
नृपेन्द्र अभिषेक नृप
कविता केवल शब्दों का संकलन नहीं होती, बल्कि भावनाओं का विस्तार होती है। जब कोई कवयित्री अपने भीतर के मौन को शब्दों में पिरोती है, तो उसकी अनुभूतियाँ पाठकों के मन तक सीधी पहुँचती हैं। सोनाली मराठे का काव्य-संग्रह “खामोशियाँ” इसी मौन को मुखर करता है। यह केवल एक काव्य-संग्रह नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक विसंगतियों, स्त्री-मन की उलझनों और अस्तित्व की गहन चिंताओं का दस्तावेज़ है। इन कविताओं में जीवन के वे रंग हैं, जो कभी उजले हैं तो कभी धूसर, जो कभी सौम्य हैं तो कभी तीखे। सोनाली मराठे की कविताएँ उनके स्त्री-मन की अभिव्यक्ति हैं, लेकिन यह अभिव्यक्ति केवल निजी नहीं है, बल्कि हर उस स्त्री की आवाज़ है, जिसने कभी मौन धारण किया और उसमें अपनी भावनाओं को समेट लिया।
“खामोशियाँ” संग्रह की कविताएँ मूलतः जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं। इनमें स्त्री के संघर्ष, प्रेम, समाज की जटिलताएँ, रिश्तों की गहराई और प्रकृति के प्रति आत्मीयता दिखाई देती है। संग्रह की कविताएँ यह बताती हैं कि स्त्री होना केवल एक भूमिका नहीं, बल्कि एक सतत संघर्ष है। “जब कि स्त्री होने के अलावा” कविता में स्त्री के जीवन की चुनौतियों को सामने रखा गया है, वहीं “सदियों से ऐसा क्यों…? ” कविता समाज की असमानताओं को प्रश्नों के माध्यम से झकझोरती है। यह कविताएँ केवल सवाल नहीं पूछतीं, बल्कि उन प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए प्रेरित भी करती हैं।
इन कविताओं में रिश्तों की जटिलता और उनकी कोमलता दोनों ही दिखाई देती हैं। “कुछ रिश्तों के नाम नहीं होते” कविता उन अनाम रिश्तों की गहराई को व्यक्त करती है, जो किसी औपचारिक परिभाषा के मोहताज नहीं होते। इसी तरह “बुरा लगता है” कविता घृणा, नफरत और द्वेष के विष को पहचानने की कोशिश करती है और यह दर्शाती है कि ये नकारात्मक भावनाएँ समाज और व्यक्ति दोनों को भीतर से खोखला कर सकती हैं। यह संग्रह केवल आत्मनिरीक्षण नहीं कराता, बल्कि समाज की वास्तविकताओं पर भी विचार करने के लिए बाध्य करता है।
सोनाली मराठे की कविताओं में जीवन की नीरसता और सामाजिक यथार्थ भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। “रोज़ की तरह…” कविता में दिनचर्या की एकरसता को बेहद प्रभावी तरीके से व्यक्त किया गया है, जबकि “न जाने कितने सालों से एक ही खिड़की से” कविता वृद्धावस्था के अकेलेपन और जीवन के ठहराव की ओर संकेत करती है। यह खिड़की केवल एक खिड़की नहीं, बल्कि उस स्त्री की मनःस्थिति का प्रतीक है, जो वर्षों से एक जैसे जीवन को जीने को विवश है।
संग्रह की कविताओं में प्रकृति के प्रति आत्मीयता भी देखने को मिलती है। “गली के किसी मोड़ पर” कविता में अकेले खड़े पेड़ को प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो मनुष्य के अकेलेपन और समाज की संवेदनहीनता को दर्शाता है। वहीं “चलो भ्रम को खंगालते हैं” कविता जीवन की वास्तविकताओं और भ्रमों के बीच चलने वाली द्वंद्वात्मक प्रक्रिया को सामने लाती है। इन कविताओं में न केवल बाहरी संसार का चित्रण है, बल्कि मन के भीतर चलने वाले द्वंद्व का भी स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
सोनाली मराठे की भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण और संवेदनशील है। वे शब्दों के माध्यम से भावनाओं को इस तरह उकेरती हैं कि पाठक उन्हें केवल पढ़ता नहीं, बल्कि महसूस करता है। उनकी कविताओं में प्रतीकात्मकता का सुंदर प्रयोग हुआ है। ‘खिड़की’ जीवन की सीमाओं का प्रतीक है, ‘अकेला पेड़’ व्यक्ति के एकाकीपन को दर्शाता है, और ‘मौन’ स्त्री-मन की अनकही बातों की अभिव्यक्ति है। ये प्रतीक न केवल कविताओं को गहराई प्रदान करते हैं, बल्कि पाठक के मन में एक स्थायी छाप भी छोड़ते हैं।
“खामोशियाँ ” संग्रह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह केवल भावनाओं को व्यक्त नहीं करता, बल्कि समाज की विडंबनाओं और विसंगतियों पर भी गंभीर प्रश्न उठाता है। यह संग्रह स्त्री-विमर्श को केवल सैद्धांतिक रूप में नहीं प्रस्तुत करता, बल्कि इसे एक जीवंत अनुभव के रूप में पाठकों के सामने रखता है। इन कविताओं में आत्ममंथन है, आत्मस्वीकृति है और सबसे बढ़कर आत्म-साक्षात्कार है।
सोनाली मराठे का यह संग्रह न केवल उनकी काव्य-प्रतिभा का प्रमाण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कविता केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि एक सशक्त अभिव्यक्ति है। यह संग्रह पाठकों को सोचने, महसूस करने और आत्मावलोकन करने के लिए प्रेरित करता है। यदि आप ऐसी कविताएँ पढ़ना चाहते हैं, जो केवल शब्दों में नहीं, बल्कि मौन में भी बहुत कुछ कहती हैं, तो “खामोशियाँ” निश्चित रूप से आपके लिए एक महत्वपूर्ण काव्य-संग्रह साबित होगा।
पुस्तक: खामोशियाँ
कवयित्री: सोनाली मराठे
प्रकाशन: सर्वभाषा प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य: 220 रुपये