समीक्षक: नृपेन्द्र अभिषेक नृप
कविता-कामिनी के कोमल कान्त-कलेवर को काव्य- कुसुम से अलंकृत करने वाली युवा कवयित्री डॉ. मोनिका राज काव्यधारा की बहुमूल्य हिस्सा है। डॉ. राज न केवल एक कुशल लेखिका हैं, बल्कि उनकी लेखनी में साहित्यिक गहनता और मानवीय संवेदनाओं की गहराई भी परिलक्षित होती है। वे शब्दों के माध्यम से उस भाव-भूमि का निर्माण करती हैं, जिसमें जीवन के विभिन्न रंगों का प्रतिबिंब स्पष्ट होता है। उनकी कविताओं में एक ऐसी अद्वितीय शक्ति है, जो पाठक को आत्मसात करती है और उसे अपने भीतर की गहराई तक पहुँचाती है।
हिन्दी साहित्य के प्रणम्य- प्रणेता डॉ. मोनिका राज द्वारा रचित काव्य संग्रह “दो मुट्ठी आसमान” वर्तमान हिंदी साहित्य के क्षेत्र के लिए एक अनुपम रत्न है। “दो मुट्ठी आसमान” एक ऐसा काव्य संग्रह है, जो जीवन के गूढ़ रहस्यों, अदृश्य भावनाओं और समाज की जटिलताओं को काव्यात्मक अभिव्यक्ति में संजोता है। इस पुस्तक में निहित कविताएँ पाठकों को न केवल जीवन की धूसर सतह से परे गहराई में ले जाती हैं, बल्कि मानव अस्तित्व की सीमाओं और संभावनाओं का भी पुनरावलोकन करने के लिए प्रेरित करती हैं। डॉ. राज की कविताएँ पाठकों को उस अनंत आकाश की ओर ले जा रही है, जहाँ विचार और अनुभव के मणिकांचन संयोग से जीवन के वास्तविक सत्य उजागर होते हैं।
इस काव्य-संग्रह की शीर्षक-कविता “दो मुट्ठी आसमान” व्यक्ति की कोशिश, सपनों को पूरा करने की ज़िद और उनकी ख़्वाहिशों को प्रदर्शित करती है। इस कविता में कवयित्री द्वारा अपने मनोभावों को इतनी खूबसूरती से व्यक्त किया है कि यह शीर्षक-कविता होने के गौरव को बरकरार रखती प्रतीत होती है। इस संग्रह की पहली कविता “चाँद और मेरा प्यार” प्रेम की अभिव्यक्ति को एक नए आयाम पर ले जाती है। डॉ. मोनिका राज की काव्यात्मक शैली यहाँ चाँद के प्रतीक के माध्यम से प्रेम की अनंतता और उसकी निरंतरता को उजागर करती है। यह कविता न केवल प्रेम की मिठास को दर्शाती है, बल्कि यह उस भावनात्मक गहराई का भी परिचायक है, जो प्रेम की सत्यता में निहित है। ‘प्रेम अनंत’ और ‘नगमे वफ़ा’ भी उसी अनंत प्रेम की अभिव्यक्ति हैं, जो समय और सीमाओं की सभी बाधाओं को पार कर जाता है। यहाँ प्रेम को केवल एक भावना नहीं, बल्कि अस्तित्व की एक अनिवार्यता के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
मातृत्व की अनमोलता और उसकी गहनता को व्यक्त करती हुई कविताएँ “लौट आओ माँ” और “माँ बिन कुछ नहीं” पाठक के हृदय को झकझोर देती हैं। डॉ. मोनिका राज ने माँ के महत्व और उसकी जीवन में अपरिहार्यता को जिस संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है, वह प्रशंसनीय है। इन कविताओं में माँ के स्नेह, त्याग और उसकी ममता का भावपूर्ण चित्रण किया गया है, जो पाठक को भावुक कर देता है। “मर्यादा”, “मंज़िल मुझे मिलेगी ज़रूर”, और “मैं हार नहीं मानूँगी” जैसी कविताएँ जीवन के संघर्ष और आत्मविश्वास की धुरी को सुदृढ़ करती हैं। डॉ. मोनिका राज की यह कविताएँ न केवल जीवन के संघर्षों का सामना करने की प्रेरणा देती हैं, बल्कि यह भी सिखलाती हैं कि किसी भी कठिनाई में हमें अपनी मर्यादा और आत्म-सम्मान का त्याग नहीं करना चाहिए। इन कविताओं में उन्होंने जीवन के संघर्षों को एक नए दृष्टिकोण से देखा है, जहाँ हर कठिनाई हमें और मजबूत बनाती है।
