रावेल पुष्प
सन्नाटे भी बोल उठेंगे दिल से बात अगर करिए वीरानों के साथ जिंदगी, मेरी तरह बसर करिए
यह एक गजल का मतला है जिसकी जानिब से एक पूरा गजल संकलन प्रकाशित हुआ है- सन्नाटे भी बोल उठेंगे और इसके शायर हैं देशभर में फैली शब्दाक्षर साहित्य संस्था की शाखाओं के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवि प्रताप सिंह, जो साहित्यिक कार्यक्रमों में जहां नजर आते हैं वहीं काव्य मंचों पर भी उनकी सक्रिय भागीदारी है।
वैसे अगर गजलों की बात की जाए तो यही कहा जाता है की गजल का जन्म तकरीबन हजार साल पहले ईरान में हुआ था और शुरुआती तौर पर राजाओं के कसीदे पढ़ने के लिए लिखी जाती थीं या फिर उनके मनोरंजन के लिए शराब, शवाब और कबाब से जुड़ी बातें बहुतायत में होती थीं। इसके अलावा औरतों के हुस्न और इश्क की बातें बड़े मुख़्तसर तरीके से दर्ज होती थीं। मुगलों के हिंदुस्तान आने पर ये फ़ारसी संस्कृति यहां आई और फिर रफ्ता-रफ्ता उसके साथ उर्दू और हिंदी मिलीं जिसके मिले-जुले रूप को अमीर खु़सरो ने हिंदवी कहा। वैसे आम जनता तक गज़ल को लाने के लिए हज़रते दाग़ का नाम भी लिया जाता है, जिनका मानना था कि गजल की भाषा साफ़ और सादी होनी चाहिए।हम अक्सर इसे सुनते ही रहे हैं कि-
हज़रते दाग़ जहां बैठ गये, बैठ गए
या फिर उनका ये शेर –
रंज की जब गूफ्तगू होने लगी
आपसे तुम, तुमसे तू होने लगी
उर्दू से फिर हिंदी गजल लोगों के बीच मकबूल करने में दुष्यंत कुमार का नाम बड़े प्यार और एहतराम से लिया जाता है और गजल अब हुस्न और इश्क से निकलकर ज़िन्दगी की दुश्वारियों तथा जिंदगी के और दूसरे पहलुओं की बातें भी बड़े मुक्तसर तरीके से करने लगी हैं। गजलों में यकीनन अब महबूब से निकलकर मां बहन की बातें भी होने लगी हैं।कवि रविप्रताप की एक गज़ल के ये शेर इस बात की तस्दीक करते हैं –
परेशानी के बिस्तर पर भी मीठी नींद आती है मेरी मां रोज आकर ख़्वाब में लोरी सुनाती है
ये आंखें छटपटा कर मां को घर में ढूंढती है तब मेरी बीवी मेरे बच्चों को जब खाना खिलाती है
मेरे मां-बाप मुझको छोड़ कर जा ही नहीं सकते उन्हीं की रूह मेरे जिस्म की सांसे चलाती है
आज हिंदी में लिखी जा रही अधिकतर गजलों के हर शेर में ज़िन्दगी का अक्स होता है और महसूस किए गए दर्द को बखूबी बयान भी करते हैं । उसी की तस्वीर रवि प्रताप की गजलों के शेरों में भी साफ़ दिखाई देती है,मसलन-
सियासत का रद्दोबदल लिख रहा हूं
मैं परचम बदलने का हल लिख रहा हूं
सुकूं से मयस्सर हो दो वक्त रोटी
मैं उस झोपड़ी को महल लिख रहा हूं
रहे आदमी आदमी की तरह से,
इसी वास्ते मैं गजल लिख रहा हूं
या फिर –
ख्वाहिशें झुलसी हुई हैं, हर तमन्ना खा़क है
ख़्वाब में भी रोटियों का गोल घेरा हर तरफ
जुल्मों सितम की आंधियां सर से गुजर गईं शमशीर है कलम मेरी झुकता नहीं हूं मैं
दर्द के हद से गुजरने पर गजल कहता हूं
अश्क आंखों से टपकने पर गजल करता हूं
कोई नन्हीं परी हंस दे तो कह दूं मैं गजल
किसी बच्चे के मचलने पे गजल कहता हूं
मेरी फितरत नहीं दरबार के सजदे करना
मैं तो ये रस्म बदलने पे गजल कहता हूं
ऐसा नहीं है कि रविप्रताप इश्क की बातों या गहराईयों से बिल्कुल महरुम हैं,उनकी ग़ज़लों के चन्द शेर इस मुताल्लिक भी पेश किए जा सकते हैं –
बात होनी थी सिर्फ़ जुल्फों की
सुर्ख गालों की हो गई बातें
आंख की कोर में सजा काजल
तो गजलों की हो गई बातें
जब मिली बज़्म में नज़र उनसे
मय के प्यालों की हो गई बातें
चन्द पल ही तो साथ बैठे थे
और सालों की हो गई बातें
या फिर –
मांगा जो मैंने सागर, साकी ने कहा हंसकर सागर का करोगे क्या,आंखों से पिलाना है
ऋतु बसंती आ गई, मौसम गुलाबी हो गया
रंग के छींटे पड़े, चेहरा शराबी हो गया
काम ने रति के कपोलों पर मला ऐसा गुलाल गौरवर्णी रुप तपकर आफ़ताबी हो गया
कवि,शायर रविप्रताप सिंह के इस प्रथम गजल संग्रह- सन्नाटे भी बोल उठेंगे, में उनकी कुल जमा 125 ग़ज़लें शामिल हैं और इसे पंजाब के रिगी पब्लिकेशन ने पेफरबैक में प्रकाशित किया है और इसकी कीमत दो सौ रुपए रखी गई है।
हिंदी गजलों के मकबूल शायर दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी सरीखे और कई हिंदी उर्दू के शायरों की गजलों के कुछ चुनिंदा शेर जिस तरह लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं, मेरी मंशा है कि रविप्रताप सिंह की गजलों के शेर भी लोगों की जुबान पर चढ़कर बोलें तभी तो यह कहना माकूल होगा कि – सन्नाटे भी बोल उठेंगे रवि प्रताप की गजलों से!