असहनीय दर्द बांटते बोरवेल हादसे

Borewell accidents cause unbearable pain

सुनील महला

बोरवेल हादसे लगातार जानों पर जानें ले रहें हैं और जीवन के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो रहे हैं। हाल ही में 9 दिसंबर 2024 को राजस्थान के दौसा के कालीखाड गांव में बोरवेल में गिरे आर्यन को एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और प्रशासन द्वारा रेस्क्यू ऑपरेशन चलाकर 56 घंटे बाद निकाला गया। रेस्क्यू के तत्काल बाद आर्यन को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उसकी जान नहीं बचाई जा सकी। आर्यन के लिए बोरवेल मौत का कुंआ साबित हुआ। यह हमारे देश की विडंबना होने के साथ ही बहुत ही ज्यादा दुखद बात है कि आज बोरवेल मासूम बच्चों की समाधि बनते चले जा रहे हैं। आज जनसंख्या वृद्धि, बढ़ते शहरीकरण, औधोगिकीकरण के कारण भू-जल स्तर तेजी से गिरता चला जा रहा है। तेजी से गिरते भू-जल स्तर के कारण नलकूपों को चालू रखने के लिए कई बार उन्हें एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित करना पड़ता है और पानी कम होने पर जिस जगह से नलकूप हटाया जाता है, वहां लापरवाही के चलते बोरवेल खुला छोड़ दिया जाता है, और खुले बोरवेल हादसों का कारण बनते हैं। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि बोरवेल आज हमारे देश में बहुत से घरों, कृषि भूमि और यहां तक कि अनेक उद्योगों के लिए पानी का आवश्यक स्रोत है। आज बोरवेल ड्रिलिंग तकनीकों का उपयोग करके भूमिगत जल संसाधनों तक पहुँचा जाता हैं, जिससे जल आपूर्ति की विश्वनीयता सुनिश्चित होती है। वास्तव में, बोरवेल भूमिगत जल संसाधनों तक पहुँचने के लिए जमीन में खोदा गया एक संकीर्ण शाफ्ट होता है। इसमें आम तौर पर एक आवरण पाइप होता है, जो कुएं को धंसने से रोकता है, और एक सबमर्सिबल पंप होता है जो सतह पर पानी खींचता है। बहरहाल, यह पहली बार नहीं है,जब बोरवेल से किसी मासूम की जान गई हो। इससे पहले भी बोरवेल हादसों में देश में कई जानें जा चुकीं हैं। देखा गया है कि बोरवेल हादसों में अधिकतर दस साल या इससे छोटे बच्चों की जानें अधिक जातीं हैं, क्यों कि बोरवेल में नली का व्यास(कैलिबर) कम होता है। आज के इस आधुनिक युग में बोरवेल हादसे वाकई बहुत ही दुख और चिंता का विषय हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि खुले बोरवेल में अनजाने में ही कई बार ऐसी अप्रिय घटनाएं घट जाती हैं, और ये घटनाएं अक्सर छोटे बच्चों के साथ अधिक होतीं हैं क्यों कि छोटे बच्चे अनेक बार खेलते-खेलते बोरवेल का ध्यान नहीं रख पाने के कारण, जैसा कि उन्हें बहुत बार यूं ही खुला छोड़ दिया जाता है, बोरवेल हादसों के शिकार बन जाते हैं और ऐसी घटनाएं किसी परिवार को जिंदगीभर का असहनीय दर्द दे जाती हैं और जिसकी भरपाई करना कभी संभव नहीं हो सकता है, क्यों कि जीवन बहुत अनमोल है, जीवन का कोई मूल्य नहीं है। यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो भूगर्भ जल विभाग के अनुमान के अनुसार देशभर में करीब 2.7 करोड़ बोरवेल हैं। यहां विडंबना यह है कि इनमें से न तो सक्रिय बोरवेलों और न ही अनुपयोगी बोरवेलों का कोई डाटाबेस देश में उपलब्ध है। यहां तक कि इन बोरवेलों के मालिक कौन हैं, इसके बारे में अनेक बार जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती है। यहां सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट की सख्त और अनेक टिप्पणियों के बावजूद सिस्टम भी ऐसे हादसों को लेकर गंभीर नहीं है। आज राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, ग्रेटर नोएडा, दिल्ली और दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में