
ओम प्रकाश उनियाल
मैदानी इलाकों में रहने वालों को पहाड़ों की सैर करने की भारी चाहत रहती है। वास्तव में हो भी क्यों न? पहाड़ों की खूबसूरती, शांत वातावरण, स्वच्छ आबोहवा के साथ-साथ वहां की संस्कृति, परिवेश, रहन-सहन, खान-पान, बोली-भाषा का घालमेल जो जो पर्यटकों को आकर्षित करती है। आपाधापी भरी जिंदगी में दो पल सुकून से गुजारने की चाह लेकर पहाड़ों का सफर करने में जो आनंदानुभूति होती है वह अकल्पनीय होती है। यदि आप भी पहाड़ों में घूमने का मन बनाए हुए हैं तो पहाड़ आपके स्वागत के लिए हर समय तैयार बैठे हैं। बस, आपको बरसात के मौसम में पहाड़ों का सफर नहीं करना है। इस मौसम में पहाड़ों में जगह-जगह भूस्खलन होता है जिसके कारण सड़कें व संपर्क मार्ग क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। एक इलाके से दूसरे इलाके का संपर्क टूट जाता है, जाम लग जाता है, नदी-नाले उफान पर होते हैं जिनका कुछ पता नहीं होता किधर का रुख कर बैठें। पहाड़ जितने शांत होते हैं उतने ही खतरनाक भी बन जाते हैं। बेशक, प्रकृति की छटा हर तरफ बिखरी हुयी इसी मौसम में देखने को मिलेगी मगर साथ ही साथ विनाशलीला भी। अधिक बरसात होने या बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण जिस प्रकार से पहाड़ों का स्वरुप बिगड़ता है उससे मन में डर बैठना स्वाभाविक होता है। हालांकि पहाड़ों में इन्हीं दिनों धार्मिक यात्राएं भी चलती हैं जैसे उत्तराखंड में हेमकुंड साहिब,चारधाम यात्रा,जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ यात्रा जो कि राज्य सरकारों की निगरानी में तमाम व्यवस्थाओं और सुरक्षा के साथ चलती हैं। बरसात के मौसम में यदि कोई पहाड़ों में आता भी है तो सावधान होकर ही सफर करें। चेतावनी व नियमों का पालन जरूर करें। वाहनों की गति पर भी बहुत नियंत्रण रखें वरन् दुर्घटना घटने में पल भी नहीं लगता। पहाड़ कहीं भी हों उनकी भौगोलिक संरचना ऐसी होती है कि तद्नुरूप ही सफर करना पड़ता है। पहाड़ों में अचानक कोई भी आपदा आती है तो स्थानीय लोग भी अपना बचाव नहीं कर पाते। ऐसे हालात में बाहर से घूमने आए हुए पर्यटकों के लिए स्थिति खतरनाक साबित हो जाती है। पहाड़ोॉ के सफर में सतर्क रहें सावधानी बरतें।