पुस्तक समीक्षा: परंपरा, समाज और संवेदनाओं का अद्भुत ताना-बाना है “भीगते सावन”

Book Review: "Bheegte Sawan" is a wonderful weave of tradition, society and sensibilities

नृपेन्द्र अभिषेक नृप

सुरेश सौरभ वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार हैं, जिनकी लेखनी में मानवीय संवेदनाओं, समाज के ज्वलंत मुद्दों, और पारंपरिक मूल्यों का सजीव चित्रण मिलता है। उनकी कहानियाँ यथार्थ और संवेदनाओं के गहरे मेल को दर्शाती हैं। सुरेश सौरभ का नवीनतम कहानी संग्रह “भीगते सावन” साहित्यिक क्षेत्र में एक उल्लेखनीय योगदान है, जो 11 कहानियों का एक ऐसा संग्रह है, जिसमें मानवीय संवेदनाओं, जीवन के विभिन्न पहलुओं और समाज के ज्वलंत मुद्दों का अत्यंत सजीव व सशक्त चित्रण किया गया है। यह पुस्तक पाठकों को एक ही बैठक में पढ़ने के लिए प्रेरित करती है और प्रत्येक कहानी की विविधता के कारण पाठकों को बांधे रखने में सफल होती है। इसमें संकलित कहानियाँ अलग-अलग मुद्दों, परंपराओं और भावनाओं का एक ऐसा मिश्रण प्रस्तुत करती हैं, जो साहित्य प्रेमियों के लिए एक नया अनुभव प्रदान करता है।

संग्रह की पहली कहानी “एक था ठठेरा” पुरानी परंपराओं और लुप्त हो रही सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का प्रयास करती है। ठठेरा के पारंपरिक कार्य और जीवनशैली को केंद्र में रखते हुए, इस कहानी के माध्यम से लेखक ने एक खोते हुए पेशे और उसकी विरासत को संवेदनशीलता से उभारा है। यह कहानी न केवल पुरानी परंपराओं को जीवंत करती है बल्कि आधुनिक समाज के बदलाव और नई पीढ़ी के इस धरोहर के प्रति उदासीनता को भी दर्शाती है।

“भीगते सावन” संग्रह की शीर्षक कथा है, जो युवाओं की भावनाओं और संबंधों की गहराइयों को दर्शाती है। इस कहानी में एक युवती के जीवन का एक यादगार क्षण और उसके युवा मित्र के दृढ़ चरित्र को दर्शाया गया है। इस कथा में बारिश का प्रतीकात्मक रूप में प्रयोग किया गया है, जो जीवन की कठिनाइयों और भावनाओं की धारा को दर्शाता है। इस कहानी का अंत पाठकों को यह सोचने पर विवश कर देता है कि सच्चे संबंधों में कितनी सुदृढ़ता और संजीदगी होनी चाहिए।

“विश्वास लौट आया” कहानी में एक आईएएस अफसर का आंतरिक संघर्ष और सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण अपने पिता के प्रति उसके बदलते व्यवहार का वर्णन किया गया है। कहानी में गरीबी और अमीरी के अंतर के कारण उत्पन्न दूरी को दर्शाया गया है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में परिवार और मानवीय मूल्यों का महत्व किसी भी सामाजिक प्रतिष्ठा या भौतिक संपत्ति से अधिक होता है। जिस तरह से कहानी में एक आईएएस अधिकारी अपनी गलती का अहसास करता है और अपने पिता को वृद्धाश्रम से घर ले आता है, वह हर पाठक के मन में गहरी छाप छोड़ता है।

“प्रकाश चला गया” भ्रष्ट व्यवस्था और समाज में व्याप्त अव्यवस्था को उजागर करती है। इसमें एक छोटी सी घटना बढ़ते-बढ़ते इतना भयानक रूप ले लेती है कि परिवार के बड़े बेटे प्रकाश को आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाना पड़ता है। मात्र एक थप्पड़ का एक भयानक घटना में तब्दील होने को पाठक धीरे-धीरे अपने अंदर महसूस करता रहता है।

