सुनील सक्सेना
रेडियो विविध भारती के अगर आप नियमित श्रोता हैं तो “रेडियो सखी” ममता सिंह की शीरीन, कानों में मिश्री घोल देने वाली आवाज़ से जरूर परिचित होंगे । इन्हीं ममता सिंह का लिखा उपन्यास है “अलाव पर कोख” । साहित्यिक बुद्धिमत्ता से आक्रांत हुए बिना ममता सिंह ने इस उपन्यास में अपनी बात सीधी सरल भाषा में रखी है । गौरतलब है कि उपन्यास, कहानी संग्रह आदि में लेखकीय भूमिका का रिवाज़ है । ममता के इस उपन्यास में भूमिका नहीं है । न ही किसी ख्यातनाम लेखक का “ब्लर्ब” इस उपन्यास में है । बस ममता अपनी बात शुरू कर देती हैं । पाठक पेज दर पेज बहता हुआ उपन्यास के अंतिम पृष्ठ पर ही जाकर किनारे लगता है ।
मध्यम वर्गीय परिवार की तन्वी उपन्यास की केंद्रीय पात्र है । आधुनिक प्रगतिशील विचारों वाली युवा तन्वी पुरातन सामाजिक परम्पराओं के प्रति खुलकर अपनी असहमति दर्ज करती है । रूढि़यों के पथरीले रास्तों को तोड़कर नए रास्ते बनाती है । कॉलेज के दिनों में वलेंटाइन डे पर पश्चिमी सभ्यता के अनुकरण के नाम पर गुंडागर्दी करने वाले भारतीय संस्कृति के तथाकथित झण्डाबरदारों की अच्छी मजम्मत भी करती है । कॉलेज के सहपाठी और सुदर्शन व्यक्तित्व वाले सागर से तमाम विरोध के बावजूद तन्वी अंतर्जातीय विवाह करती है । फिर प्रवेश होता है सपनों की रंगीन दुनिया में । जहां पति-पत्नी के रिश्तों में प्यार का उन्माद है । अपने-अपने केरियर में सफल होने की महत्वकांक्षा है ।
फर्श से अर्श पर पहुंचने की तमन्ना लिए मायानगरी मुंबई में हर दिन सैकड़ों पहुंचते हैं । तन्वी और सागर के सपने भी उन्हें मुंबई खींच लाते हैं । स्वप्न नगरी मुंबई आनेवाले हरेक का दिल से स्वागत करती है, लेकिन पनाह देने से पहले तगड़ी परीक्षा भी लेती है । तन्वी और सागर के सर्वाइवल की जाद्दोजहद, आर्थिक मोर्चे पर निहत्थे संघर्ष का दौर शुरू होता है । विवाहित युवा जोड़ों में इन दिनों प्रचलित “डबल इनकम नो किड” के रास्ते पर ये दोनों भी चल पड़ते हैं ।
लेकिन समाज में एक विवाहित स्त्री का अस्तित्व, उसके आचार-विचार, रिश्ते-नाते सब कुछ दांव पर लग जाते हैं यदि वो निसंतान है । तन्वी भी इस यंत्रणा से गुजरती है । तन्वी को उसकी इस कमतरी का एहसास बात-बात पर और उपहास कदम-कदम पर सहने को विवश होना पड़ता है । ताने, उल्हानों के झंझावतों के बीच तन्वी अडिग रहती है । महंगी आईवीएफ तकनीकी से मां बनकर तन्वी बांझ की लगी मुहर से मुक्त होकर दो प्यारे जुड़वा बच्चों की मां बनती है । कर्ज में डूब जाती हैं खुशियां ।
समय के साथ पारिवारिक दायित्व बोझ बढ़ते हैं । सागर का रंगमंच के प्रति जुनून उसे पिता के फर्ज से दूर करने लगता है । पैरेंटिंग में पुरूष की भागेदारी पर भी सवाल उठता है । छोटी-छोटी बातों पर बहस, तकरार रोजमर्रा की बात हो जाती है । पैसों का संकट तन्वी को तोड़ देता है । एक समय पत्रकार रही तन्वी अपने “वूमन एग्स” को बेचकर जीवन का निर्वाह करती है । बच्चों को पालती है । वैवाहिक रिश्ते घिसटने लगते हैं । अंतिम परिणिति, सागर और तन्वी अलग हो जाते हैं ।
उपन्यास का कथानक कई हिस्सों में बंटा है । लेखिका ने लगभग हर खण्ड के उपशीर्षक मकबूल फिल्मी गीतों के मुखड़े या अंतरे की लाइन्स को लेकर तैयार किये है । गीत की लाइन पढ़ते ही पूरा गाना जहन में उतर जाता है । पाठक को सहज ही होनेवाली घटनाओं का अनुमान लग जाता है । ऐसे ही एक लोकप्रिय गीत “जीवन की बगिया महकेगी…” को लेखिका ने तन्वी के गर्भवती होनेवाले प्रसंग के लिए इस्तेमाल किया है । फिल्मी गीतों से तैयार उपशीर्षक एक अभिनव प्रयोग है । कुछ दृष्टांतों में भाषा की रवानगी ऐसी है जैसे कोई नज़्म पढ़ रहे हों । ममता के कथा कथन की शैली में गद्य के नीचे कविता और शायरी की मिलीजुली एक गुप्त नदी बहती हुई सी लगती है । ममता वर्षों से रेडियो जुड़ी हैं । उपन्यास में उनके शब्द, वाक्यों का संयोजन दृश्यों की रचना रेडियो पर प्रसारित होनेवाली कहानियों की याद दिला देती है । ये प्रभाव लाजमी है ।
जीवन की यही विडंबना है । हम स्वच्छंद जीवन की कामना करते हैं । प्रेम में पड़ते हैं । पति-पत्नी के रिश्ते से जुड़ते हैं । समय के साथ प्रेम का दरिया सूखने लगता है । दिल की जमीन पर दरारें पड़ जाती हैं । रिश्ते बंधन बन जाते हैं । हम फिर से आजाद होना चाहते हैं । सागर का तन्वी के जीवन से चले जाना । तन्वी की सागर से विरक्ति । इसी मनोविज्ञान की एक बानगी है ये उपन्यास ।
पूरे उपन्यास में तन्वी का एक स्ट्रॉंग केरेक्टर है । रेत में पानी ढूंढकर फूल खिलाने वाली लड़की का जज्बा रखने वाली तन्वी से एक पाठक के तौर पर सुखान्त अंत की अपेक्षा थी । यहां थोड़ी निराशा जरूर होती है । आजकल “सीक्वल” का दौर है । कौन जाने ममता इस उपन्यास की अगली कड़ी में सागर और तन्वी को फिर मिला दें । बहरहाल एक पठनीय उपन्यास के लिए ममता सिंह को बधाई।
पुस्तक – अलाव पर कोख (उपन्यास)
लेखिका – ममता सिंह
प्रकाशक – प्रतिबिम्ब
मूल्य – रू 145/-