डॉ. मोनिका राज की कविताओं में स्त्री सशक्तिकरण का स्वर विशेष रूप से प्रमुख है। “आज की लड़की”, “तारा बनकर चमकूंगी”, और “नारी तुम सशक्त बनो” जैसी कविताएँ स्त्री के आत्म-सम्मान, स्वतंत्रता, और उसकी आत्मनिर्भरता की महत्ता को उजागर करती हैं। इन कविताओं में स्त्री की शक्ति और उसकी अनंत संभावनाओं का बखूबी वर्णन किया गया है, जो पाठक को नारी की महानता का एहसास कराती हैं। प्रकृति के अनमोल रंगों का वर्णन करती कविताएँ, जैसे- “देखो सखी आया बसंत”, “ये हवाएं”, और “मुझको बसंत नहीं भाती” डॉ. मोनिका राज की लेखनी का एक और पहलू प्रस्तुत करती हैं। इन कविताओं में प्रकृति की सुंदरता और उसकी विभिन्न ऋतुओं का बारीकी से अवलोकन किया गया है। डॉ. मोनिका राज ने प्रकृति के माध्यम से जीवन की परिवर्तनशीलता और उसकी अनिवार्यता को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है।
डॉ. राज की कविताएँ समाज की जटिलताओं और उसकी विडंबनाओं को भी उजागर करती हैं। “रिश्तों का बाज़ार”, “खूँटे से बँधी गाय”, और “बोलने वाले भी यहाँ आज बेज़ुबान क्यों हैं” जैसी कविताओं में समाज के रूढ़िवादी धारणाओं और प्रचलित विचारों पर गहन व्यंग्य किया गया है। ये कविताएँ पाठकों को समाज की वास्तविकता से रू-ब-रू कराती हैं और उसे आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती हैं। “तेरे यादों के गलियों में”, “वो बारिश की रात” और “यादों की बारात” जैसी कविताएँ स्मृतियों के उस संसार को सजीव करती हैं, जो हमारे अतीत का हिस्सा हैं। डॉ. मोनिका राज ने यादों की मिठास और उनकी गहनता को बहुत ही सुंदर ढंग से व्यक्त किया है। ये कविताएँ हमें उन भूले-बिसरे पलों की याद दिलाती हैं, जो हमारे जीवन के अनमोल क्षण होते हैं। “पहली मुलाकात”, “बन जाऊँगी तेरी मीरा गर तू मेरा कान्हा हो जाए”, और “ऐलान-ए-इश्क़” जैसी कविताओं में प्रेम की प्रारंभिक अनुभूति और उसकी गहराई को अभिव्यक्त किया गया है। डॉ. मोनिका राज ने प्रेम की अनिश्चितता और उसकी विविधताओं को बहुत ही गहनता से व्यक्त किया है। ये कविताएँ पाठकों को प्रेम की उस अनमोल यात्रा पर ले जाती हैं, जहाँ हर कदम पर नई अनुभूतियाँ होती हैं।
“दो मुट्ठी आसमान” केवल एक काव्य संग्रह नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा दर्पण है, जिसमें जीवन के विविध रंग और उनकी गहनता प्रतिबिंबित होती है। डॉ. मोनिका राज की यह पुस्तक उनकी साहित्यिक दक्षता और गहन चिंतनशीलता का प्रतीक है। इस पुस्तक की कविताएँ न केवल पाठक को विचारशील बनाती हैं, बल्कि उसे आत्ममंथन और आत्म-साक्षात्कार की ओर भी प्रेरित करती हैं। डॉ. मोनिका राज की लेखनी में वह शक्ति है, जो पाठक को जीवन की वास्तविकता से रू-ब-रू करवाते हुए उसे अपने भीतर के अनंत आकाश को खोजने के लिए प्रेरित करती है। “दो मुट्ठी आसमान” जीवन के उन अनुभवों का संगम है, जहाँ हर कविता अपने आप में एक नई दुनिया का द्वार खोलती है और यही इस पुस्तक की विशिष्टता है। इस पुस्तक की कविताएँ पाठकों को एक ऐसे सफ़र पर ले जाती हैं, जहां वे स्वयं को इन कविताओं में खो देंगे और एक नए दृष्टिकोण के साथ जीवन को देखना शुरू करेंगे। “दो मुट्ठी आसमान” जीवन की उस यात्रा का प्रतिबिंब है, जहां हर मोड़ पर नए अनुभव और नई सीखें मिलती हैं।
पुस्तक: दो मुट्ठी आसमान
लेखक: डॉ. मोनिका राज
प्रकाशन: समदर्शी प्रकाशन, गाज़ियाबाद
मूल्य: 150 रुपये
प्रथम संस्करण : 2024