नृपेन्द्र अभिषेक नृप
मनोज कुमार एक प्रखर विचारक और संवेदनशील लेखक हैं, जिनकी पुस्तक “तेरे मेरे इर्द गिर्द” समाज के ज्वलंत मुद्दों पर आधारित एक दृष्टिपूर्ण कृति है। इसमें अधिकारों, दायित्वों, रोजगार, शिक्षा, पत्रकारिता, और मानवीय मूल्यों जैसे विषयों पर आलेखों के माध्यम से गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करता है। पुस्तक में कुल 27 आलेख है जो पाठकों को आकर्षित करता है। मनोज कुमार की पुस्तक “तेरे मेरे इर्द गिर्द” वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य पर आधारित एक संवेदनशील कृति है, जो हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को गहराई से उकेरती है।
यह पुस्तक न केवल विचारों की अभिव्यक्ति है, बल्कि यह एक आईना है जो समाज के उन अनदेखे, अनसुने और उपेक्षित पहलुओं को सामने लाने का प्रयास करती है, जो आम जनजीवन को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। पुस्तक की विशेषता इसके विषयों की विविधता और प्रस्तुतिकरण की गहराई में है। इसमें लेखक ने समसामयिक मुद्दों को बड़ी सूक्ष्मता और स्पष्टता के साथ प्रस्तुत किया है। “तेरे मेरे इर्द गिर्द” सिर्फ समस्याओं का विश्लेषण नहीं करती, बल्कि उनके समाधान की दिशा में सोचने को भी प्रेरित करती है।
पुस्तक के आरंभिक अध्यायों में संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों और नागरिकों के दायित्वों पर चर्चा की गई है। लेखक ने एक स्वस्थ और संतुलित समाज के लिए अधिकारों और दायित्वों के बीच संतुलन को जरूरी बताया है। यह संदेश आज के समय में और भी प्रासंगिक हो जाता है, जब लोग अपने अधिकारों की मांग तो करते हैं, लेकिन अपने दायित्वों को निभाने में अक्सर चूक जाते हैं। लेखक ने इस पहलू को बड़ी कुशलता से उजागर किया है कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह संतुलन कितना महत्वपूर्ण है।
पुस्तक का एक और प्रमुख मुद्दा है फेक न्यूज और वर्तमान पत्रकारिता का ह्रास। लेखक ने बताया है कि कैसे फेक न्यूज का बढ़ता प्रभाव न केवल सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देता है, बल्कि आम जनता की समस्याओं को भी गुमराह कर देता है। यह पुस्तक इन पहलुओं पर विचार करते हुए पत्रकारिता की कमजोर होती विश्वसनीयता और उसमें सुधार की आवश्यकता पर बल देती है।
मनोज कुमार ने किसानों और मजदूरों की मुफलिसी के बीच उनकी सिसकियों और संघर्ष को मार्मिकता के साथ प्रस्तुत किया है। उन्होंने यह दिखाने का प्रयास किया है कि कैसे मेहनतकश वर्ग न केवल आर्थिक दबाव झेल रहा है, बल्कि समाज और व्यवस्था से भी उपेक्षित है। साथ ही, प्राइवेट शिक्षकों की पीड़ा का उल्लेख करते हुए यह बताया गया है कि शिक्षकों को किस प्रकार उचित सम्मान और वेतन से वंचित किया जा रहा है। यह विषय आज के समय में बहुत प्रासंगिक है, जब शिक्षा का निजीकरण अपने चरम पर है और शिक्षक समाज में अपना वह दर्जा खोते जा रहे हैं, जो उन्हें वास्तव में मिलना चाहिए।
पुस्तक में रोजगार की घटती संभावनाओं और बढ़ते निजीकरण पर भी गहराई से प्रकाश डाला गया है। लेखक ने यह दिखाया है कि कैसे निजीकरण के परिणामस्वरूप समाज में आर्थिक असमानता बढ़ रही है। यह समस्या विशेष रूप से युवाओं और श्रमिक वर्ग को प्रभावित कर रही है। साथ ही, तकनीकी शिक्षा और मानवीय चेतना के विकास के महत्व पर चर्चा करते हुए लेखक ने यह बताया है कि इन मुद्दों पर ध्यान देकर ही समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।
लेखक ने महंगी होती शिक्षा प्रणाली और उसमें नैतिक मूल्यों के ह्रास की समस्या पर भी अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। पुस्तक में इस बात पर बल दिया गया है कि शिक्षा केवल ज्ञान का माध्यम नहीं है, बल्कि यह समाज के नैतिक और मानवीय मूल्यों को विकसित करने का साधन भी है। लेखक ने महंगी शिक्षा के चलते निम्न और मध्यम वर्ग के छात्रों के सामने आने वाली चुनौतियों को उजागर किया है।
सोशल मीडिया के प्रभाव पर लेखक की दृष्टि अत्यंत प्रासंगिक और जागरूक है। उन्होंने बताया है कि कैसे यह माध्यम जहाँ एक ओर विचारों की अभिव्यक्ति का मंच है, वहीं दूसरी ओर यह समाज में भ्रांतियों और फेक न्यूज का जरिया भी बनता जा रहा है। लेखक ने यह सुझाया है कि तकनीक का उपयोग विवेकपूर्ण और सकारात्मक ढंग से होना चाहिए।
“तेरे मेरे इर्द गिर्द” की भाषा अत्यंत प्रभावी और लच्छेदार है। लेखक ने आम बोलचाल की भाषा में जटिल विषयों को सरलता से प्रस्तुत किया है। शब्दों का चयन और शैली इतनी प्रभावशाली है कि पाठक पुस्तक के साथ जुड़ाव महसूस करता है। पुस्तक का हर आलेख एक अलग मुद्दे पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है और अंत में पाठक को एक सकारात्मक सोच के साथ छोड़ता है।
मनोज कुमार की “तेरे मेरे इर्द गिर्द” एक ऐसी पुस्तक है, जो वर्तमान समाज की समस्याओं, उनके कारणों और संभावित समाधानों को समझने और सोचने का अवसर प्रदान करती है। यह पुस्तक न केवल विचारशील व्यक्तियों के लिए उपयोगी है, बल्कि उन लोगों के लिए भी प्रेरणा स्रोत है, जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं। इसकी विषय-वस्तु, भाषा और शैली इसे एक पठनीय और विचारोत्तेजक पुस्तक बनाती है।
यह पुस्तक केवल पढ़ने के लिए नहीं है, बल्कि इसके विचारों को आत्मसात कर समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने के लिए है। “तेरे मेरे इर्द गिर्द” आज की दुनिया के जटिल यथार्थ को समझने और उसे बेहतर बनाने की दिशा में एक सार्थक प्रयास है।
पुस्तक: तेरे मेरे इर्द गिर्द
लेखक: मनोज कुमार
प्रकाशन: प्रखर गूंज पब्लिकेशन, नई दिल्ली
मूल्य: 250 रुपये
पेज: 94
प्रकाशन वर्ष: 2024