“औलाद के आँसू” वृद्ध माता-पिता की दुर्दशा और उनके प्रति औलाद की निष्ठुरता को उभारती है। आधुनिक समाज में बच्चों की व्यस्त जीवनशैली और अपने माता-पिता के प्रति लापरवाही का यह एक सजीव चित्रण है। कहानी का उद्देश्य समाज को यह संदेश देना है कि माता-पिता की सेवा और देखभाल करना, हर संतान का कर्तव्य है और उन्हें उपेक्षित करना एक गंभीर त्रुटि है।

कहानी “आतंकी” एक और गंभीर मुद्दे पर आधारित है, जो आतंकवाद और समाज पर उसके प्रभाव को दर्शाती है। इस कहानी में लेखक ने आतंकवाद के कारण परिवारों में आने वाली तबाही और पीड़ा को बेहद सजीवता से चित्रित किया है। कहानी के पात्रों के माध्यम से सुरेश सौरभ ने उन निर्दोष लोगों की पीड़ा को उजागर किया है, जो इस अंधे संघर्ष का शिकार बनते हैं।

सुरेश सौरभ का लेखन शैली में गहराई और भावनाओं का प्रभावी चित्रण उनके साहित्यिक कौशल को दर्शाता है। उनकी भाषा सरल, स्पष्ट और संप्रेषणीय है, जो आम पाठक के मन को सहजता से छू लेती है। प्रत्येक कहानी का विषय अत्यंत विविध है, जो पाठकों को एकरसता से दूर रखता है। सुरेश सौरभ के लेखन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे अपने पात्रों के माध्यम से समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों पर संवेदनशीलता और गंभीरता के साथ प्रकाश डालते हैं।

“भीगते सावन” कहानी संग्रह का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सुरेश सौरभ ने अपनी कहानियों में न केवल मानवीय रिश्तों की जटिलताओं को उभारा है, बल्कि समाज में व्याप्त समस्याओं को भी गहरी नजर से देखा है। उनका लेखन यह सिद्ध करता है कि वे केवल मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के उद्देश्य से लेखनी चलाते हैं। उनका यह संग्रह इस बात का प्रमाण है कि वे साहित्य को एक सार्थक और जागरूकता उत्पन्न करने वाले माध्यम के रूप में देख रहे हैं।

इस संग्रह की कहानियाँ न केवल मनोरंजक हैं, बल्कि समाज को आत्मनिरीक्षण करने का अवसर भी प्रदान करती हैं। संग्रह में जहाँ एक ओर “रैली” और “पटाक्षेप” जैसी कहानियाँ गंभीर मुद्दों को उठाती हैं, वहीं दूसरी ओर “भीगते सावन” और “आखिरी खत” जैसी कहानियाँ भावनात्मक संबंधों और आत्मीयता को भी उभारती हैं।

सुरेश सौरभ जी का यह कहानी संग्रह निस्संदेह हिंदी साहित्य जगत में एक सशक्त और प्रेरणादायी स्थान रखता है। उनकी लेखनी में गहराई, संवेदनशीलता और सामाजिक जागरूकता का अद्भुत मिश्रण है, जो पाठकों को प्रभावित करता है। “भीगते सावन” की कहानियाँ हमें यह अहसास दिलाती हैं कि सुरेश सौरभ जैसे युवा लेखक साहित्य को समाज के प्रति एक जिम्मेदारी के रूप में देख रहे हैं। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज में जागरूकता और परिवर्तन लाने का एक सशक्त माध्यम भी है।

अंततः “भीगते सावन” का यह कहानी संग्रह हर साहित्य प्रेमी के लिए पढ़ने योग्य है। यह न केवल हमारे समय के महत्वपूर्ण मुद्दों और सामाजिक समस्याओं को उठाता है, बल्कि मानवीय रिश्तों और संवेदनाओं का भी बहुत ही संवेदनशील चित्रण करता है। सुरेश सौरभ की यह रचना न केवल मनोरंजन प्रदान करती है, बल्कि एक नए दृष्टिकोण से जीवन को समझने का अवसर भी देती है। उनकी लेखनी में जो स्पष्टता, संवेदनशीलता और सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूकता है, वह निश्चित रूप से हिंदी साहित्य में उनका एक महत्वपूर्ण स्थान सुनिश्चित करती है।

समीक्षक: नृपेन्द्र अभिषेक नृप
पुस्तक: भीगते सावन
लेखक : सुरेश सौरभ
प्रकाशन: अद्विक प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य: 160 रुपये
पेज – 96
संस्करण- 2024