्तराखंड में पांच सदस्यीय कमेटी बनाई गई थी, जिसने यूसीसी के लिए सिफारिशें दीं, और उसके आधार पर राज्य में समान नागरिक संहिता लागू की गई।

उत्तराखंड के बाद अब असम की बीजेपी सरकार भी समान नागरिक संहिता को लागू करने की तैयारी कर रही है। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में इस बात का ऐलान किया था। राजस्थान और गुजरात जैसी राज्य सरकारें भी यूसीसी को लागू करने के पक्ष में हैं, और उनकी योजनाओं के तहत इस दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं। इन राज्यों में बीजेपी अपने शासित क्षेत्रों में यूसीसी को लागू करने में सफल हो सकती है, और इस तरह से पार्टी देश के बड़े हिस्से में समान नागरिक संहिता को लागू करने का मॉडल पेश कर सकती है।

बीजेपी के लिए यह रणनीति महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके जरिए वह न केवल अपने शासित राज्यों में यूसीसी लागू कर सकती है, बल्कि वह अन्य विपक्षी दलों पर भी सियासी दबाव बना सकती है। यूपी, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, असम, गोवा, गुजरात, ओडिशा, त्रिपुरा, मणिपुर, महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं। इनमें से गोवा में पहले से ही यूसीसी लागू है, और उत्तराखंड में भी इसे लागू किया जा चुका है। यदि बीजेपी इन राज्यों में समान नागरिक संहिता लागू करने में सफल हो जाती है, तो यह पूरे देश के लिए एक मिसाल बन सकता है।

हालांकि, इस प्रक्रिया में कुछ चुनौतियां भी हैं। एनडीए के कई सहयोगी दल, जैसे जेडीयू और टीडीपी, इस मुद्दे पर बीजेपी के साथ नहीं हैं। इसके अलावा, बीजेपी को संसद में यूसीसी के बिल को पास करने के लिए दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, जो वर्तमान में मुश्किल प्रतीत हो रही है। मुस्लिम वोटों की सियासी मजबूरी के कारण जेडीयू और टीडीपी इस मुद्दे पर बीजेपी का समर्थन नहीं कर सकते। इसलिए, बीजेपी ने संसद के बजाय विधानसभा का रूट अपनाने का निर्णय लिया है, ताकि राज्यों में इसे लागू करने का रास्ता तैयार किया जा सके।

इस रणनीति के जरिए बीजेपी शासित राज्यों में यूसीसी को लागू करने का प्रयास करेगी, और इसके बाद अन्य राज्यों में भी इसे लागू करने के लिए दबाव डाला जाएगा। यह बीजेपी के लिए एक बड़ी राजनीतिक उपलब्धि हो सकती है, क्योंकि इससे पार्टी अपनी धर्मनिरपेक्षता और समानता के एजेंडे को साकार कर सकेगी। इसके साथ ही, बीजेपी अपने सहयोगी दलों को भी इस मुद्दे पर विश्वास में लेकर सियासी फायदे की दिशा में बढ़ सकती है।

बीजेपी की सरकारों को यह मौका मिलेगा कि वे अपने शासित राज्यों में समान नागरिक संहिता लागू करके उदाहरण प्रस्तुत कर सकें। अगर ये राज्यों में सफलतापूर्वक लागू हो जाती है, तो यह राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रभावी बदलाव का संकेत होगा, और फिर बीजेपी अन्य राज्यों को भी इसे लागू करने के लिए प्रेरित कर सकती है। इस प्रकार, समान नागरिक संहिता का मुद्दा बीजेपी के लिए न केवल एक महत्वपूर्ण राजनीतिक एजेंडा है, बल्कि यह देश की धर्मनिरपेक्षता और समानता की दिशा में एक अहम कदम भी हो सकता है।

अगर बीजेपी शासित राज्यों में यह प्रक्रिया सफल हो जाती है, तो यूसीसी को लागू करने के लिए विपक्षी दलों पर दबाव बढ़ सकता है, खासकर उन दलों पर जो मुस्लिम वोट बैंक को लेकर चिंतित रहते हैं। बीजेपी अपने शासित राज्यों को एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत कर सकती है, जिससे यह साबित हो सके कि समान नागरिक संहिता सभी समुदायों के हित में है और समाज में समानता लाने में मददगार है। इससे पार्टी अपने सहयोगी दलों और विपक्षी दलों को भी इस मुद्दे पर मजबूर कर सकती है, और फिर इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का रास्ता खोल सकती है। इस प्रकार, बीजेपी अपने शासित राज्यों के जरिए देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में प्रभावी कदम उठा सकती है, जो अंततः देश को एक समान और धर्मनिरपेक्ष समाज की ओर ले जाने में मदद करेगा।