सुनील कुमार महला
कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसका आज भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में खौफ है। वास्तव में, कैंसर में सेल(कोशिका) तेजी से बढ़ती हैं और ट्यूमर का रूप ले लेती है और यह मानव जीवन के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होता है। सच तो यह है कि लोग कैंसर को जिंदगी का खात्मा समझते हैं। सच तो यह है कि आज के समय में ‘कैंसर’ शब्द इतना प्रचलित और पापुलर हो गया है कि लोग कोई उदाहरण देने तक के लिए इस शब्द का प्रयोग ‘नेगेटिव’ रूप में करते हैं। मसलन, ‘भ्रष्टाचार कैंसर है।’,
‘आतंकवाद देश और समाज के लिए कैंसर है।’ वगैरह वगैरह। दरअसल,कैंसर का डर कैंसर को दुश्मन के रूप में देखने की मूल धारणा से उत्पन्न हुआ है। खैर जो भी हो, दुनिया में कैंसर के बड़े खौफ(डर) के बीच हाल ही में एक खबर भारत के परम मित्र देश रूस से आई है। दरअसल, रूस ने कैंसर की mRNA(मैसेंजर आर एन ए ) वैक्सीन बना ली है। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह सदी की सबसे बड़ी खोज है। उल्लेखनीय है कि रूसी स्वास्थ्य मंत्रालय के रेडियोलॉजी मेडिकल रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर ने इसकी जानकारी रेडियो पर दी है। रूसी न्यूज एजेंसी टीएएसएस के मुताबिक, इस वैक्सीन को अगले साल से रूस के नागरिकों को फ्री में लगाया जाएगा।वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल से पता चला है कि इससे ट्यूमर के विकास को रोकने में मदद मिलती है। यहां पाठकों को जानकारी के लिए बताता चलूं कि वर्ष 2024 की शुरुआत में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यह जानकारी साझा की थी कि रूस कैंसर की वैक्सीन बनाने के बेहद करीब है। यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि मैसेंजर-आरएनए इंसानों के जेनेटिक कोड का एक छोटा सा हिस्सा है, जो हमारी सेल्स (कोशिकाओं) में प्रोटीन बनाती है। सरल शब्दों में कहें तो जब हमारे शरीर पर कोई भी वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है तो मैसेंजर-आरएनए टेक्नोलॉजी हमारी सेल्स को उस वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने के लिए प्रोटीन बनाने का मैसेज भेजती है और इससे हमारे इम्यून सिस्टम को जो जरूरी प्रोटीन चाहिए, वो मिल जाता है और हमारे शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है। इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि इससे कन्वेंशनल वैक्सीन के मुकाबले ज्यादा जल्दी वैक्सीन बन सकती है। इसके साथ ही इससे शरीर की इम्यूनिटी भी मजबूत होती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मैसेंजर-आरएनए टेक्नोलॉजी (mRNA टेक्नोलॉजी) पर आधारित यह कैंसर की पहली वैक्सीन है। निश्चित ही इस वैक्सीन का फायदा आने वाले दिनों में भारत समेत विश्व के अन्य देशों को भी होगा। हाल फिलहाल, यह खबर ऐसे समय पर आई है जब देश में कुछ दिनों पहले कैंसर को लेकर खूब बहस छिड़ी थी। पाठक जानते होंगे कि कुछ समय पहले ही पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू अपनी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू द्वारा कैंसर के चौथे स्टेज की बीमारी को 40 दिनों में मात देने का दावा करने के लिए खूब चर्चा में रहे थे।
