पुस्तक समीक्षा : बोस्ना में हुए शासकीय जुल्मों की दास्तान बयां करती अनूदित काव्य पुस्तक: ख़ाक में सूरतें

रावेल पुष्प

बीसवीं सदी के बोस्ना के महान कवि मेहमेद अलीजा मक दिज़दार जो अपने संक्षिप्त उपनाम मक दिज़दार के नाम से बेहद चर्चित हुए। उनका एक मशहूर काव्य संकलन “कामेनी स्पवाॅच”, जिसका अंग्रेजी अनुवाद “स्टोन स्लीपर” के नाम से फ्रांसिस आर जोन्स ने किया था। उसी का हिंदी अनुवाद अब प्रकाशित होकर आया है और उस काव्य संकलन का नाम है- ख़ाक में सूरतें!

इस अनुवाद को अमलीजामा पहनाने का श्रमसाध्य कार्य किया है- कवि शायर और कोलकाता के कई सुरूचिपूर्ण साहित्यिक, सांस्कृतिक आयोजनों के पुरोधा तथा लगभग 20 पुस्तकों के लेखन, संपादन का कार्य कर चुके- श्री प्रमोद शाह नफी़स!

देश दुनिया की समृद्धि निश्चित ही एक तरफ़ उन लोगों की कर्ज़दार है, जिन लोगों ने बिना किसी स्वार्थ, अभिमान,भय, लालच के केवल मानवता के लिए अपने आपको होम किया, वहीं कुछ ऐसे लोग भी इतिहास में थे या फिर आज के दौर में भी देखने में आते हैं जिन लोगों ने धरती और सभ्यता, मानवता को बुरी तरह रौंदा उसे तार-तार किया और नेस्तनाबूद करने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

विश्व के इतिहास में 11वीं से 15वीं शताब्दी का कालखंड ऐसा रहा, जब शरीर या फिर हथियारों के साथ अहंकार का नशा इतना गहरा था कि उन लोगों ने अपने को ही दुनिया का भगवान मान लिया था तथा दूसरे देशों को लूटना, बर्बाद करना उनके नागरिकों को गुलाम बनाना महिलाओं से बलात्कार करना यहां तक कि उन्हें अपनी सभ्यता अपने धर्म को मानने के लिए बाध्य करना, अपना शगल बना लिया था। मक दिज़दार का देश बोस्ना भी कुछ इसी तरह के जुल्मो-सितम का शिकार हुआ, जिसमें लगभग 13 वीं से 15 वीं शताब्दी के बीच वहां के शासकों ने धर्म और राजनीति के नाम पर नागरिकों पर भयंकर जुल्म ढाए। वहां के अनेक बहादुर योद्धाओं ने भले ही सत्ता पर काबिज हुक्मरानों की वफादारी के नाम पर अपनी कई पीढ़ियां कुर्बान कर दी हों,पर उन सत्तानशीनों की क्रूर धार्मिक मान्यताओं का शिकार वे भी होते रहे।मिक दिज़दार अपने खु़शहाल बोस्ना की धरोहर, उसकी क्षमता, बहादुरी की खोज करना चाहते हैं और इसी बेचैनी, बेताबी और प्रतिरोध के लिए कब्रों में सोते उन बलिदानियों की शरण में जाते हैं, जहां कब्रों की ख़ाक में समय के साथ वे सूरतें दब गई हैं। मिक अपनी कविताओं के माध्यम से उन कब्रों पर लगे पत्थरों पर अंकित चित्र जो उन्हें आश्वासन देते हुए लगते हैं कि एक न एक दिन जरूर वे फिर उठ खड़े होंगे और बोस्ना को एक ऐसा देश बना देंगे कि जन्नत भी उससे ईर्ष्या करे।

प्रमोद शाह नफी़स ने हिंदी में अनुवाद करते हुए कवि की इसी जिजीविषा को शब्द देते हुए संकलन का बड़ा ही माकूल नाम दिया है- ख़ाक में सूरतें!

