रविवार दिल्ली नेटवर्क
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद की धरती पहली बार चक्रवर्ती सम्राट भरत की आलौकिक दिग्विजय यात्रा निकलेगी आज, पुणे का वाद्य यंत्र- झांज पथक, केरल के ढोल- चेंडा मेलम, रहली पटना सागर से ऐरावत हाथी, दिल्ली का नासिक ढोल, खुरई से रमतुला दलदल घोड़ी, दिल्ली से शहनाई होंगे आकर्षण का केंद्र, प्रज्ञाश्रमण उपाध्याय श्री 108 प्रज्ञानंद जी महामुनिराज का ससंघ रहेगा मंगल आशीर्वाद
तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी की धरती पांच नवंबर को नया इतिहास रचने जा रही है। 130 एकड़ में आच्छादित कैंपस में चक्रवर्ती सम्राट भरत की वेस्ट यूपी में पहली बार दिव्य और भव्य दिग्विजय यात्रा एवम् भगवान ऋषभदेव की दिव्य रथयात्रा का प्रातः 9ः30 बजे शंखनाद होगा। अजमेर से आए ज्ञान-विज्ञान संयम उत्सव विशाल स्वर्ण-रथ पर टीएमयू के ग्रुप वाइस चेयरमैन श्री मनीष जैन चक्रवर्ती सम्राट भरत और श्रीमती ऋचा जैन सुभद्रा चक्रवर्ती की भूमिका में सवार होंगे। इस अद्भुत एवम् आलौकिक रथयात्रा के दौरान हेलीकॉप्टर से पुष्पों एवम् रत्नों की वर्षा होगी। इस दिग्विजय यात्रा की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है। इस विशाल यात्रा की तैयारियां दर्शनीय हैं- जैन पताका, मंगल कलश, आचार्य विद्यासागर जी महाराज, गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माता जी सरीखे जैन संतों के कटआउट्स से परिसर पटा है। इस भव्य एवम् आलौकिक दिग्विजय यात्रा हेतु टीएमयू की ओर से 100 किमी तक से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए बस की व्यवस्था भी की गई है। सभी अतिथियों के लिए दिग्विजय यात्रा के पश्चात दोपहर में कुलाधिपति आवास- संवृद्धि पर वात्सल्य भोज की व्यवस्था रहेगी। उल्लेखनीय है, श्री मज्जिनेन्द्र कल्पद्रुम महामंडल विधान जैन संतों के सानिध्य में रिद्धि-सिद्धि भवन में 30 अक्टूबर से विधि-विधान से चल रहा है, जिसका समापन विश्व शांति महायज्ञ के संग 07 नवम्बर को होगा।
कुलाधिपति एवम् महायज्ञ नायक श्री सुरेश जैन ने यह जानकारी साझा करते हुए बताया, परम पूज्य आचार्य श्री 108 वसुनंदी जी महाराज के परम प्रभावी शिष्य प्रज्ञाश्रमण उपाध्याय श्री 108 प्रज्ञानंद जी महामुनिराज, मुनि श्री 108 सभ्यानंद जी मुनिराज ससंघ एवम् गिरनार गौरव आचार्य श्री 108 निर्मल सागर जी महाराज के परम प्रभावी शिष्य क्षुल्लकरत्न गिरनार पीठाधीश श्री 105 समर्पण सागर जी महाराज संसंघ का दिग्विजय यात्रा में सानिध्य रहेगा। दिग्विजय यात्रा में पुणे का वाद्य यंत्र- झांज पथक, केरल के ढोल- चेंडा मेलम, रहली पटना सागर से ऐरावत हाथी, दिल्ली का नासिक ढोल, खुरई से रमतुला दलदल घोड़ी, दिल्ली से शहनाई, ऊंट, बग्गी, मंगल कलश, जबलपुर का प्रसिद्ध श्याम बैंड आदि की झांकियां हजारों श्रद्धालुओं का संगम एक अद्भुत एवम् अप्रतिम होंगे। पूरे कैंपस में मगध, काशी, गांधार, पांचाल आदि छह स्टॉल्स भी सजाए गए हैं, जिनमें श्रावक-श्राविकाएं इन राज्यों का प्रतिनिधित्व करते नज़र आएंगे। यूनिवर्सिटी के एक दर्जन से अधिक कॉलेजों के हजारों-हजार छात्र-छात्राएं रथयात्रा के दौरान विभिन्न भूमिकाओं और परिधानों में नज़र आएंगे। एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन कहते हैं, शिक्षा और अध्यात्म एक-दूसरे के पूरक हैं, इसीलिए यूनिवर्सिटी प्रशासन ने दिग्विजय यात्रा को भारतीय संस्कृति और देवलोक के महोत्सव जैसा स्वरूप देने के लिए असाधारण प्रबंध किए हैं। पूरा कैंपस उत्सव और दिव्य ऊर्जा से सराबोर है। उन्होंने कहा, इस अद्वितीय यात्रा में सम्मिलित होने के लिए श्रद्धालुओं, छात्रों, शिक्षाविदों के संग-संग संभ्रात व्यक्यिों को आमंत्रित किया गया है।