अनेक बोरवेल हैं, यहां अवैध बोरवेलों की संख्या भी ठीक-ठाक है। यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो कुछ समय पहले दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को एक रिपोर्ट सौंपी गई थी, जिसमें बताया गया था कि दिल्ली भर में 20,552 अवैध बोरवेलों की पहचान की गई है,जिनमें से 11,197 को सील किया गया। हाल फिलहाल, पाठकों को जानकारी देता चलूं कि बोरवेल खुदाई को लेकर अलग-अलग राज्यों के हाईकोर्टस के भी कई निर्देश हैं और इस संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट भी यह कह चुका है कि बोरवेल से संबंधित विभिन्न नियमों का पालन कराने की जिम्मेदारी कलेक्टर की होगी, जो सुनिश्चित करेंगे कि केन्द्रीय या राज्य की एजेंसी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी मार्गदर्शिका का सही तरीके से पालन हो। गौरतलब है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार बोरवेल की खुदाई से पहले कलेक्टर अथवा ग्राम पंचायत को लिखित में सूचना देनी होती है। इतना ही नहीं, बोरवेल की खुदाई करने वाली सरकारी, अर्ध सरकारी संस्था या ठेकेदार का पंजीयन होना भी बहुत जरूरी है। बोरवेल खुदवाने के कम से कम 15 दिन पहले डीएम, ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम को सूचना देना अनिवार्य है। इसके अलावा, बोरवेल की खुदाई वाले स्थान पर साइन बोर्ड लगाया जाना आवश्यक है और खुदाई के दौरान आसपास कंटीले तारों की फेंसिंग की जानी भी आवश्यक है तथा फेंसिंग पाइप के चारों ओर सीमेंट अथवा कंक्रीट का 0.3 मीटर ऊंचा प्लेटफार्म बनाया जाना भी आवश्यक है। इसके साथ ही, बोरवेल के मुहाने पर स्टील की प्लेट वेल्ड(वेल्डिंग) की जानी चाहिए या उसे नट-बोल्ट से अच्छी तरह कसा जाना चाहिए। बोरवेल की खुदाई पूरी होने के बाद खोदे गए गड्ढे और पानी वाले मार्ग को समतल किया जाना चाहिए। खुदाई अधूरी छोडऩे पर मिट्टी, रेत, बजरी, बोल्डर से बोरवेल को जमीन की सतह तक भरा जाना चाहिए। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि आज देश में बोरवेल मासूम बच्चों को काल का ग्रास बना रहे हैं और मौत के ताबूत बन गये हैं। हमारी लापरवाही मासूम बच्चों को काल का ग्रास बना रही है। प्रशासन, एनडीआरएफ, सेना, एसडीआरएफ, पुलिस, स्वास्थ्य और बिजली विभाग बोरवेल हादसों पर काम करते हैं लेकिन हमारे देश के पास आज भी बोरवेल हादसों से बचने के लिए उन्नत तकनीकी का काफी अभाव है। भले ही आज हम चांद पर फतेह करने की बातें करतें हैं लेकिन सच तो यह है कि एआई के जमाने में उन्नत तकनीकें हमसे बहुत परे ही है। आम आदमी के साथ ही साथ स्थानीय प्रशासन भी कहीं न कहीं बोरवेल हादसों के लिए इसलिए दोषी है, क्यों कि आज बोरवेलों को अक्सर खुला छोड़ा जाता है और बोरवेलों की विभिन्न गाइडलाइंस की पालना सही तरह से नहीं की जाती है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि रेस्क्यू ऑपरेशनों पर अथाह धन, समय और श्रम भी नष्ट होता है। मानव जीवन पर तो बन आती ही है। आज जरूरत इस बात की है कि बोरवेल के संबंध में विभिन्न दिशा-निर्देशों की सही से पालना की जाए और अवैध बोरवेलों पर समय रहते अंकुश लगाया जाए और दोषी पाए जाने वाले लोगों पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। इतना ही नहीं
सरकार के साथ ही साथ आज आम आदमी को भी बोरवेल को खुला छोड़ने जैसी लापरवाहियों को लेकर समय रहते चेतना होगा, ताकि भविष्य में ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति न होने पाए। इसके अलावा, उन्नत तकनीकें भी विकसित की जानी चाहिए, ताकि विकट परिस्थितियों में जानें बचाई जा सके।