किसी भी रचना का दूसरी भाषा में अनुवाद करना तो वैसे भी पुनःसृजन ही होता है, उस पर अगर वे कविताएं हों और उस देश की हों, जिसके बारे में जानकारी ना के बराबर हो उसके अनुवाद के लिए उस देश की सभ्यता, संस्कृति और वो रचनाकाल का दौर सभी के बारे में पढ़ना और फिर आत्मसात करना बेहद श्रमसाध्य और सूझबूझ का कार्य तो है ही जिसे प्रमोद शाह नफीस ने अंजाम दिया है। उनके इस अनूदित काव्य संकलन का लोकार्पण हाल ही में जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल में बोस्निया के ही राजदूत मुहमेद चेंगिज की उपस्थिति में हुआ।

वैसे तो इस काव्य संग्रह में कुछ शीर्षकों के अंतर्गत कविताएं दर्ज की गई हैं, मसलन सड़कें कुछ बातें आदमी की, कुछ बातें जन्नत की, बातें धरती की तथा पैग़ाम, लेकिन मूल स्वर शासकों के जुल्म से मुक्ति का ही है ।कुछ काव्य पंक्तियां काबिले गौर हैं-

अपनी जंजीरों में बंधे

चांदी की कलई चढ़े

पसली के पिंजरे में कैद

चाहे कितने ताकतवर हो तुम

नहीं हो मगर

बंधुआ मजदूरों से अधिक मजबूत

शरीर में कैद नसों में बंधे तुम

देख रहे हो ख़्वाब

स्वर्ग और धरती के एक होने का

जन्नत से निकाले गए

शराब और रोटी के लिए भटकने वाले

कब होगा घर तुम्हारा

बल्कि तुम्हारा अपना वतन

इसके अलावा ये काव्य पंक्तियां –

लिली के सफेद फूल खिल रहे हैं

पहाड़ियों और घाटियों में

मानो जंगलों और खेतों में

बातें कर रहे हैं

मानो पहाड़ियों और घाटियों में

लिली का हर फूल जल रहा हो

………………………..

जो कभी गुजरे हैं यहां से

उनके निशां बता रहे हैं

किस बेरहमी से कुचला है उन्होंने

हमारी बिना पटरी की जमीन को

सफेद फूलों की तलाश में…

प्रमोद शाह नफी़स ने इसके अंग्रेजी अनुवादक फ्रांसिस आर जोन्स के प्राक्कथन को भी अनूदित किया है, जहां वे आशान्वित हैं कि- पत्थरों के नीचे सर्वोत्तम व्यक्ति सो रहे हैं, लगता है उनके जगने में अभी कुछ दिन और लगेंगे…

एक बात और- बोस्ना और हर्ज़ेगोविना के विद्वान लेखक रुस्मिर महमुतचेहाइच ने मक की कविताओं और इस पुस्तक की ऐतिहासिक, धार्मिक और आध्यात्मिक पृष्ठभूमि का जो पैना विश्लेषण किया था, उसके अनुवाद को भी इस 250 पृष्ठों की पुस्तक में समावेश किया गया है।

मक दिज़दार की काव्य पुस्तक का हिंदी अनुवाद – ख़ाक में सूरतें का पेपरबैक में शानदार प्रकाशन शैली पब्लिकेशंस, कोलकाता ने किया है और इसकी कीमत ₹400 रखी गई है।

इस विश्व प्रसिद्ध काव्य कृति का हिंदी अनुवाद उपलब्ध करा कर, उस देश की सभ्यता और संस्कृति तथा उस कालखंड में हुए शासकीय जुल्मों की दास्तान से काव्य रूप में रूबरू कराने के लिए प्रमोद शाह नफी़स को दिली मुबारकबाद तथा इस श्रमसाध्य कार्य के लिए साधुवाद!