तीर्थंकर प्रकृति का अलौकिक बल और मोक्षमार्ग का सर्वाेच्च वैभव
श्री मज्जिनेन्द्र कल्पद्रुम महामंडल विधान के प्रवचन सत्र में टीएमयू के ग्रुप वाइस चेयरमैन श्री मनीष जैन ने गुरुवर से तीर्थंकर प्रकृति के विषय में दो गहन प्रश्न पूछे। पहला- हे गुरुवर, तीर्थंकर प्रकृति का बल कैसा होता है? इस पर उपाध्याय श्री 108 प्रज्ञानंद जी महामुनिराज ने विस्तार से बताया कि यह प्रकृति नाम कर्म की एक सर्वाेच्च उप-प्रकृति है, जिसका बंध अनंत अनुबंधी कषाय के क्षय और सोलह कारण भावनाओं (जैसे सम्यक दर्शन की विशुद्धि, विनय संपत्ति, शील-व्रत में अनतिचार आदि) के निरंतर शुद्ध चिंतन से होता है। चक्रवर्ती सम्राट भरत की भूमिका में श्री मनीष जैन का दूसरा प्रश्न था कि तीर्थंकर प्रकृति का वैभव कैसा होता है? गुरुवर ने कहा कि यह वैभव किसी चक्रवर्ती का नहीं, बल्कि परमात्मा का है, जिसकी वंदना तीनों लोकों (त्रैलोक्य) के देव करते हैं। इस वैभव का सबसे बड़ा प्रमाण चौंतीस अतिशय हैं, जो तीर्थंकर के जीवन में प्रकट होते हैं। इनमें अरिहंत अवस्था में चौदह देवकृत अतिशय (जैसे अशोक वृक्ष, पुष्पवृष्टि, दिव्यध्वनि, सिंहासन आदि) और जन्म के दस अतिशय शामिल हैं। रिद्धि-सिद्धि भवन में श्री मज्जिनेन्द्र कल्पद्रुम महामंडल विधान का आज छठा दिवस जैन दर्शन के सर्वाेच्च पुण्य- तीर्थंकर प्रकृतिकृपर गहन चिंतन-मनन के लिए समर्पित रहा। यह प्रकृति चौदह कर्मों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
समस्त मुनि संघ के पावन सान्निध्य और उनके ओजस्वी उपदेशों ने श्रद्धालुओं को उस अतुलनीय पुण्यकर्म की शक्ति और फल से परिचित कराया, जो आत्मा को त्रैलोक्य पूज्य बनाता है। इस मंगलकारी विधान को चक्रवर्ती आचार्य श्री 108 वसुनंदी जी महाराज के परम प्रभावी शिष्य प्रज्ञाश्रमण उपाध्याय श्री 108 प्रज्ञानंद जी महामुनिराज ससंघ एवम् क्षुल्लकरत्न गिरनार पीठाधीश श्री 105 समर्पण सागर जी महाराज ससंघ का दिव्य सान्निध्य प्राप्त हुआ। विधान के मुख्य क्रम में सभी उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं ने मंत्रोच्चार और भक्तिभाव के साथ अर्घ समर्पित किए, जिसके बाद मुनि संघ को विशेष अर्घ्य समर्पित किए गए। मंगल शांतिधारा करने का परम सौभाग्य टीएमयू के कुलाधिपति परिवार- कुलाधिपति श्री सुरेश जैन के अलावा श्रीमती वीना जैन, ग्रुप वाइस चेयरमैन श्री मनीष जैन, श्रीमती ऋचा जैन, एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन, श्रीमती जाह्नवी जैन को मिला। दूसरी ओर रिद्धि-सिद्धि भवन में सोमवार की शाम आध्यात्मिक भक्ति और भव्य सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के लिए अविस्मरणीय बन गई। सौधर्म इन्द्र का दरबार भी लगा,जिसमें श्री विपिन जैन सौधर्म इंद्र, जबकि श्रीमती विनीता जैन शची इंद्राणी की भूमिका में नज़र आए।सांयकालीन सत्र का शुभारंभ प्रज्ञाश्रमण उपाध्याय श्री 108 प्रज्ञानंद जी महामुनिराज के ओजस्वी उपदेशों से हुआ, जिन्होंने श्रद्धालुओं को आत्म-चिंतन और धर्म के सूक्ष्म सिद्धांतों पर गहन मार्गदर्शन दिया। उपदेश सत्र के तुरंत बाद दिव्य घोष- मंगल वाद्य यंत्रों की ध्वनि के साथ महामंगल आरती को जिनालय से रिद्धि-सिद्धि भवन परिसर में लाया गया।