कैंसर को लेकर उनका विडियो(आवास पर प्रेस कांफ्रेंस) लगातार वायरल हुआ था। दरअसल, उन्होंने विडियो में यह दावा किया था कि बिना ऐलोपैथिक दवाओं के ही सिर्फ अपनी डाइट और लाइफस्टाइल में परिवर्तन कर हल्दी, लहसुन और नीम का उपयोग कर उनकी पत्नी ने कैंसर को मात दी है। सिद्धू के इस दावे पर छग सिविल सोसाइटी द्वारा उन्हें 850 करोड़ रुपये का लीगल नोटिस भी भेजा गया था, जैसा कि सोसाइटी का यह कहना था कि ऐसे दावे करके कैंसर मरीजों को भ्रमित किया गया। मीडिया में ऐसी भी खबरें आईं कि सिद्धू के दावे सुनकर देश-विदेश के कैंसर ग्रसित मरीजों में भ्रम और एलोपेथी मेडिसिन से उनका विश्वास उठ गया। बहरहाल, कैंसर पर हमारे देश में व्यापक चर्चाओं के बाद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कैंसर आज खतरनाक बीमारी के रूप में विश्व में सामने आई हैं। हालांकि, यह बात अलग है कि कैंसर स्पेशलिस्ट यह बात मानते हैं कि कैंसर की वैक्सीन बनाना बायोलाजिकल तौर पर असंभव है। विशेषज्ञों का कैंसर के संदर्भ में यह भी कहना है कि कैंसर के लिए कोई टीका नहीं हो सकता क्योंकि कैंसर कोई बीमारी नहीं है, वास्तव में यह शरीर में हजारों अलग-अलग स्थितियों का परिणाम है। वैसे विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि कुछ कारणों से कैंसर वैक्सीन बनाना बहुत मुश्किल भी है। ऐसे में रूस से कैंसर वैक्सीन बनाने की खबर निकल के आई है तो यह एक सकारात्मक कदम होने के साथ ही काबिले-तारीफ कदम भी है। काबिले-तारीफ कदम इसलिए क्यों कि आज दुनियाभर में कैंसर से हर मिनट 17 लोगों की मौत(वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक) होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में पूरी दुनिया में 2 करोड़ से ज्यादा कैंसर के नए मामले सामने आए। वहीं मृत्यु आंकड़े की बात करें तो ये ग्लोबली 97 लाख थी।इतना ही नहीं, शोधकर्ताओं का अनुमान है कि साल 2050 तक कैंसर के रोगियों संख्या 35 मिलियन (3.5 करोड़) प्रतिवर्ष तक पहुंच सकती है। यह भी एक तथ्य है कि भारत में महिलाओं में स्तन और सर्वाइकल कैंसर के मामले सबसे आम हैं, जबकि पुरुषों में फेफड़े, मुंह और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा सबसे अधिक देखा जाता रहा है और यह बहुत संवेदनशील और गंभीर है कि आज भारत में हर 10 कैंसर मरीजों में से 7 की मौत हो जाती है। एनसीआरपी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में 13.9 लाख केस भारत में सामने आए हैं।
दिल्ली, बेंगलुरु, और चेन्नई जैसे शहरों में ब्रेस्ट कैंसर हाई रिस्क फैक्टर है।वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा 48 लाख लोग चीन में, 23 लाख लोग अमेरिका में तथा 14 लाख से ज्यादा लोग भारत में हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, भारत में हर साल लगभग 10 लाख से अधिक कैंसर के नए मामले सामने आते हैं।सबसे बड़ी बात कि यह संख्या लगातार बढ़ रही है। इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के मुताबिक, 2020 में कैंसर के 1.93 करोड़ केस आए और 1 करोड़ लोगों की मौत हुई। जर्नल ऑफ ग्लोबल ऑन्कोलॉजी में 2017 को पब्लिश हुई एक स्टडी के मुताबिक, भारत में कैंसर से मरने वालों की दर विकसित देशों से लगभग दोगुनी है। इतना ही नहीं, कुछ समय पहले इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च-नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज़ इंफोर्मेटिक्स एंड रिसर्च ने नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम रिपोर्ट 2020 जारी की थी, उसके अनुसार वर्ष 2025 में कैंसर के मामले बढ़कर 15.7 लाख तक पहुंच जाने की बात कही गई है। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि निश्चित ही आज तकनीक और चिकित्सा में नवाचार के चलते कैंसर पर बहुत काम हुआ है। कैंसर पर आज नये नये शोध निकल कर सामने आ रहे हैं और इससे लड़ने के लिए मनुष्य द्वारा अनवरत प्रयास जारी हैं। रूस द्वारा कैंसर इलाज हेतु वैक्सीन का निर्माण इसी दिशा में एक नवाचार है। यदि रूस की कैंसर पर बनायी यह वैक्सीन कामयाब होती है तो निश्चित ही यह मेडिकल साइंस में किसी बड़े चमत्कार या कारनामे से कम नहीं होगा। वैक्सीन कामयाबी की स्थिति में मानवजाति के लिए यह वरदान साबित होगी।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।